तकनीकी


मेरी एक स्मार्ट यात्रा

रविषंकर श्रीवास्तव

अर्द्ध पारदर्शी परिधानों और रत्नजटित-प्लेटिनम-आभूषणों से सुसज्जित परियों का नृत्य चल रहा था और नेपथ्य में घंटियों की सुमधुर स्वर लहरियाँ बज रही थीं। धीरे-धीरे घंटियों की सुमधुर स्वर लहरियाँ तेज होती गईं और अंततः कर्कश स्वर में बदल गईं और साथ ही इधर जब परियाँ भी धुंधलके में गुम हो गईं तब थोड़ा सा होश आया। घंटियों का कर्कश स्वर मेरे स्मार्टवॉच से निकल रहा था जिसमें मैंने सुबह साढ़े पाँच बजे का अलार्म सेट किया हुआ था। धत तेरे की! यह भी कोई वक्त होता है सुबह जागने का, इन परियों का सान्निध्य जाने अब फिर कब हासिल हो! 
बहरहाल, मैंने अपने स्मार्टवॉच के उस कर्कश (हाँ, सुबह सुबह जागते समय सुमधुर घंटियों की आवाजें भी कर्कश ही लगती हैं!) अलार्म को दूर से ही, जेस्चर कंट्रोल से बंद किया। मुझे आज अपनी यात्रा शुरू करनी थी। जिसके लिए मेरे स्मार्टफ़ोन का उतना ही स्मार्ट कैलेंडर पिछले पंद्रह दिनों से मुझे स्मार्ट बनाए दे रहा था, यह बता-बता कर कि भइए, इस तारीख को तुम्हारी एक यात्रा है और उसके लिए न केवल तुम्हें तैयार रहना है, बल्कि तैयारी भी करनी है। तो, मैंने तैयारी पहले ही कर ली थी टिकट स्मार्टफ़ोन में स्मार्ट तरीके से ईमेल व पीडीएफ़ में क्यूआर कोड के साथ पहले से ही सहेजे जा चुके थे। पिं्रटेड टिकट को हमने स्मार्ट तरीके से अलविदा जो कर दिया था। तय समय पर जीपीएस तथा ऑनलाइन पेमेंट सिस्टम सहित एक स्मार्ट टैक्सी घर के दरवाजे पर आकर खड़ी हो गई। इसके लिए मेरे स्मार्टफ़ोन के उतने ही स्मार्ट ऐप्प ने पहले ही चेता दिया था कि यदि आपने पहले से टैक्सी बुक नहीं की तो समय पर अपनी उड़ान पकड़ने के लिए आपको समस्या आ सकती है और कोई आधा दर्जन टैक्सी सेवा प्रदाताओं में से खोज-खंगाल कर सबसे सस्ती और सबसे अच्छी सेवा का विकल्प पेश किया था, जिसे नजरअंदाज करना कोई स्मार्ट बात नहीं होती। और, बताने की जरूरत नहीं कि टैक्सी का किराया नेटबैंकिंग से बुकिंग करते समय ही अदा करने की स्मार्टनेस भी दिखानी ही थी, क्योंकि इसमें कोई बीस प्रतिशत छूट जो मिलनी थी। स्मार्ट सोच, स्मार्ट गेन! 
घटना-रहित उड़ान पूरी कर समय पर होटल पहुंच गए क्योंकि रनवे पर न तो भैंस मिली, न कुŸो और न पक्षी। होटल का स्मार्ट सिस्टम अपने स्वागत के लिए पहले ही तैयार था, क्योंकि कमरे की बुकिंग पहले से ही कर रखने की स्मार्टनेस हमने जो दिखाई थी, कमरे की पारंपरिक चाबी के बजाय हमें स्मार्ट कार्ड थमाया गया, जिसका उपयोग करने के लिए, जाहिर है, अतिरिक्त स्मार्टनेस की आवश्यकता होती थी। कमरे का दरवाजा खोलने के लिए उसमें लगे स्मार्ट-लॉक में इस स्मार्ट कार्ड को स्वाइप करने पर दरवाजा खुलता था। कमरे की बिजली अबाधित चले, उसके लिए स्मार्ट कार्ड को एक निश्चित खांचे में सदैव रखे रहना होता था। नाश्ते, भोजनादि के लिए होटल के रेस्त्रां में यह स्मार्टकार्ड स्वाइप होते ही आपके होटल बिल में राशि जोड़ देता था, जो चेकआउट के समय उतने ही स्मार्ट तरीके से आपके खाते से अपने-आप ही राशि जमा कर लेने वाला था। 
चूंकि शहर बड़ा था, और यहाँ उतने ही बड़े मॉल थे, अतः कुछ खरीदारी करने का सोचा गया। एक बड़े मॉल पर पहुँचे तो वो स्मार्ट से भी बेहŸार निकला। प्रवेश द्वार पर अनावश्यक रूप से (हमें पहले से पता है, हम भी स्मार्ट हैं!) यह बताया गया कि यदि आपके स्मार्टफ़ोन में एनएफसी है तो उसे चालू कर लें, आपको बड़ा स्मार्ट अनुभव मिलेगा। ग़नीमत यह थी कि यह नहीं कहा गया कि बिना एनएफसी स्मार्टफ़ोन वाले ग्राहक, जो स्मार्ट नहीं हैं, कृपया बाहर ही रहें। तो, एनएफसी की कृपा से उस मॉल में जब, जिधर से गुजरे, उपभोक्ता सामानों की नई-नई रेंज, उसमें आकर्षक छूट आदि आदि के बारे में दनादन संदेश अपने स्मार्टफ़ोन में आने लगे। अब जब नए सामान दिखें, उनमें आकर्षक छूट मिले, तो भले ही आवश्यकता हो न हो, आदमी को इन्हें खरीद लेने की स्मार्टनेस तो दिखानी ही होती है। लिहाजा, जब मैं भी मॉल से बाहर निकला तो थोड़ा और स्मार्ट होकर निकला यानी मेरे हाथ में तीन-तीन बड़े बैग थे सामानों से भरे हुए! और, आपको बताता चलूं कि इन सामानों को अपने बैग में रखते-रखते ही मैंने अपने स्मार्टफ़ोन को टैप कर तुरंत भुगतान भी करते रहने की शानदार स्मार्टनेस दिखाई थी, इस वजह से बिल काउंटर पर लंबी लाइन में लगना ही नहीं पड़ा। वैसे, वस्तुतः बिल काउंटर पर कोई लाइन ही नहीं थी, हर कोई अपने स्मार्टफ़ोन को टैप करने में लगा था बिल देना हो या न देना हो! 
घर वापसी की यात्रा भी कोई कम स्मार्ट नहीं थी, जिसकी चर्चा फिर कभी। अभी तो आप यह बताएं कि, जब दुनिया, यहाँ तक कि आपके शहर से लेकर आपकी क्लास तक भी स्मार्ट हो रही है, मेरे इस संस्मरण को पढ़कर आप थोड़े बहुत स्मार्ट हुए भी या नहीं?

 

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