सामयिक


इबोला एक लाइलाज वायरस रोग

धर्मेन्द्र कुमार मेहता

 

आज दुनिया जिस तीव्र गति से विकास कर रही है उसी गति से न जाने कितनी बीमारियों का शिकार होती जा रही है। डायबिटीज, कैंसर, टी.बी., ब्रेन ट्यूमर, डेंगू, डिप्रेशन जैसी बीमारियाँ के अलावा ढेर सारी ऐसी बीमारियां हैं जो पूर्णतः ला-इलाज हैं जैसे एड्स, ब्लड कैंसर इत्यादि। हम एक बीमारी के इलाज को खोजने का प्रयास कर ही रहे होते हैं, उससे पहले नई बीमारी  दस्तक दे जाती है।

 

आज हम एक ऐसी ही बीमारी के बारे में बात करने जा रहे हैं जो बिलकुल एड्स की तरह खतरनाक है। यह बीमारी भी एड्स की भांति एक वायरस के कारण होती है, तथा एड्स की तरह पूर्णतः लाइलाज है।  इस बीमारी का नाम है इबोला वायरस रोग। इबोला वायरस रोग एक ऐसी जानलेवा बीमारी है जो इबोला वायरस के कारण होती है, इस बीमारी को इबोला हैमारे हैजिक बुखार भी कहा जाता है। इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के मरने की संभावना लगभग 90 प्रतिशत तक होती है। अभी तक 1400 से अधिक व्यक्ति इस बीमारी से ग्रसित हो चुके हैं जिसमें 980 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। यह रोग अभी दक्षिण अफ्रीका के देशों तक ही सीमित है जिसमें सीरिया, लाइबेरिया जैसे देश शामिल हैं। इबोला वायरस फिलोवारीडे समूह का वायरस है जिसकी संरचना हेलीकल क्रास के जैसी होती है जिसका व्यास 80 नैनो मीटर एवं लंबाई 970.120 नैनो मीटर तक होती है। यह वायरस कमरे के ताप पर आराम से रह सकता है, इसे मारने के लिए हमें आधा घंटा तक इसे 60 डिग्री से ऊपर रखना पड़ता है। इसके अलावा हम यूवी किरणों एवं गामा किरणों की सहायता से इसे मार सकते हैं। यह वायरस भी द्रव माध्यम जैसे ब्लड, लार अथवा शुक्राणु के द्वारा फैलता है।

इस बीमारी से ग्रसित होने में लगभग दो  से इक्कीस दिन का समय लग जाता है अर्थात जिस दिन से इबोला वायरस आपके शरीर में प्रवेष किया है उसके बाद से उसे 2-21 दिन तक समय लग जाता है आपको बीमार करने में। यह औसत समय 8 से 10 दिनों का भी माना जाता है।

इस बीमारी से प्रभावित हो जाने के बाद बार-बार तेज सिर दर्द, मांषपेषियों में दर्द उल्टी, डायरिया, पेट में दर्द और आंतरिक खून का रिसाव होता है।

चंूकि यह बीमारी इबोला वायरस के द्वारा होती है और यह वायरस मात्र द्रवित माध्यम से ही एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के षरीर में प्रवेष कर सकता है। इसके फैलने के निम्नलिखित कारणों को रेखांकित किया जा सकता है:

- प्रभावित सिंरिज और षेविंग ब्लेड का प्रयोग।

- रोगी के साथ असुरक्षित यौन संबंध।

- प्रभावित खून का आदान-प्रदान।

- इबोला से मरे व्यक्ति के लाष को छूने से।

- कटी-फटी त्वचा को प्रभावित वातावरण में आने से।

- चिंपाजी और बंदर जो दक्षिण अफ्रीका में पाये जाते हैं के काटने से।

- प्रभावित मां के द्वारा बच्चे को दूध पिलाने से।

इबोला वायरस की सर्वप्रथम खोज 1976 में दो अलग-अलग जगहों पर की गई थी। सूडान के एक गांव में जो इबोला नदी के किनारे है इस वायरस का मूल बिन्दु टेरोपोडीडे को माना जाता है वह पाया गया। 21 मार्च 2014 को गुयेना के स्वास्थ संगठन ने विष्व-स्वास्थ संगठन को इसके होने का खबर दी, इसके बाद लायबेरिया ने और फिर अन्य देषों ने जो दक्षिण अफ्रीका के अंतर्गत आते हैं इस वायरस के बारे में बताया।

इबोला से प्रभावित लोग

 

 

 

 

 

देष                                     केस                मृत्यु              केस फैमिली दर                प्रभावित स्वास्थ्यकर्मी

गुयाना                               472                 346               73                                   33/20

लाइबेरिया                          360                 181               50                                   47/28

नाईजीरिया                        1                      1                  120                                  0

सीरिया                              574                  215               37                                   44/23

कुल                                   1407               743               53                              124/71

 इबोला वायरस को रिस्क ग्रुप 4 में रखा गया है और इसे बीएसएल-4 के स्तर पर काम किया जा रहा है। यह बीमारी अभी दक्षिण अफ्रीका के देषों में ही पायी गयी है, फिलहाल यहाँ के कुछ अन्य देष इसके चपेट से बाहर हैं।

इबोला से बचाव के तरीके

- हमेषा रोगी के खून या लार को छूने से बचें।

- जंगली जानवर के पहुंच से दूर रहें।

- प्रभावित जानवर के मांस खाने से बचे।

- हाथ हमेषा साबुन से धोयें।

- प्रभावित क्षेत्र की यात्रा करने से बचें।

- हमेषा फल-सब्जियां धो कर इस्तेमाल करें।

- प्रभावित व्यक्ति के साथ यौन-संबंध ना बनायें।

- इबोला से मरे व्यक्ति के षरीर को ना छुये।

- कोई भी लक्षण पाये जाने पर फौरन डाक्टर से संपर्क करें।

- हमेषा नई इंजेक्षन सिरिंज और षेविंग ब्लेड का इस्तेमाल करें।

 

इबोला वायरस को निम्नलिखित तरीकों से खत्म किया जा सकता है:

- साबुन के प्रयोग द्वारा

- उच्च ताप पर वाषिंग मषीन का प्रयोग

- अल्ट्रा-वायलेट किरणों के द्वारा

- गामा किरणों के द्वारा

- आधा घंटे या एक घंटे तक 60 डिग्री ताप पर उबाल कर।

- सोडियम हाइपोक्लोराइट के प्रयोग द्वारा

- डॉक्टर के द्वारा बताये गये रसायनों के द्वारा

चूँकि इबोला एक ऐसी बीमारी है जिसका अभी तक इलाज संभव नहीं है। अतः कहा जा सकता है कि रोकथाम ही इसका उपचार है।

 

विष्व स्वास्थ्य संगठन के कदम

विष्व स्वास्थ्य संगठन विष्व का ऐसा संगठन है जो हर देष की बीमारियों से अवगत होता है और उससे निपटने के लिए हर संभव प्रयास करती है। इसे संक्षेप में डब्ल्यू.एस.ओ. कहते हैं। डब्ल्यू.एस.ओ. ने गुयाना, लाइबेरिया और सीरिया लियोन की सरकार को इबोला से निपटने के लिए 71ए053ए413 डॉलर की सहायता प्रदान की है। यह संगठन अलग-अलग जगहों का भ्रमण कर इबोला ग्रसित व्यक्ति की खोज कर रहा है। अभी हाल में 2.3 जुलाई 2014 को अकरा मीटिंग बुलाई गई जिसमें ग्यारह अफ्रीकी देषों ने भाग लिया था। जिसका उद्देष्य ग्रसित व्यक्ति को बचाने एवं इस रोग के फैलने पर रोक लगाने तथा अलग-अलग कार्यों के लिए विषेष समूह का गठन किया गया।

डब्ल्यू.एस.ओ. ने निम्नलिखित कदम उठाये हैं जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लागू किये गये हैं।

- लोगों में जागरुकता की आवष्यकता

- रोकथाम एवं उपचार की व्यवस्था

- आवष्यक दवाइयों का वितरण

- तकनीकी व्यवस्था जैसे वेबसाइट

- वायरस के फैलने पर रोक लगाना

- अस्पतालों के कचरों का सही निपटारा

- स्वास्थ्य कर्मी को सही ट्रेनिंग तथा उचित एवं समुचित व्यवस्था प्रदान करना

इस बीमारी से रू-ब-रू कराने के लिए अन्य सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाएं कार्यरत हैं, अभी हाल में अमेरिका एवं अन्य देषों ने एयरपोर्ट एवं अन्य आम जगहों पर डाक्टरों की सहायता से मुफ्त जांच करवाने की व्यवस्था की है। फिलहाल हमारे देष में भी दो-चार मरीज होने का दावा किया गया है। उनका सरकारी अस्पताल में इलाज चल रहा है। भारत सरकार ने भी एक स्वास्थ टीम का गठन किया है जो देष की अलग-अलग जगहों पर काम करेगी। जैसा कि पहले बताया गया है इबोला एक लाइलाज बीमारी है। अतः रोकथाम ही इसका उपचार है। बताये गये नियमों को अपने दैनिक जीवन में प्रयोग कर हम इस खतरनाक बीमारी से काफी हद तक बच सकते हैं। जब कभी आपको बताये गये लक्षण दिखे आप बिना देर किये फौरन डॉक्टर से संपर्क करें। सही समय पर डॉक्टर से मिलकर ही इसका निदान किया जा सकता है।

एलआईजी-59 कोटरा सुल्तानाबाद

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