पत्र प्रक्रिया


पत्र प्रतिक्रिया

इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए’ के अंक देखता रहा हूँ, पढ़ता भी हूँ। आपके सौजन्य से ही यह गाहे-बगाहे मुझे मिल जाती है। हिन्दी में, इस तरह की विज्ञान पत्रिकाओं का अभाव ही है। विज्ञान ही क्यों, मानविकी में भी हमारे पास ऐसी पत्रिकाएँ कहाँ हैं जो सामान्य पाठकों से सीधे संवाद के लिए उत्सुक दिखाई दें? अकादेमिक जगत के दुहराव से भरे बोझिल शोध पत्रों की बात ही निराली है। कट-पेस्ट की अनंत कला की बहार है। विज्ञान, जीवन के महाप्रवाह में स्थित कोई मरकत द्वीप नहीं है। वह इसी अजस्र प्रवाह का हिस्सा है। निरंतर गतिशील और प्रवहमान, ठीक जीवन की ही तरह। आप उसे इसी तरह पहचानते हैं, यह बात हम जैसे पाठकों को उत्साह से भर देती है। अपनी ही भाषा में विज्ञान का जिक्र आते ही प्रो. सत्येन्द्र नाथ बोस जैसे ऋषि का ध्यान बरबस चला आता है। ‘हिग्स-बोसोन पार्टिकल’ की अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के बावजूद उन्होंने अपना बड़ा समय और श्रम भौतिकी की पाठ्य पुस्तकों को बांग्ला भाषा में तैयार करने (अनुवाद नहीं) में लगाया था। सत्येन्द्र नाथ बोस, जगदीश चंद्र बसु, डॉ. होमी भाभा, विक्रम साराभाई, जयंत विष्णु नार्लीकर, विश्वेश्वरैय्या, रमन, रामानुजम ये सभी जीवन को पूरी तरह जीने में विश्वास रखते हैं। और इनकी एक लम्बी उदाहरण योग्य कतार है। आप इसी कतार में दिखाई देते रहें, मेरी यही कामना है।

हिन्दी में मौलिक विज्ञान कथाओं का अभाव सा ही है। अक्टूबर 2014 के अंकऽमें जीशान हैदर ज़ैदी की कहानी ‘एथलीट’ पढ़ले-पढ़ते यह बात अचानक ही जेहन में आ गयी। निकट अतीत में ही सोवियत संघ के लेखक संगठन ने इस तरह का एक प्रोजेक्ट हाथ में लिया था। भले ही सोवियत संघ अब अतीत है और ऐसे प्रोजेक्ट से लेखकों के प्रति साम्यवादी तानाशाही (?) झलकती हो, परिणाम और परिमाण, दोनों ही दृष्टि से उसकी कुछ सफलताएँ हैं। क्या हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं में ऐसा कोई प्रोजेक्ट नहीं हो सकता?

                                                                                                                      राजेंद्र शर्मा, भोपाल

 

माह अक्टूबर और नवंबर ‘इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए’ के अंक आप और आपकी टीम के परिश्रम के प्रमाण हैं। दोनों अंकों में विज्ञान समाचार महत्वपूर्ण हैं। अक्टूबर के अंक में हिचबॉट दिलचस्प सूचना है। विज्ञान कथा ‘एथलीट’ एक गंभीर साहित्यिक रचना है। विषय वस्तु तो जीवन के किसी भी पक्ष की हो सकती है। कहानी इस पहलू की ओर भी इशारा करती है कि किसी भी आविष्कार के उपयोग का संबंध समाज रचना और विचारधारा से होता है। लेखक को बधाई। यह प्रश्न नवम्बर अंक के लेख ‘नई तकनीक बदल देगी दुनिया’ से भी जुड़ता है। तकनीक दुनिया को नहीं बदलती - बदलता है आदमी। तकनीक का इस्तेमाल तो आदमी को मारने के लिए भी होता है। लेख बेहद महत्वपूर्ण है- डराता भी है। तकनीक का इस्तेमाल कौन और किसके लिए कर रहा है यह सोच का विषय है। अंतरिक्ष की सौर ऊर्जा यदि मल्टीनेशनल को सौंप दी गईं तो स्थिति आज जैसी ही होगी। वह थैली शाहों का फायदा करेगी, जनता का नहीं। अतः तकनीक की तरक्की के साथ नैतिक और मानव भविष्य का प्रश्न भी जुड़ा। ‘ब्रेन कम्प्यूटर इंटरफेस’ की तकनीक हिटलर जैसे तानाशाह या अमानवीय सत्ता जिसमें पूंजीवाद भी शामिल है, के साथ में हो तो परिणाम स्पष्ट है अतः उसके स्वागत करने के समय इन बिन्दुओं पर भी चर्चा क्या जरूरी नहीं है? लेखक ने इसका स्पर्श तक नहीं किया! क्या तकनीक और वैज्ञानिक आविष्कार समाज नरपेक्ष्य हैं? मैं केवल यह सवाल उठा रहा हूँ कि वैज्ञानिक सोच और नैतिक प्रश्न संलग्न है। विशुद्ध राजनीति, विशुद्ध कला, समाज नरपेक्ष्य साहित्य की तरह विशुद्ध वैज्ञानिक आविष्कार की प्रशंसा तारीफ के काबिल तो है- वह मानवीय और नैतिक भी हो जरूरी नहीं। क्या विचारों को भी शामिल किया जा सकता है? क्वांटम भौतिकी कविता का आध्यात्मिक पहलू रेखांकित करने योग्य है। एक अच्छी कविता का अच्छा अनुवाद है। इसे पढ़ कर आइंस्टीन याद आते हैं। विज्ञान कथा ‘रॉबिन से मुलाकात’ बहुत रोचक है। आपकी पत्रिका रोचक के अलावा विचारोत्तेजक भी है, साथ ही बेहद पठनीय भी। बधाई।

रमाकांत श्रीवास्तव, भोपाल

 

पत्रिका का दिसंबर अंक बहुत ही आकर्षक और सुरुचि संपन्न सामग्री से भरा है। जिसे पढ़कर लगता है कि संपादकीय टीम ने अतिरिक्त परिश्रम किया है अन्यथा अन्य पत्रिकाएं तो अन्य जगहों से पाठ्य सामग्री शिफ्ट करती हैं। आपने कॉपी कट-पेस्ट की कुप्रथा को तोड़ा है। यदि इसे अन्यथा न लें तो पूर्व के अंक भी इससे अछूते नहीं थे। आपके इसी कुशल संपादन के कारण मुझे इस पत्रिका ने पढ़ने के लिए प्रेरित किया। दिसम्बर अंक में छपा लेख ‘इबोला’ बहुत ही उपयोगी और समयपरक है जो आपके स्तम्भ ‘सामयिक’ को सार्थक करता है। मैं यहाँ आपका ध्यान अपने छोटे से नगर की ओर आकर्षित करना चाहूँगी जहाँ तीन बड़े लेखक हुए हैं जिन्होंने हिन्दी में लेखन किया वे हैं नरेश मेहता, राजेश जोशी और नरेन्द्र गौड़। मैं चाहती हूँ कि कोई विज्ञान लेखन भी करे।

- निशा राठौर, शाजापुर

 

‘इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए’ पत्रिका का एक और सधा तथा कसा हुआ अंक मिला। पहले तो संपादक तथा पूरी टीम को इसके लिए बहुत बधाई। जहाँ ‘गरम हो रही धरती’ जैसी संपादकीय, ‘इबोला: एक लाइलाज वायरस रोग’ जैसे सामयिक लेखों ने पाठक को बांधे रखा वहीं ‘भारत पाक युद्ध की अनकही विज्ञान गाथा’ के ऐतिहासिक पृष्ठ ने दूसरे ही पहलू पर प्रकाश डाला। संपादक से निवेदन है पत्रिका में आलेखों की लम्बाईं को कुछ बढ़ाया जाये। आलेख कम से कम चार या उससे अधिक पृष्ठ का हो तो पढ़ने में एक लय बनी रहती है और आलेख के प्रति समर्पण का भाव बन जाता है। विज्ञान समाचार के अलावा भी अन्य छोटी-छोटी रोचक जानकारियों का समावेशन हो तो पत्रिका का दायरा और बढ़ जाता है।

- जितेन्द्र श्रीवास्तव, नरसिंहपुर