विज्ञान सार्वभौमिक होता है
मनीष मोहन गोरे
इस वर्ष मुंबई विश्वविद्यालय ने भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 102वीं सम्मेलन की मेजबानी की। यह आयोजन 3.7 जनवरी 2015 के दौरान किया गया और इसमें देश-दुनिया से लगभग 12000 वैज्ञानिकों, गणमान्य व्यक्तियों, शिक्षकों, अनुसंधानकर्ताओं ने हिस्सा लिया। इसमें अनेक नोबेल विजेता वैज्ञानिकों ने भी शिरकत की। भारतीय विज्ञान कांग्रेस का आयोजन विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की एक स्वायत्त संस्था भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन कोलकाता द्वारा किया जाता है। इस संस्था की स्थापना वर्ष 1914 में की गई थी औरत भी से इसकी वार्षिक बैठकें होती हैं। इस संस्था से वर्तमान समय में लगभग 30 हजार वैज्ञानिक संबद्ध हैं।
परम्परा के अनुसार भारतीय विज्ञान कांग्रेस के इस 102वीं सम्मेलन का उद्घाटन भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 3 जनवरी 2015 को किया। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि भारत ने प्राचीन काल से लेकर अब तक गणित, चिकित्सा, धातुकर्म, वस्त्र उद्योग, वास्तुकला तथा खगोलिकी जैसे विज्ञान व प्रौद्योगिकी के विविध क्षेत्रों में अनेक महान योगदान दिए हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारा पड़ोसी देश चीन केवल अपनी वैज्ञानिक क्षमता व मेधा के बल पर आज विश्व का दूसरी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था के रूप में उभर कर सामने आया है। उन्होंने कहा कि हमारे देश के विकास और शासन में विज्ञान व प्रौद्योगिकी एक अनमोल सहायक के रूप में है। उन्होंने वैज्ञानिकों पर भरोसा जताया और कहा कि वे केवल अपने अनुसंधान पर ध्यान दंें तथा अनुदान प्राप्त करने के लिए सरकारी प्रक्रियाओं में अपना सिर न खपाएं। देश में विज्ञान व प्रौद्योगिकी अनुसंधान के क्षेत्र में अनुदान के लिए एक व्यापक आधार वाली युक्ति की उन्होंने जरूरत बताई। प्रधानमंत्री ने भारत के प्रख्यात वैज्ञानिक वसंत गोवरीकर के निधन पर शोध भी जताया। गोवरीकर विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के पूर्व सचिव भी रह चुके हैं और 2 जनवरी 2015 को पुणे में उनका निधन हो गया था। प्रधानमंत्री ने देश के बच्चों और युवाओं को आह्वान किया और कहा कि देश के विकास के लिए उन्हें वैज्ञानिक अनुसंधान में आगे आना आवश्यक है। प्रधानमंत्री ने अपने वक्तव्य में आगे कहा कि विज्ञान सार्वभौमिक होता है, परंतु प्रौद्योगिकी स्थानीय हो सकती है। अगर हम अपने परंपरागत एवं स्थानीय ज्ञान और प्रौद्योगिकियों का समावेश कर दें तो पहले से बेहतर, प्रभावशाली, तथा स्थायी समाधान सामने आ सकते हैं जिससे मानव का विकास व प्रगति की जा सकती है। उन्होंने कहा कि उनकी नजर में विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा नवाचार के लाभ सबसे गरीब व सबसे दूर रहने वाले लोगों तक अवश्य पहुँचने चाहिए।
भारतीय विज्ञान कांग्रेस का अतीत
भारतीय विज्ञान कांग्रेस का आयोजन कोलकाता की एक संस्था भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन (इस्का) के द्वारा प्रति वर्ष किया जाता है। इस्का की स्थापना वर्ष 1914 में की गई थी और वर्तमान में इसकी स्थापना के 100 वर्ष पूरे हो चुके हैं। इस संस्था के आरंभ के पीछे दो दूरदर्शी ब्रिटिश रसायनज्ञों प्रो.जे.एल. साइमसान और प्रो. पी.एस. मैक मोहन को श्रेय जाता है। उनका मानना था कि वैज्ञानिकों व अनुसंधानकर्ताओं की वार्षिक बैठक करने से भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान की उत्प्रेरणा जगेगी। इस्काकी स्थापना उन्होंने ब्रिटिश एसोसिएशन फॉर दी एडवांसमेंट ऑफ सांइस के तर्ज पर किया था। इस्का की स्थापना भारत में विज्ञान, वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने, वार्षिक कांग्रेस का आयोजन करने, इस हेतु प्रोसीडिंग, जर्नल आदि के प्रकाशन आदि जैसे कुछ प्रमुख उद्देश्यों के लिए किया गया था।
पहले भारतीय विज्ञान कांग्रेस का आयोजन 15-17 जनवरी 19914 कोकलकत्ता (अब कोलकाता) के एशिएटिक सोसाइटी के प्रांगण मंे किया गया था। इस विज्ञान कांग्रेस की अध्यक्षता कलकत्ता विश्वविद्यालय के तत्कालीन तत्कालीन कुलपति सर आशुतोष मुखर्जी ने की थी। इसमें भारत एवं विदेश से कुल 105 वैज्ञानिकों ने हिस्सा लिया था। भारतीय विज्ञान कांग्रेस का रजत जंयती सम्मेजन 1938 मंे कलकत्ता (अब कोलकाता में किया गया था। भारतीय विज्ञान कांग्रेस का स्वर्ण जंयती अधिवेशन 1963 में दिल्ली में आयाजित किया गया था।वर्ष 1973 में इसका हीरक जंयती सम्मेलन चंडीगढ़ में सम्पन्न हुआ था। भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन की स्थापना के 75 वर्ष पूरा होने के उपलक्ष्य में इसकी प्लैटिनम जुबली सन् 1988 में मनाई गई। इस मौके पर एसोसिएशन में ‘इंडियन सांइस कांग्रेस एसासिएशन-ग्रोथ एंड एक्टिविटिज’ शीर्षक से एक विशेष विवरण पुस्तिका प्रकाशित किया गया था जिसमें वर्षों के दौरान संस्था के प्रमुख कार्यक्रमों तथा उपलब्धियों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया था। भारतीय विज्ञान कांग्रेस एसोसिएशन का 100वां सम्मेलन वर्ष 2013 में कलकत्ता विश्वविद्यालय, कोलकाता में आयोजित हुआ था। इस शताब्दी समारोह का मुख्य शीर्षक ‘भारत के भविष्य को आकार देता हुआ विज्ञान’ था। इस समारोह का उद्घाटन भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने किया था।
नोबेल विजेताओं की उपस्थिति
भारतीय विज्ञान कांग्रेस के 102वीं सम्मेलन के अवसर पर विश्व के अनेक देशों से अनेक नोबेल विजेता वैज्ञानिक पधारे थे जिनमंे प्रमुख रहे पालनर्स (लंदन) कूर्टवूथ्रिक (स्विट्जरलैंड), अदाई योन (इजरायल), रैंडीस्केकमन (बर्कले) तथा मोहम्मद यूनूस (बांग्लादेश)।
मानव कल्याणकारी होना चाहिए वैज्ञानिक अनुसंधान: डॉ. हर्ष वर्धन
विज्ञान और प्रौद्योगिकी एवं पृथ्वी विज्ञान मंत्री ने भारतीय विज्ञान कांग्रेस सम्मेलन के अवसर पर कहा कि भारत हमेशा से ‘‘वसुधैवकुटुंबकम’’ के सिद्धांत पर विश्वास करता आया है और ज्ञान-विज्ञान का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहा है। उन्होंने कहा कि भारतीय वैज्ञानिकों ने निःस्वार्थ भाव से अनुसंधान कार्य किए हैं। डॉ. हर्ष वर्धन ने भारतीय वैज्ञानिकों से मानव कल्याण व राष्ट्रीय विकास के लिए नई और बेहतर प्रौद्योगिकियों के विकास का आह्वान किया।
उन्होंने प्राचीन भारतीय गं्रथ ऋगवेद और यजुर्वेद का उदाहरण देते हुए बताया भारत के पास एक समृद्ध वैज्ञानिक विरासत रही है। भारतीय मनीषियों ने पृथ्वी की आयु की गणना की थी; शून्य तथा दशमलव की अवधारणा भारत की देन हैं। विज्ञान मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन ने भारतीय वैज्ञानिकों का ऊर्जा के अन्य स्रोतों पर शोध करने पर बल दिया।
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