दुनिया का सबसे छोटा ड्रोन
अब एक ऐसा ड्रोन आ चुका है जिसे आप घर के अंदर या बाहर कहीं भी अपने काम में ले सकते हैं। इस ड्रोन का साइज इतना छोटा है कि हाथ की हथेली में भी समा जाता है। इसके अलावा इसे जेब में रखकर कहीं भी लाया ले जाया जा सकता है। स्केयी नेनो ड्रोन नाम से आए इस ड्रोन को 34ण्99 डालर की कीमत में उपलब्ध कराया गया है। ैामलम छंदव क्तवदम हवा में उड़ाने वाला है ड्रोन है जिसका कुल वजन महज 11ण्9 ग्राम है। बहुत ही छोटी साइज होने के चलते यूजर इसे अपनी जेब में रखकर कहीं भी ले जा सकते हैं। स्केयी नेनो ड्रोन में 100 एमएएच की बैटरी लगी है जिसे एकबार पूरी तरह चार्ज होने में 30 मिनट का समय लगता है। एक बार पूरी तरह चार्ज होने पर यह ड्रोन लगातार 7 से 8 मिनट तक उड़ान भर सकता है।
किताब! पेड़ बनकर उग आती है
भले ही सुनने में यह अजीब लगे कि किसी किताब को पढ़ने के बाद जमीन में गाड़ दें तो वो पेड़ बन कर उग सकती है, लेकिन यह सच है। वास्तव में अब एक ऐसी किताब आ चुकी है जिसें आप पढ़ने के बाद जमीन गाड़कर पानी देते रहते हैं तो वो पेड़ बनकर उग जाएगी। इस किताब को अजेंटीना की पेक्वेनो एडिटर नाम की पब्लिशिंग कंपनी ने जारी किया है। कंपनी ने इस किताब को बच्चों के लिए अपने ट्री बुक ट्री प्रोजेक्ट के तहत ‘माय डेड वाज इन दी जंगल’ नाम से जारी किया है। कंपनी का यह किताब जारी करने के पीछे का मकसद 8 से 12 साल तक बच्चों में प्रकृति के प्रति लगाव की भावना में बढ़ावा करना है। कंपनी ने इस किताब को एसिड फ्री पेपर, ईकोलॉजिकल स्याही तथा जेकारांडा के बीजों से बनाया है। जिसके चलते एकबार पढ़ने के बाद इसे जमीन में गाड़कर पानी देते रहने जेकारांडा के बीज अंकुरित होकर पेड़ के रूप में पनप जाते हैं।
चीन चांद के अंधेरे वाले हिस्से पर उतारेगा एस्ट्रॉनट
चाइनीज सेंट्रेल टेलीविजन के मुताबिक चीन अब चांद के उस हिस्से में अपने एस्ट्रॉनट उतारने जा रहा है जहां अंधेरा रहता है। चांद के अंधेरे वाले हिस्से में अपना अंतरिक्षयान उतारने वाला चीन दुनिया का पहला देश होगा। चीन के लूनर एक्सप्लोरेशन प्रोग्राम के चीफ इंजिनियर वू वैरेन ने इस बात का खुलासा किया है। उनके मुताबिक चीन चांग-4 प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है जिसके तहत एस्ट्रॉनट्स को चांद के अंधेरे वाले हिस्से में उतारा जाएगा। वू ने कहा है कि चांद का अंधेरे वाला हिस्सा पृथ्वी से जितना घना अंधेरे वाला दिखता है वास्तव में वैसा नहीं है। उनके मुताबिक चांद का यह दूसरा हिस्सा पृथ्वीवासियों के लिए अभी भी रहस्य बना हुआ है जिस पर से जल्द ही पर्दा उठ जाएगा। गौरतलब है कि चांद के अंधेरे वाले हिस्से की पहली तस्वीर 1959 में ली गई थी। यह तस्वीर सोवियत रूस के लूना 3 उपग्रह ने ली थी। इसके बाद अपोलो 8 पहला ऐसा अंतरिक्षयान था जिसमें गए एस्ट्रॉनाट्स ने इसकी तस्वीरें ली थी।
ई-सिगरेट भी पहुंचा सकती है फेफड़ों को नुकसान!
आजकल सिगरेट की लत छुड़ाने के लिए ई-सिगरेट का चलन आम हो चुका है, लेकिन यह भी आपके फेफड़ों को नुकसान पहुँचा सकती है। एक शोध रिपोर्ट के मुताबिक ई-सिगरेट में अलग-अलग फ्लेवर के लिए इस्तेमाल होने वाला पदार्थ भी आपके फेफड़ों की कार्यप्रणाली को नुकसान पहुंचा सकता है। इस अध्ययन में सामने आया है कि ई-सिगरेट में फ्लेवर पैदा करने के कई तरह के पदार्थ इस्तेमाल होते हैं जो फेफड़ों के अहम कोशिकीय कार्यप्रणाली में बदलाव कर सकते हैं। अध्ययनकर्ताओं ने अपने 13 फ्लेवर पर परीक्षण किया उनमें से 5 का फेफड़ों पर बुरा प्रभाव पाया गया। इस शोध की मुख्य लेखिका अमेरिका के नॉर्थ कैरोलीना विष्वविद्यालय की टेंपरेंस रोवेल का कहना है कि अनुसार, ई-सिगरेट से निकलने वाले धुएं में विभिन्न रासायनिक यौगिकों मौजूद होते हैं तथा इनसे फेफड़े पर पड़ने वाले प्रभाव से लोग अक्सर अनजान होते हैं। रोवेल का कहना है कि मानव फेफड़ों के एपीथीलियल उत्तकों पर किए गए अध्ययन में पाया गया कि 13 फ्लेवरो में से 5 फ्लेवरों के कारण बड़ी संख्या में उत्तकों की व्यावहारिकता और विषाक्तता पर बुरा प्रभाव पड़ा, हालांकि यह ई-सिगरेट लेने की मात्रा पर भी निर्भर करता है। इस अध्ययन में कृत्रिम मानव फेफड़ों के एपीथीलियल उत्तकों को ई-सिगरेट के 13 फ्लेवरों के संपर्क में 30 मिनट तक या 24 घंटों तक रखा गया।
कैंसर कोशिकाओं का पता लगाएगा ‘माइक्रो रॉकेट’
भारत और जर्मनी के वैज्ञानिकों के एक समूह ने शरीर में बड़ी संख्या में मौजूद रक्त कोशिकाओं में ट्यूमर कोशिकाओं की पहचान कर पाने में सक्षम कार्बन नैनोट्यूब से माइक्रो रॉकेट बनाने का दावा किया है। पुणे के एक अनुसंधानकर्ता जयंत खंडारे ने कहा कि अरबों स्वस्थ रक्त कोशिकाओं में छिपी कुछ कैंसर उत्पन्न करने वाले कोशिकाओं को पकड़ना और कैंसर का पता लगाना चिकित्सकों के लिए मुश्किल कार्य है।
पत्ते को बनाया चार्जर, हवा से चलाता है स्कूटी!
गाजियाबाद का पवन ऐसे कई कारनामे कर चुका है, जो लोगों को दांतों तले उंगली दबाने पर मजबूर कर दें। फिर चाहे वो पीपल के पत्ते से मोबाइल की बैटरी चार्ज करना हो या हवा से स्कूटी चलाना। इन सबके लिए पवन कुमार ना सिर्फ खासी सुर्खियां बटोर चुका है, बल्कि महान वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के हाथों सम्मानित भी हो चुका है। महज आठवीं कक्षा के दौरान ही पवन पर कुछ अलग करने का जुनून सवार हुआ। वो इस्तेमाल के लायक न रहे हर घरेलू इलेक्ट्रॉनिक सामान में जोड़ तोड़ करता रहता। पिता पारस राम बताते हैं कि शुरू में उन्हें कुछ अजीब लगा था, लेकिन फिर धीरे-धीरे उसे वो प्रोत्साहित करने लगे। पारस राम कहते हैं कि पवन ने कई घरेलू इलेक्ट्रॉनिक सामानों पर प्रयोग किए। फेल भी होता रहा। घरवालों की डांट भी सुनी, लेकिन हार नहीं मानी।
इसी कोशिश में उसने सबसे पहले 2009 में पीपल के पत्तों से मोबाइल फोन की बैटरी चार्ज की। और जब कुछ और सोचा तो पीपल के पत्तों से पानी भी निकाला। जो पूरी तरह से शुद्ध और पीने लायक था। पवन ने कहा कि उसने किताब में सभी वस्तुओं के रिसाइकल फॉर्म से नई वस्तु प्राप्त करने के बारे में पढ़ा, तभी उसके दिमाग में आया कि अगर पत्तियां पूरे पेड़ के लिए खाना बनाती हैं, तो क्यों नहीं पत्तों से पानी भी वापस पाया जाए।
पवन जब नौवीं कक्षा में था, तभी आमिर खान की फिल्म ‘थ्री ईडियट्स’ रिलीज हुई। आमिर खान के रैंचो और फुंगसुकवांगडू के किरदार से प्रभावित होने के बाद पवन हद तक जुनूनी हो गया। इसी क्रम में प्रयोग करते हुए उसने एक दिन साइकिल से फोन चार्ज करने की देसी तरकीब खोज निकाली। जिसके लिए वो साइकिल के पहियों से उत्पन्न तरंगों को इलेक्ट्रॉन में बदलने में कोशिश की और सफल हुआ। इस कोशिश के तहत उसने साइकिल से ही इनवर्टर चार्ज किया, तो कई मोबाइल फोनों को एक साथ चार्ज करने में भी सफलता पाई। इस दौरान पवन ने टी-शर्ट पर सोलर पैनल लगाकर मोबाइल चार्ज किया, तो अपने सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट में जुट गया। पवन का ये प्रोजेक्ट था, हवा से स्कूटी चलाना। पवन इसमें भी सफल हुआ। चूंकि पवन ने साइकिल से इनवर्टर चार्ज करने की कला अपने दम पर हासिल कर ली थी, तो उसने यो-बाइक पर ये प्रयोग किया। पवन ने बताया कि यों बाइक में इस्तेमाल होने वाली 12 बोल्ट की बैटरी को चार्ज करने के लिए आगे पंखा लगा होता है। इस तरह से बाइक के चलते ही पंखा चलने लगता है, जिससे बैटरी चार्ज हो जाती है और उसी चार्ज बैटरी से यो बाइक को वो आराम से गाजियाबाद की सड़कों पर दौड़ाता है।
सेंसर कर देगा आगाह, खाना खराब हुआ है या नहीं
वैज्ञानिकों ने एक ऐसा सेंसर ईजाद किया है जो ये बताता है कि खाना खराब हो गया है या नहीं। इस सेंसर के संदेशों को बेतार संचार के माध्यम से मोबाइल फोन पर पढ़ा जा सकेगा। अनुसंधानकर्ताओं ने बताया कि यह सेंसर खाद्य सामग्री से एथेनॉल के उत्सर्जन को माप कर खाने के खराब होने की पहचान करेगा। सेंसर से मिली जानकारी ग्राहक या पाठक के पास पहुंचेगी और इससे संबद्ध डेटा एक सर्वर में सुरक्षित हो जाएगा। शोधार्थियों ने बताया कि इस एथेनॉल सेंसर का विकास फिनलैंड के टेक्निकल रिसर्च सेंटर ने किया है।