सामयिक


एटम बम की तक में आतंकी

विजन कुमार पाण्डेय

6 अगस्त 1945 को ‘लिटिल ब्वॉय’ नामक परमाणु बम हिरोशिमा पर गिराया था। अमेरिकी बॉम्बर प्लेन बी-29 ने जमीन से तकरीबन 31000 फीट की ऊंचाई से परमाणु बम गिरा दिया था। एनोला गे नामक एक अमेरिकी बी-29 बमवर्षक ने 6 अगस्त 1945 को ‘लिटिल ब्वॉय’ नामक परमाणु बम हिरोशिमा पर गिराया था। यह घटना दूसरे विश्वयुद्ध के अंतिम चरणों में से एक है। इसके आसपास की लगभग हर चीज जलकर खाक हो गई थी। इस बम के जरिए जमीनी स्तर पर लगभग 400 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी पहुंची थी, जो कि स्टील को पिघलाने के लिए काफी होती है।

 

प्रौद्योगिकी के विकसित होने के साथ परमाणु आतंकवाद का खतरा भी बढ़ रहा है। यह एक गंभीर वास्तविकता है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। वाशिंगटन में हुए दो दिवसीय परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन में 50 से अधिक देशों के नेता और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के प्रमुख परमाणु आतंकवाद के इसी खतरे से निपटने पर चर्चा की गई। आज आतंकियों के हाथ एटम बम लगने का अंदेषा दुनिया पर मंडरा रहा है। उधर उत्तर कोरिया ने दक्षिण कोरिया और अमेरिका को धमकी देते हुए कहा है कि यदि वे दोनों देश संयुक्त सैन्य अभ्यासों को आगे बढ़ाते हैं तो वह उन पर अंधाधुंध परमाणु हमले बोल देगा। न्याय के लिए एहतियातन परमाणु हमले की यह धमकी उत्तर कोरिया के शक्तिशाली नेशनल डिफेंस कमीशन ने एक बयान में कोरियन पीपल्स आर्मी के उच्चतम कमांड के हवाले से दी है। इस धमकी से कुछ ही दिन पहले संयुक्त राष्ट्र के उत्तर कोरिया पर लगाए गए नए कड़े प्रतिबंधों के जवाब में नेता किम जोंग-उन ने देश के परमाणु हथियारों के जखीरे को किसी भी क्षण इस्तेमाल करने के लिए तैयार रखने को कहा था। ये प्रतिबंध उत्तर कोरिया की ओर से जनवरी में किए गए चौथे परमाणु परीक्षण और बीते माह किए गए लंबी दूरी के रॉकेट प्रक्षेपण के कारण लगाए गए थे। प्योंगयांग पहले भी परमाणु हमले की कई बार चेतावनी दे चुके है। ये चेतावनी आम तौर पर कोरियाई प्रायद्वीप में बढ़े हुए सैन्य तनाव के दौरान दी जाती रही हैं। नेशनल डिफेंस कमीशन ने दक्षिण कोरिया और अमेरिका के वार्षिक सैन्य अभ्यासों को ऐसा खुला परमाणु युद्ध अभ्यास करार दिया, जिससे उत्तर कोरिया परमाणु हमले के लिए प्रेरित हो रहा है।
अभी हाल ही में परमाणु हमले के 70 साल बाद अमेरिका के जॉन कैरी हिरोशिमा गए हैं। अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी ने हिरोशिमा में परमाणु बम हमले के सात दशक बाद शांति और परमाणु मुक्त विश्व का संदेश देने वाले एक स्मारक का दौरा किया। इतिहास में पहली बार अमेरिका ने हिरोशिमा पर ही परमाणु हथियार का इस्तेमाल किया था और इस हमले में 1.4 लाख जापानी मारे गए थे। कैरी इस शहर की यात्रा करने वाले अमेरिका के वरिष्ठतम अधिकारी बन गए हैं। उन्होंने सात औद्योगिक देशों के अन्य विदेश मंत्रियों के साथ इस शांति संग्रहालय का दौरा किया और यहां पास ही स्थित पार्क में पत्थर से बने स्मारक पर पुष्पाहार अर्पित किए। यहां से कुछ ही दूरी पर हिरोशिमा की पहचान एटॉमिक बॉम्ब डोम था जो इस बम हमले का शिकार बनी इमारत है। बम हमले में क्षतिग्रस्त हुई इस इमारत के गुंबद की छड़ें आज भी साफ नजर आते हैं। अमेरिका समेत जी-7 देशों के झंडे लिए खड़े लगभग 800 जापानी लोग इस अवसर पर छाई उदासी को दूर कर रहे थे। कैरी ने इस अवसर पर सार्वजनिक तौर पर संबोधन तो नहीं किया लेकिन इस दौरान वह जापानी विदेशमंत्री और हिरोशिमा के मूल निवासी फुमियो किशिदा की बांह थामकर उनके कान में कुछ कहते जरूर नजर आए। षायद उन्हें अब इस परमाणु हमले का पछतावा हो रहा होगा। हिरोशिमा पर किए गए परमाणु हमले के 70 साल पूरे हो गए हैं। 6 अगस्त 1945 को ‘लिटिल ब्वॉय’ नामक परमाणु बम हिरोशिमा पर गिराया था। अमेरिकी बॉम्बर प्लेन बी-29 ने जमीन से तकरीबन 31000 फीट की ऊंचाई से परमाणु बम गिरा दिया था। एनोला गे नामक एक अमेरिकी बी-29 बमवर्षक ने 6 अगस्त 1945 को ‘लिटिल ब्वॉय’ नामक परमाणु बम हिरोशिमा पर गिराया था। यह घटना दूसरे विश्वयुद्ध के अंतिम चरणों में से एक है। इसके आसपास की लगभग हर चीज जलकर खाक हो गई थी। इस बम के जरिए जमीनी स्तर पर लगभग 4000 डिग्री सेल्सियस तक की गर्मी पहुंची थी, जो कि स्टील को पिघलाने के लिए काफी होती है। इस हमले ने लगभग 1ण्4 लाख लोगों की जान ले ली थी। इनमें वे लोग भी शामिल हैं, जो बम हमले से तो बच गए थे लेकिन भारी रेडिएशन की चपेट में आने के कारण बाद में मर गए थे। पत्तन शहर नागासाकी पर भी 9 अगस्त को परमाणु बम से हमला बोला गया था। इसमें 70 हजार लोग मारे गए थे। हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम को अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट के संदर्भ में लिटिल ब्वॉय कहा गया और नागासाकी के बम को इंग्लैंड के प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल के संदर्भ में फैट मैन कोडनेम दिया गया। कुछ दिन बाद 15 अगस्त 1945 को जापान ने आत्मसमर्पण कर दिया था और युद्ध समाप्त हो गया था। परमाणु बम का निर्माण 1941 में तब शुरू हुआ जब नोबेल विजेता वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलीन रूजवेल्ट को इस प्रोजेक्ट को फंडिंग करने के लिए राजी किया था। उस समय खुद आइंस्टीन ने भी नहीं सोचा होगा कि इसके इतने घातक परिणाम हो सकते हैं।

 दो दिवसीय सम्मेलन में एक विशेष सत्र का भी आयोजन किया गया, जिसमें शहरी केंद्रों में सुरक्षा बढ़ाने और रासायनिक एवं रेडियोधर्मी सामग्री तक आतंकवादी संगठनों को दूर रखने जैसे मुद्दे शामिल किए गए। अमेरिका सहित कई देशों की सरकारी रिपोर्टों के मुताबिक, यदि चरमपंथी समूह उच्च संवर्धित यूरेनियम और प्लूटोनियम तक पहुंच बनाने में कामयाब हो जाते हैं, तो वे अपरिकृष्त ही सही लेकिन घातक परमाणु बम बना सकते हैं। 

अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा है कि चरमपंथी परमाणु हमले की कोशिश में लगे हैं और अगर उनके मंसूबे कामयाब हुए तो दुनिया का नक्शा बदल सकता है। ओबामा ने वॉशिंगटन में परमाणु सुरक्षा सम्मेलन में यह बयान दिया है। इस सम्मेलन में 50 से अधिक देशों ने हिस्सा लिया। उन्होंने कहा कि कुछ देषों ने परमाणु चरमपंथ को रोकने के लिए ठोस कदम जरूर उठाए हैं लेकिन इस्लामिक स्टेट की परमाणु हथियार हासिल करने की कोशिश दुनिया की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इस्लामिक स्टेट सीरिया में रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल कर चुका है। ओबामा ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि इन सिरफिरों के हाथ अगर परमाणु हथियार लग जाए तो ये ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारने की कोशिश करेंगे। उन्होंने कहा कि परमाणु चरम पथ से बचने का सबसे कारगर तरीका यही है कि इसे पूरी तरह सुरक्षित बनाया जाए ताकि यह गलत हाथों में न जाने पाए। सम्मेलन में शामिल हुए वैश्विक नेताओं ने उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम और रूस की अनुपस्थिति को लेकर अपनी चिंताएं भी जताई। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2010 में छैै की शुरुआत की थी और यह इस कड़ी में चौथा और संभावित रूप से आखिरी सम्मेलन है। इसमें परमाणु सुरक्षा के मुद्दे पर चर्चा की गई। यह सम्मेलन ऐसे मौके पर हुआ जब आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट के भयावह पंजे मध्य पूर्व से बाहर निकल कर यूरोप के भीतर तक पहुंच गए हैं।
अभी हाल ही में बेल्जियम की राजधानी ब्रसेल्स में हुए विस्फोटों में 35 लोगों की मौत हो गई थी और 300 से अधिक लोग घायल हो गए थे। इससे पहले नवंबर 2015 में पेरिस में हुए सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे, जिसमें 130 लोगों की मौत हो गई थी। यहां सबसे अधिक चिंताजनक बात यह है कि ब्रसेल्स धमाकों को अंजाम देने वाले आतंकवादियों ने एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र में इसकी योजना बनाई थी। इससे यह खतरा महसूस किया जा रहा है कि आतंकी परमाणु हथियारों की दुनिया तक पहुंच सकते हैं। अन्य आतंकवादी संगठनों की तुलना में इस्लामिक स्टेट अधिक नियुक्तियां कर रहा है। वह इनके प्रशिक्षण में अधिक धनराशि भी लगा रहा है, जो विश्व के लिए खतरे की घंटी है। इस दो दिवसीय सम्मेलन में एक विशेष सत्र का भी आयोजन किया गया, जिसमें शहरी केंद्रों में सुरक्षा बढ़ाने और रासायनिक एवं रेडियोधर्मी सामग्री तक आतंकवादी संगठनों को दूर रखने जैसे मुद्दे शामिल किए गए। अमेरिका सहित कई देशों की सरकारी रिपोर्टों के मुताबिक, यदि चरमपंथी समूह उच्च संवर्धित यूरेनियम और प्लूटोनियम तक पहुँच बनाने में कामयाब हो जाते हैं, तो वे अपरिकृष्त ही सही लेकिन घातक परमाणु बम बना सकते हैं। यह सुनिश्चित किया जाना जरूरी है कि वह परमाणु बम बनाने में सक्षम न हो। इसलिए विष्व के देषों को सुनिश्चित करना होगा कि उनकी पहुंच अस्पतालों व अन्य जगहों पर उपलब्ध रेडियधर्मी पदार्थ तक न हो सके। दरअसल परमाणु सुरक्षा का संबंध सिर्फ परमाणु सामग्रियों की ही सुरक्षा से नहीं होता बल्कि यह परमाणु इकाइयों की सुरक्षा से भी संबद्ध होता है। इसलिए सभी देषों को अपनी-अपनी परमाणु बिजली घरों तथा अन्य इकाइयों की सुरक्षा पर भी विषेष ध्यान देना होगा।
आज परमाणु आतंकवाद को आतंकवाद का सबसे नया और खतरनाक रूप समझा जा रहा है। आतंकवादी संगठन, इस्लामिक स्टेट के बढ़ते खतरे के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने की अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा अपील की गई है। ओबामा ने अपने चौथे और अंतिम सम्मेलन की मेजबानी करते हुए कहा, ‘‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगर इन विक्षिप्त लोगों को परमाणु बम या परमाणु सामग्री हासिल हो जाए, तो वे निश्चित तौर पर निर्दोष लोगों की हत्या के लिए उसका इस्तेमाल करेंगे। इसमें हम सभी को अपनी भूमिका निभानी चाहिए। खुफिया जानकारी साझा करने के मामले में हमें काफी कुछ करने की जरूरत है। लड़ाई बेहद मुश्किल है, लेकिन हम साथ मिलकर इस दिशा में काफी सफलता हासिल कर रहे हैं और मुझे पूरा विश्वास है कि हम इसे नष्ट करने में सफल हो जाएगें।’’ सम्मेलन के बाद जारी की गई एक विज्ञप्ति के मुताबिक, परमाणु और रेडियोधर्मी आतंकवाद अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है और यह खतरा लगातार बढ़ रहा है।

आज के आतंकी 21वीं सदी की तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। जबकि हमारी प्रतिक्रियाएँ अब भी पुराने जमाने की हैं। आतंकवाद की पहुँच और आपूर्ति शृंखला वैश्विक है लेकिन देशों के बीच स्वाभाविक सहयोग वैश्विक नहीं है। 

परमाणु तस्करों और आतंकियों के साथ मिलकर काम करने वाले सरकारी तत्व आज सबसे बड़ा खतरा पैदा कर रहे हैं। आज के आतंकी 21वीं सदी की तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। जबकि हमारी प्रतिक्रियाएं अब भी पुराने जमाने की हैं। आतंकवाद की पहुंच और आपूर्ति शृंखला वैश्विक है लेकिन देशों के बीच स्वाभाविक सहयोग वैश्विक नहीं है। अब यह धारणा त्याग देना होगा कि आतंकवाद किसी और की समस्या है और ‘उसका’ आतंकी ‘मेरा’ आतंकी नहीं है। वर्तमान में आतंकवाद का नेटवर्क वैश्विक तौर पर मौजूद है। लेकिन इस खतरे से निपटने के लिए हम अभी भी राष्ट्रीय तौर पर ही काम कर रहे हैं। दो दिवसीय परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन की औपचारिक शुरूआत के तहत अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा द्वारा व्हाइट हाउस में आयोजित किए गए रात्रिभोज के दौरान प्रधानमंत्री ने कहा, ‘‘परमाणु सुरक्षा एक बाध्यकारी राष्ट्रीय प्राथमिकता बनी रहनी चाहिए। सभी देशों को अपने अंतरराष्ट्रीय कर्तव्यों का पूरी तरह पालन करना चाहिए।’’ 
अभी ब्रसेल्स हमलों में जिन विस्फोटकों का इस्तेमाल किया गया, हमलावरों ने उन्हें घर पर ही बनाया था। पुलिस के लिए ऐसे आतंकियों तक पहुंचना लगभग नामुमकिन होता है। ब्रसेल्स के हमलावरों ने एक ऐसी जगह किराए पर ली थी, जहाँ मरम्मत का काम चल रहा था। ऐसे में वे धीरे-धीरे बम बनाने का सामान जमा करते रहे और इसके बारे में किसी को कानोंकान खबर तक नहीं मिली। किसी को कभी उन पर शक भी नहीं हुआ। अगर कोई उन्हें रोकता भी, तो वे आसानी से कह सकते थे कि यह तो मरम्मत का सामान है। वे अपने घर में रह रहे हैं। दूसरी तरफ पुलिस को इनकी भनक इसलिए नहीं लगी क्योंकि जिस तरह के सामान से विस्फोटक बनाए गए, वह किसी भी सामान्य हार्डवेयर स्टोर में आसानी से मिल जाता है। दोनों भाइयों इब्राहिम अल बकरावी और खालिद अल बकरावी को ये बम बनाने में दो महीने का वक्त लगा था। उन्होंने नेल पॉलिश रिमूवर और ड्रेन क्लीनर जैसी सामान्य चीजों का इस्तेमाल किया। इनकी मदद से उन्होंने टीएटीपी नाम का मिश्रण तैयार किया, जो एक बेहद घातक विस्फोटक है। ब्रसेल्स हमलों से पहले टीएटीपी का इस्तेमाल 2015 के पेरिस हमलों और 2005 के लंदन हमलों में भी किया गया था। हालांकि पिछले तजुर्बों को देखते हुए यूरोप में लोगों के सामान खरीदने के तरीकों पर नज़र रखी जाती है और शक होने पर स्टोर में काम करने वाले पुलिस को सूचना देते हैं लेकिन ब्रसेल्स मामले में ऐसा कुछ नहीं हुआ। हमले के बाद जब पुलिस वहाँ पहुँची, तो 15 किलो टीएटीपी और 180 लीटर रसायन मिला।
आतंकी तो अब अपनी भाषा और रूप को बदलकर लोगों की जान ले रहे हैं। टीएटीपी पर रिसर्च करने वाले इस्राइल के वैज्ञानिक एहुद कैनान के अनुसार ब्रसेल्स में जिस तीव्रता का विस्फोट हुआ, उसे अंजाम देने के लिए चार किलो टीएटीपी ही काफी है। 1980 के दशक में जब फलीस्तीन में आतंकियों को टीएटीपी का ज्ञान हुआ, तब उन्होंने इसे ‘शैतान की मां’ का नाम दिया था। ऐसा इसलिए क्योंकि सफेद रंग के इस पाउडर को माचिस या सिगरेट से सक्रिय किया जा सकता है। विस्फोट से ज्यादा नुकसान हो, इसके लिए कई बार बम में ढेर सारी कीलें भी मिलाई जाती हैं। अब तो इंटरनेट के जमाने में इस खतरनाक बम को बनाने के तरीके ढूंढना भी मुश्किल नहीं रह गया है। हालांकि यह भी सच है कि बिना रसायनों के ज्ञान के हर कोई सही मिश्रण नहीं बना सकता। लेकिन हमलावरों में से एक, नाजिम लाखरावी इंजीनियर था जो रसायनों की अच्छी समझ रखता था। उसने बम बनाने में हमलावरों की काफी मदद की। टीएटीपी की गंध काफी तेज होती है। जिस टैक्सी में सवार हो कर ये लोग हवाई अड्डे पहुंचे, उसके चालक ने बताया कि उसे रसायनों की गंध आ रही थी। मजे की बात तो ये थी कि टीएटीपी को हवाई अड्डे में लगे स्कैनर भी नहीं पकड़ सके। केवल प्रशिक्षित कुत्ते ही उसे सूंघ कर जानकारी दे सके। हालांकि ब्रसेल्स हवाई अड्डे पर खोजी कुत्ते भी मौजूद थे लेकिन हमलावर उन्हें भी चकमा देने में कामयाब हो गए। इसे देखते हुए सभी देषों को आतंकी हमले से बचने के लिए सतर्क हो जाना चाहिए। पता नहीं कब ऐसे हमले हो जाए और बेमौत लोग मारे जाएं।
नाभिकीय विस्फोट अत्यधिक रोशनी और गर्मी, नुकसानदायक दबाव तरंग और दूर-दूर तक फैलने वाली रेडियोधर्मी पदार्थों वाला एक विस्फोट है जो आसपास कई मीलों तक की हवा, पानी और जमीनी सतह को दूषित कर सकता है। किसी नाभिकीय घटना के दौरान रेडियोधर्मी विकिरण निकलती है जो अत्यंत खतरनाक होती है। वैसे शीत युद्ध के दौरान व्याप्त नाभिकीय खतरा अब कम हो गया है। हालांकि ऐसी संभावना है कि आतंकवादी छोटे नाभिकीय हथियार तक पहुंच सकते हैं। वे रेडियोधर्मी प्रदूषण फैला सकते हैं। इन्हें इम्प्रोवाइज्ड न्यूक्लियर डीवाइस (आईएनडी) कहा जाता है। दरअसल हम जिन पारम्परिक हथियारों की कल्पना करते हैं उनके मुकाबले में ये आम तौर से छोटे और कम शक्तिशाली हथियार होते हैं। रेडियोधर्मी पदार्थों से हो रहा प्रदूषण कितना खतरनाक है इसका अनुभव दुनिया 11 मार्च 2011 को जापान के सुनामी एवं भूकंप प्रभावित फुकुशिमा परमाणु ऊर्जा संयंत्र के रियेक्टर में लगी आग तथा उससे हो रहे विकिरण के खतरे को  देखा है। इस परमाणु दुर्घटना का स्तर 7 तक पहुंच गया है, जो परमाणु दुर्घटनाओं का सबसे ज्यादा खतरनाक स्तर है। आज भी यह पूरे विश्व के लिये खतरा बना हुआ है। वैसे भी रेडियोधर्मी पदार्थों का प्रबंधन और निस्तारण एक जटिल प्रक्रिया है। वैज्ञानिक सोच तथा प्रगति के तमाम संसाधनों के उचित उपयोग और प्रबंधन की तमाम कोषिष के बावजूद, प्रातिक आपदा के सामने हम कितने असहाय और मजबूर हैं, यह जापान में आयी आपदा ने सिद्ध कर दिया है। परमाणु आपदाओं से सामना हमें वर्ष 1945 में ही हो गया था, जब अमेरिका ने हिरोशिमा और नागासाकी दो बड़े शहरों पर द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान परमाणु बमों से हमला किया था। इस तबाही ने लगभग एक लाख लोगों को मौत के मुंह उतार दिया था, तथा लगभग पूरा शहर ही नष्ट हो गया था। इस परमाणु आपदा का तात्कालिक प्रभाव तो अभी था ही, आगे आने वाली कई भावी पीढ़ियों को भी इसके दुष्प्रभाव से सामना करना पड़ सकता है। वर्ष 1979 में अमेरिका के थ्री माइल द्वीप में स्थित नाभिकीय संयंत्र में हुई दुर्घटना तथा चेरनोबिल (यूक्रेन) के परमाणु विद्युत संयंत्र में वर्ष 1986 में हुई दुर्घटनाओं के कारण वायुमंडल में रेडियोधर्मी विकिरण का अत्यधिक प्रभाव देखा गया था, जिसके अवशेष अभी भी हैं। परमाणु दुर्घटनाओं से सजीव पदार्थों के अलावा निर्जीव पदार्थों में भी विपरीत प्रभाव देखने में आये हैं। चेरनोबिल दुर्घटना के कारण कम्प्यूटरों में वायरस फैल गये थे। भारत में भी लगभग 10 हजार कम्प्यूटर प्रभावित हुये थे जबकि दक्षिणी कोरिया एवं तुर्की जैसे देशों ने लगभग 3 लाख कम्प्यूटर खराब होने की जानकारी दी थी। अगर परमाणु ऊर्जा मानव की प्रगति में लाभकारी है तो उसका अधिक अविवेकपूर्ण प्रयोग भी खतरनाक है। परमाणु ऊर्जा का उपयोग जनहितकारी होते हुये भी, मनुष्य की लालची सोच से विध्वंशकारी हो चला है। अगर ऐसे हथियार आतंकियों के हाथ लग गये तो क्या होगा, इसकी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। आतंकवादी संगठन परमाणु सामग्री हथियाने की कोषिष में लगे हैं। ऐसे में भारत के लिए भी एटमी आतंकवाद का खतरा सामने दिख रहा है। अतः ऐसे खतरे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आतंकवादियों की पहुँच और आपूर्ति की कड़ियां दुनिया भर में फैली हैं। लेकिन दुनिया के देषों के बीच अभी भी सच्चे सहयोग का अभाव है। अतः अब समय आ गया है कि सारी दुनिया एकजुट हो कर परमाणु आतंकवाद से निपटने की तैयारी करें। 

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