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प्रकृति के सुरम्य वातावरण में विज्ञान की कार्यशाला

 
विगत दिनों सी.वी.रमन सेन्टर फॉर साइंस कम्यूनिकेशन, रबिन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय, भोपाल के सहयोग से विज्ञान प्रसार एवं साइन्स सेन्टर (ग्वालियर) म.प्र। द्वारा 28 जनवरी से 31 जनवरी 2019 तक आयोजित प्रकृति अध्ययन शिविर कैम्प संपन्न हुआ।  प्रस्तुत है शिविर के आयोजन और उसके सार्थक पहलुओं की पड़ताल करता यह आलेख- 
 
बच्चों के लिए विज्ञान विषय पर लिखना बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है, वहीं विज्ञान विषयक प्रायोगिक गतिविधियाँ करना तो और भी चुनौतीपूर्ण है। लिखते हुए या एक्टिविटी के साथ बच्चों को बातचीत के अंदाज़ में विज्ञान समझाते चलना और संवाद करते-करते उनके भीतर वैज्ञानिक सोच पिरोना बहुत बारीक काम है।  ऐसा करते समय कई बार यह महसूस हुआ कि सिखाने के कई पुराने तरीकों में कुछ बदलाव जरूरी हैं, समय के अनुसार भी और डिजिटल दुनिया के व्यावहारिक-नैतिक मापदंडों के अनुसार भी। यह शिविर चार दिनों तक प्रकृति के सुरम्य वातावरण में और 50 एकड़ में विस्तारित भोपाल के रबिन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय परिसर में निर्बाध तरीके से चला जिसमें प्रकृति से जुड़े प्रत्येक आयाम की विभिन्न गतिविधियाँ बच्चों को सिखाई गई। इस शिविर में मैंने देखा कि मुख्य स्रोत वैज्ञानिक व वरिष्ठ विज्ञान प्रसारक संध्या वर्मा गाँव-देहात के उन बच्चों के लिए और उनके साथ बड़ी ही आत्मीयता और डूबकर काम कर रही हैं जो प्रायः उपेक्षित ही रह जाते हैं। इन बच्चों के लिए ऐसे शिविरों के आयोजनों से प्रकृति को देखने की नई दृष्टि विकसित होती है और ऐसे शिविरों के माध्यम से इम्प्लांट की गई जानकारी वह भी खुद करके सीखो के अंदाज़ में। वास्तव में विज्ञान को जानने-समझने और समझाने का यही तरीका मुझे सार्थक लगता है, साथ ही इससे हमारे आसपास उपलब्ध प्रकृति की जानकारी को जीवन में सही तरीके से सही जगह उपयोग करने की समझ भी विकसित होती है। यह प्रक्रिया एक नए आत्मविश्वासी व्यक्तित्व को जन्म देती है। आज जब शहरों के बच्चों के पास जानकारियाँ तो पहुँच में हैं लेकिन उन्हें प्रकृति के माध्यम से समझने का माहौल नहीं है ऐसे में ग्रामीण बच्चों के बीच किया गया यह प्रयास आयोजकों द्वारा प्रस्तुत एक मॉडल भी है जिसे गंभीरता से देखा जाना चाहिए, जो शिक्षकों और नए ज़माने के बच्चों के लिए भी बेहद लाभकारी सिद्ध होगा। ऐसे आयोजनों की जानकारी दूर-दराज़ के सभी हिस्सों में भी पहुँचना चाहिए ताकि प्रेरणा और उत्साह से भरे हुए छोटे-बड़े-बुज़ुर्ग सभी के लिए सुलभ विज्ञान शिक्षण की सोच को एक राह मिले। प्रकृति अध्ययन शिविर में वरिष्ठ चिकित्सक डॉ.वी.के। भारद्वाज ने यह बात शिद्दत से उठाई कि प्रकृति की बात करते समय सबसे पहले प्रकृति या वातावरण हमारे दिल में होना चाहिए क्योंकि यदि हम प्रकृति से मन से जुड़ पायेंगे तभी हम उसे अच्छी तरह समझ सकते हैं। हमारे घर आँगन का वातावरण हमारे मन में संस्कार के बीज बोता है और प्रकृति से बड़ी औषधि कोई भी नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि हम पहले अपनी पर्यावरण संबंधी समस्याओं को क्रमबद्ध तरीके से चिहिृत करना सीखना होगा तत्पश्चात ही उन्हें सुलझाने का काम योजनाबद्ध तरीके से संभव होगा। डॉ। भारद्वाज ने इस अवसर पर बच्चों में लोकप्रिय सोहनलाल द्विवेदी की प्रेरक कविता “कोशिश करने वाले की हार नहीं होती’’ का भी उल्लेख किया। कार्यक्रम में यूथ होस्टल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष श्री राजपूत की खास उपस्थिति रही, उन्होंने बच्चों को यूथ होस्टल एसोसिएशन ऑफ इंडिया से जुड़ने की सलाह दी और एक दूसरे और व्यापक फलक में काम कर रहे अन्य क्षेत्रों के विषय-विशेषज्ञों के सर्कल का विस्तार से परिचय दिया। उद्घाटन कार्यक्रम में कार्यशाला को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय के सी.वी.रमन सेन्टर फॉर साइंस कम्यूनिकेशन के निदेशक राग तेलंग ने कहा कि हमें खुशी है कि कार्यशाला का आयोजन हमारे परिसर में किया जा रहा है, उन्होंने इस संयुक्त उपक्रम की सफलता के लिए आश्वस्त किया। इस अभिनव प्रयास और विश्वविद्यालयीन छात्रों के बीच हुए आयोजन को उन्होंने किशोरों और युवाओं के बीच पुल का काम करने वाला आयोजन निरुपित किया व साइन्स सेन्टर ग्वालियर व विज्ञान प्रसार को इसके लिए बधाई दी। इस कार्यशाला के माध्यम से प्रकृति को नजदीक से समझने आये सतना, टीकमगढ़, रायसेन, उज्जैन एवं सीहोर के ग्रामीण अंचल के स्कूलों के 60 से अधिक विभिन्न किशोर वे के प्रतिभागियों ने शिरकत की। 
इस विश्वविद्यालय में या कहें प्रकृति की गोद में बसे इस स्कूल में विज्ञान की विभिन्न प्रकार प्रयोगशालाएं हैं जिनमें शोध और नवाचार का काम होता है और परिसर के रास्तों की लाइटें और उसके अन्दर चलने वाले ई रिक्शा पूरी तरह सौर ऊर्जा से संचालित है। यहाँ एक सौर ऊर्जा पार्क भी है जिसे सब बच्चों ने बड़ी ही उत्सुकता से देखा, शीघ्र ही पूरा परिसर सौर ऊर्जा से संचालित होने की राह पर है। परिसर में 500 से अधिक पेड़-पौधे लगे हैं जिनकी देखभाल और इनसे गिरने वाले पत्तों का प्रबंधन भी परिसर में विश्वविद्यालय परिवार द्वारा ही होता है। इस कार्यशाला ने ज़मीन से जुड़े गाँवों के इन बच्चों को खुलकर बोलने का या कहें खुद को अभिव्यक्त करने का मौका-हौसला दिया जिसकी जितनी भी प्रशंसा की जाये कम है। यह भी एक कारण रहा कि बच्चों ने पूरे उत्साह और आत्मविश्वास के साथ अपनी रचनाओं की प्रस्तुति दी। यह सब लिखते हुए मैं इन्हीं दिनों दिवंगत मेरे मित्र और ओरिगामी के अप्रतिम कलाकार अशोक रोकड़े जी को याद करता हूँ जिनमें ऐसे ज़मीनी बच्चों के साथ बच्चों की तरह घुल मिलकर काम करने का बेइंतहा ज़ज्बा था, ऐसे लोग अब कम ही बचे हैं जो बिना किसी अपेक्षा के वह भी जिंदादिली के साथ और अपनी ही पहल पर समाज में नई दुनिया की तस्वीरें बनाने और उनमें रंग भरने में यकीन रखते हों। अशोक को याद करना और ऐसे लोगों के काम को समाज में रेखांकित करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है यह सोचते और कहते हुए मुझे संतोष है।
कार्यशाला के समापन अवसर पर बच्चों के गूंजते कलरव के बीच आयोजित कार्यक्रम में आयोजकों और देश के इन भावी वैज्ञानिकों को संबोधित करते हुए सक्रिय विज्ञान चिन्तक और ट्रेनर श्री संजय अग्रवाल ने बच्चों के बनाए अभिनव मॉडलों की भूरि-भूरि प्रशंसा की और सबको बारी से सम्मानित किया। विज्ञान पत्रिकाएँ कैसे तैयार होती हैं और उसका संपादन कैसे किया जाता है इसे ‘इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए’ पत्रिका के संपादक मंडल के सदस्य मोहन सगोरिया और रवीन्द्र जैन ने मंच से विस्तार से बताया और बच्चों की पत्रिका में दिलचस्पी को सराहा।  वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.एस.आर.अवस्थी की बच्चों के बीच सक्रियता ऐसी रही कि संध्या वर्मा जी ने उन्हें पिता समान निरुपित किया और उम्मीद ज़ाहिर की कि उनका मार्गदर्शन हमेशा की तरह विज्ञान की गतिविधियों में मिलता रहेगा। अफ्रीकी देश घाना से आये विश्वविद्यालय में अध्ययनरत छात्र माइकल अमोको सहित अन्य भारतीय छात्रों व अलुमिनाय जैसे संदीप पोद्दार, शिशिर सराठे, वैशाली, आयुषी से मेरी लम्बी बातचीत हुई। ये सभी साइंस ग्रुप इग्नाइटेड माइंड्स के सदस्य हैं, इन सबने अपने दिलचस्प संस्मरण मुझसे साझा किये। सबने ख़ुशी जताते हुए कहा कि यह अच्छा है कि ऐसे कैम्प जीवंत अहसास के माध्यम से सिखाने के उपक्रम होते हैं, शिक्षा में सिर्फ पढ़ने को अंतिम लक्ष्य मान लिया जाता है जबकि विज्ञान के आयाम देखने, सुनने, छूने से ही समझ आते हैं, आप चीज़ों को विजुअलाइज़ करना सीखते हैं, यह प्रक्रिया विज्ञान की जटिलता को सरल करती है जबकि वहीं किताबों में बातें निष्प्राण रूप में लिखी प्रतीत होती होती हैं। रबिन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय से सम्बद्ध युवाओं के समूह इग्नाइटेड माइंड्स की प्रणेता संगीता जौहरी व दीप्ति जायसवाल ने इस आयोजन में बच्चों से विज्ञान प्रसार की ज़रूरत के बारे में विस्तार से बातचीत की और उन्हें आगे की यात्राओं में साथ लेकर चलने के प्रति आश्वस्त किया। उल्लेखनीय है इग्नाइटेड माइंड्स जैसे समूह की संकल्पना विश्वविद्यालय के चांसलर संतोष चौबे जी ने एक कार्यक्रम के दौरान हम सबसे साझा की थी जो अब अस्तित्वरूप में आयी है। इस अवसर पर साइन्स सेन्टर द्वारा स्व-क्रिएशन के माध्यम से निर्मित हेंड मेड की फाइल व हेण्ड बेग के प्रथम उत्पादों का लोकार्पण भी किया गया। सबका आभार बी.एल। मलैया ने किया। विश्वविद्यालय परिसर में बच्चों की समुचित व्यवस्था का भार ऋत्विक चौबे, सतीश अहिरवार, राकेश मन्नान, रामदास, रवि व अन्य ने मुख्य रूप से संभाला।
पूरे चार दिन हमारा रबिन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय परिसर एक नई उर्जा से सराबोर रहा, इस दौरान बच्चों ने पेड़-पौधों के इर्द गिर्द खूब फोटो खींचे, प्रकृति को जाना, खुलकर खिलखिलाए, खेल-खेल में विज्ञान सीखा, दुनिया को जाना। जी हां ! खेल-खेल में दुनिया को जानना ही एक सही और वैज्ञानिक तरीका है और इसी तरीके से ही जीवन में जीवन की सच्ची खुशी को ढूंढा और समझा जा सकता है।