तकनीकी


विद्युत ऊर्जा का विकल्प

धर्मेन्द्र कुमार मेहता

आजकल हमें हर जगह मशीनें दिखाई देती हैं। हर छोटा बड़ा काम मशीनों द्वारा संपादित किया जा रहा है। वह देश जहां सबसे ज्यादा मशीनें इस्तेमाल होती हैं उसे सर्वाधिक विकसित और आधुनिक समझा जाता है। सारी दुनिया का धीरे-धीरे मशीनीकरण होता जा रहा है। एक मशीन को मानव की अपेक्षा ज्यादा प्रभावी और विश्वसनीय समझा जाता है। यह हमारे बड़े से बड़े कार्यों को सरलता से कर देती है। मशीन मानव की श्रम को कम करती है और ज्यादा प्रतिफल देती है। मशीन को कार्य करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। अतः कहा जा सकता है कि जिस देश के पास सबसे ज्यादा ऊर्जा भंडार है, वह देश ज्यादा विकसित है। ऊर्जा के अलग-अलग रूपों का इस्तेमाल किया जाता है और उसका एक रूप से दूसरे में स्थानातरण होता रहता है। हमें मशीन को उपयोग में लाने के लिए कई प्रकार की ऊर्जा का इस्तेमाल करना होता है। उनमें से ही एक विद्युत ऊर्जा भी है। विद्युत ऊर्जा आज हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग बन गया है दुनिया के 90 प्रतिशत कार्यों में विद्युत ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाता है। विद्युत ऊर्जा का उपयोग हर छोटे-बड़े काम में अलग-अलग रूपों में किया जाता है।
विद्युत ऊर्जा प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित स्रोतों का प्रयोग किया जाता है:
तापीय ऊर्जा ग्रह, जलीय ऊर्जा ग्रह, सौर ऊर्जा ग्रह, नाभिकीय ऊर्जा ग्रह, पवन ऊर्जा ग्रह तथा अन्य।
हमारा देश भारत में भी लगभग सभी प्रकार की ऊर्जा ग्रह उपलब्ध है जो अलग-अलग भागों में विद्युत प्रदान करती हैं।
तापीय ऊर्जा ग्रह सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है तापीय ऊर्जा ग्रह से लगभग 59 प्रतिशत विद्युत प्राप्त किया जाता है अर्थात आधे से अधिक विद्युत ऊर्जा अकेला तापीय ऊर्जा ग्रह प्रदान करता है। कोयला को जलाकर पानी को वाष्प (भाप) में परिवर्तित किया जाता है और उस भाप का इस्तेमाल टरबाइन चलाने के लिए किया जाता है।
लेकिन हमारे पास कोयले का भंडार बहुत कम है, एक अनुमान के अनुसार आने वाले चालीस से पचास सालों में कोयला पूरी तरह समाप्त हो जायेगा। कोयले का निर्माण एक बड़ी और लम्बी प्रक्रिया है जो सैकड़ों साल में पूरी होती है। विद्युत ऊर्जा की दूसरी सबसे बड़ी स्रोत्र जलीय ऊर्जा है अर्थात बांध बनाकर पानी को जमा करना और फिर उससे टरबाइन चलाकर विद्युत ऊर्जा प्राप्त करना। यह स्रोत न विकरणीय है और लगभग 17 प्रतिशत विद्युत ऊर्जा प्रदान करता है। परन्तु ऐसे ऊर्जा ग्रह का निर्माण देश के कुछ ही इलाकों में किया जा सकता है जहां पानी सर्वाधिक मात्रा में उपलब्ध हो। सौर ऊर्जा भी एक अच्छा विद्युत ऊर्जा का स्रोत है लेकिन अभी भी हमारी तकनीक इतना ज्यादा प्रभावी नहीं है जो अधिक से अधिक सौर ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर सके। सौर ऊर्जा ग्रह का निर्माण भी काफी महंगी प्रक्रिया है और सबसे बड़ी कमी यह है कि इसका इस्तेमाल मात्र दिन में ही संभव है और बारिश या कोहरे के समय इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता है। विद्युत ऊर्जा के और भी स्रोत हैं जिसमें पवन ऊर्जा ग्रह बायोमास और अन्य आते हैं। तापीय ऊर्जा ग्रह जलीय ऊर्जा ग्रह और नाभिकरणीय ऊर्जा स्रोत्र के बाद सबसे ज्यादा विद्युत ऊर्जा हमें नाभिकीय विखंडन ऊर्जा ग्रह से प्राप्त होता है। नाभिकीय विखंडन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक बड़े रेडियो एक्टिव तत्व के नाभिक को तोड़ा जाता है। जब नाभिक टूटता है तो सर्वाधिक मात्रा में ऊर्जा निकलती हैं जिसका इस्तेमाल पानी को भाप बनाकर टरबाइन चलाने में किया जाता है।
भारत में पहला नाभिकीय संयंत्र तारापुर 1967 में स्थापित किया गया था। इसके बाद भारत के अन्य पांच स्थानों पर इस संयंत्र को लगाया गया, जिसमें रावत भाटा, नरोरा, कल्पकम, फतेहाबाद, कारापुर शामिल हैं। नाभिकीय ऊर्जा ग्रह में कच्चे माल के तौर पर यूरेनियम का इस्तेमाल किया जाता है, यूरेनियम एक भारी नाभिक वाला तत्व है जो प्रकृति में रेडियो एक्टिव होता है। भारत में भी कई जगहों पर यूरेनियम की खदानें हैं। सबसे ज्यादा यूरेनियम, झारखण्ड के जादूगोड़ा से प्राप्त होता है। लेकिन हमारी आवश्यकता के अनुसार यह संसाधन बहुत ही कम और न्यूनतम गुण वाला है।
यही कारण है कि यूरेनियम हमें अन्य देशों से आयात करना पड़ता है जिस कारण नाभिकीय ऊर्जा से निकला कचरा भी बहुत ही खतरनाक होता है इसे खुले में नहीं फेंका जा सकता है क्योंकि यह रेडियोएक्टिव तरंगें छोड़ता है। जिससे हम और ज्यादा नाभिकीय संयंत्र स्थापित नहीं कर पा रहे हैं। एक तो यूरेनियम हमें बाहर से आयात करना पड़ता है जो काफी महंगी है। दूसरा इससे निकलने वाले कचरे को हमें जमीन में गाड़ना पड़ता है। चूंकि हम पानी जमीन के भीतर से निकालते हैं, यदि कचरे की मात्रा जमीन के अंदर ज्यादा हो जायेगी तो उससे निकलने वाली रेडियोएक्टिव तरंगें पानी को प्रदूषित करेगी और इस प्रकार से हम बीमार हो जायेंगे।
रेडियो एक्टिव तरंगें कितना खतरनाक होती हैं यह इस बात से समझा जा सकता है कि जब 6 और 9 अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा और नागासाकी पर बम गिराया गया था उन विकिरणों का इतना प्रभाव है कि वहां आज भी बच्चे विकलांग पैदा होते हैं। लेकिन सवाल उठता है तो फिर ऐसा क्या करें कि हमें बिना कोई नुकसान के विद्युत ऊर्जा सतत रूप से मिलती रहे। जी हां ऐसा संभव है। हम सभी सूर्य के बारे में तो जानते ही हैं जो न जाने कितने वर्षों से लगातार पूरी दुनिया को प्रकाश देता आया है और आगे भी देता रहेगा। आखिर सूर्य में ऐसा क्या हो रहा है जिससे वहां इतनी गर्मी और प्रकाश उत्पन्न हो रहा है। वस्तुतः सूर्य एक आग का गोला है जिसके नाभिकीय संलयन अभिक्रिया हो रही है। नाभिकीय संलयन अभिक्रिया के कारण ही सूर्य इतना प्रकाश और गर्मी प्रदान करता है। नाभिकीय संलग्न अभिक्रिया के कारण ही सूर्य इतना प्रकाश और गर्मी प्रदान करता है। नाभिकीय संलयन अभिक्रिया नाभिकीय विखंडन अभिक्रिया के बिलकुल विपरीत है। इस अभिक्रिया में दो हल्के नाभिक को उच्च ताप और दाब पर एक नाभिक में परिवर्तित किया जाता है जिसके फलस्परूप  बहुत ही ज्यादा मात्रा में ऊर्जा प्राप्त होती है नाभिकीय संलयन अभिक्रिया में निम्नलिखित अभिक्रिया होती है।


                             उच्च ताप
            2H1+3H1   ----------    4He2+1N+ ऊर्जा
                               एवं दाब

ऊपर के अभिक्रिया में दो हलके नाभिक अर्थात ड्यूटेरियम (2H1) एंड ट्रीटीयम (3H1) को उच्च ताप एंड दाब पर एक नाभिक अर्थात ( 4He2) में परिवर्तित किया जाता है। इस अभिक्रिया के फलस्वरूप हमें बड़ी मात्रा में ऊर्जा प्राप्त होती है जिसका इस्तेमाल हम पानी को भाप बनाकर अरबाइन चलाने में कर सकते हैं। सबसे अच्छी और सुन्दर बात यह है कि इसमें लगने वाला कच्चा माल हाइड्रोजन आसानी से प्राप्त हो सकता है क्योंकि पूरी धरती का एक तिहाई हिस्सा पानी से भरा है और पानी ( H2O) में हाइड्रोजन का परमाणु उपस्थित होता है जिससे आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। और दूसरी अच्छी बात यह है कि इससे निकलने वाला कचरा अर्थात हिलियम एक अक्रिय गैस जो किसी प्रकार नुकसान नहीं पहुंचाता है। लेकिन अब हमें जरूरत है एक ऐसी तकनीक की जिसमें नाभिकीय संलयन अभिक्रिया को अंजाम दिया जा सके। हाइड्रोजन बम, नाभिकीय संलयन अभिक्रिया पर हो आधारित है लेकिन हमारे द्वारा अभी ऐसी तकनीक नहीं बन सकी है जिसके द्वारा हम इस अभिक्रिया से निकलने  वाली ऊर्जा को कंट्रोल कर सकें। अब हमारे देश के युवा वैज्ञानिकों को ऐसा रियेक्टर का निर्माण करना चाहिए जिससे नाभिकीय संलयन अभिक्रिया कराई जा सके क्योंकि जिस दिन से यह तकनीक कार्य करने लगेगी हमें विद्युत के अन्य स्रोतों की जरूरत नहीं होगी। इस प्रोजेक्ट पर फिलहाल वैज्ञानिक कार्य कर रहे हैं जिसमें मैग्नेटिक अथवा इन्रट्रायल का प्रयोग किया जा रहा है जिसका इस्तेमाल नाभिकीय संलयन अभिक्रिया को कंट्रोल करने के लिए किया जा सकता है। कुछ वर्षों में शायद यह प्रोजेक्ट कार्य करना प्रारंभ कर दे, जो काफी समस्या को दूर कर देगी।
नाभिकीय संलयन अभिक्रिया को संभव बनाने के लिए निम्नलिखित मॉडल पर कार्य किया जा रहा है-

  • मैग्नेटिक कॉनफाइनमेंट फ्यूजन - होकामार्क सबसे सराहनीय मॉडल रहा है जिसमें अब तक 177 प्रयोग किये जा चुके हैं।
  • इनरट्रायल कानफाइनमेंट फ्यूजन - इस मॉडल में लेजर तकनीक का प्रयोग किया जाता है। यह मॉडल 1972 में जॉन नोकोलस के द्वारा प्रदान किया गया था।
  • पिंच - इसमें मजबूत विद्युत का इस्तेमाल किया जाता है जो चुम्बकीय क्षेत्र का निर्माण करता है और एक मजबूत क्षेत्र का निर्माण करता है।

इनके अलावा अन्य मॉडल भी प्रस्तावित किये गये हैं जिस पर फिलहाल काम चल रहा है। आशा है बहुत ही जल्द पूरी हो जायेगी। कल्पना कीजिए जिस दिन हमारे देश के हर प्रांत को 24 घंटे बिजली मिलेगी, सारा काम मशीन से होगा और यह तभी संभव होगा जब हमें सर्वाधिक मात्रा में विद्युत ऊर्जा प्राप्त हो जाये। भविष्य के विद्युत ऊर्जा स्रोत्र का सबसे योग्य और बड़ा कारण हो सकता है नाभिकीय संलयन अभिक्रिया यदि इस प्रकार की तकनीक बनना संभव हो जाये। यह एक काफी बड़ा प्रोजेक्ट है जिसकी टेस्टिंग तथा कार्य व्यवस्था में समय लगेगा तथा जिसे वैज्ञानिकों को एक साथ करना होगा।


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