ग्लोबल पोजिषनिंग सिस्टम के नए पड़ाव
षषांक द्विवेदी
आईआरएनएसएस-1 सी नौवहन प्रणाली के तहत छोड़े जाने वाले कुल सात उपग्रहों में से एक है। इसे सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित करने के साथ ही देश कुछ गिने-चुने देशों में शामिल हो गया है, जिसके पास इस तरह की प्रणाली है। अमेरिका के जीपीएस यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम की तरह भारत ने खुद का नैविगेशन सिस्टम स्थापित करने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ा दिया है।
नेवीगेशन सैटेलाइट की कामयाबी
अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक बड़ी कामयाबी हासिल करते हुए इसरो ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से भारत के तीसरे नेवीगेशन सैटेलाइट आईआरएनएसएस-1 सी का पीएसएलवी-सी 26 के जरिए सफल प्रक्षेपण कर दिया । आईआरएनएसएस-1 सी नौवहन प्रणाली के तहत छोड़े जाने वाले कुल सात उपग्रहों में से एक है। इसे सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित करने के साथ ही देश कुछ गिने-चुने देशों में शामिल हो गया है, जिसके पास इस तरह की प्रणाली है। अमेरिका के जीपीएस यानी ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम की तरह भारत ने खुद का नेवीगेशन सिस्टम स्थापित करने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ा दिया है। यह अभियान देश के अंतरिक्ष कार्यक्रमों को नई दिशा प्रदान कर रहा है । इससे देश का नैवीगेशन सिस्टम मजबूत होगा जो परिवहनों तथा उनकी सही स्थिति एवं स्थान का पता लगाने में यह सहायक सिद्ध होगा। पीएसएलवी सी26 ने कुल 1425 किग्रा वजन वाले नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस 1.सी को उसकी निर्दिष्ट कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया। भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली इंडियन रीजनल नैविगेशनल सैटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस) इसरो की एक महत्वाकांक्षी योजना है। इसके तहत सात उपग्रहों को स्थापित किया जाना है। इसरो ने आईआरएनएसएस का विकास इस तरह किया है कि यह अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम जीपीएस, के समकक्ष खड़ा हो सके। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो द्वारा इस शृंखला के दो उपग्रह आईआरएनएसएस 1ए को एक जुलाई 2013 और आईआरएनएसएस 1बी को इस साल चार अप्रैल को प्रक्षेपित किया गया था। आईआरएनएसएस प्रणाली को शुरू करने के लिए सात उपग्रहों में से कम से कम चार के प्रक्षेपण की जरूरत है। यह अमेरिका के जीपीएस, रूस के ग्लोनास ,यूरोप के गैलिलियो , चीन का बीदयू सेटेलाइट नेवीगेशन सिस्टम और जापान के क्वासी जेनिथ सेटेलाइट सिस्टम की तरह ही है।
कैसे काम करता है जीपीएस?
जीपीएस (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) एक उपग्रह प्रणाली पर काम करता है। जीपीएस सीधे सेटेलाइट से कनेक्ट होता है और उपग्रहों द्वारा भेजे गए संदेशों पर काम करती है। जीपीएस डिवाइस उपग्रह से प्राप्त सिंगनल द्वारा उस जगह को मैप में दर्शाती रहती है। वर्तमान में जीपीएस तीन प्रमुख क्षेत्रों से मिलकर बना हुआ है, स्पेस सेगमेंट, कंट्रोल सेगमेंट और यूजर सेगमेंट। जीपीएस रिसीवर अपनी स्थिति का आकलन, पृथ्वी से ऊपर रखे गए जीपीएस सेटेलाइट द्वारा भेजे जाने वाले सिग्नलों के आधार पर करता है। प्रत्येक सेटेलाइट लगातार मैसेज ट्रांसमिट करता रहता है। रिसीवर प्रत्येक मैसेज का ट्रांजिट समय नोट करता है और प्रत्येक सेटेलाइट से दूरी की गणना करता है। ऐसा माना जाता है कि रिसीवर बेहतर गणना के लिए चार सेटेलाइट का इस्तेमाल करता है। इससे यूजर की थ्रीडी स्थिति (अक्षांश, देशांतर रेखा और उन्नतांश) के बारे में पता चल जाता है। एक बार जीपीएस की स्थिति का पता चलने के बाद, जीपीएस यूनिट दूसरी जानकारियां जैसे कि स्पीड, ट्रेक, ट्रिप, दूरी, जगह से दूरी, सूर्य उगने और डूबने के समय के बारे में जानकारी एकत्र कर लेता है। आईआरएनएसएस के तहत भारत अपने भौगोलिक प्रदेशों तथा अपने आसपास के कुछ क्षेत्रों तक नैविगेशन की सुविधा रख पाएगा। इसके तहत भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा कुल 7 नैविगेशन सैटेलाइट अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किए जाने है, जोकि 36000 किलोमीटर की दूरी पर पृथ्वी की कक्षा का चक्कर लगाएंगे। यह भारत तथा इसके आसपास के 1500 किलोमीटर के दायरे में चक्कर लगाएंगे। जरूरत पड़ने पर उपग्रहों की संख्या बढ़ाकर नैविगेशन क्षेत्र में और विस्तार किया जा सकता है। आईआरएनएसएस दो माइक्रोवेव फ्रीक्वेंसी बैंड एल 5 और एस पर सिग्नल देते हैं। यह स्टैंडर्ड पोजीशनिंग सर्विस तथा रिस्ट्रिक्टेड सर्विस की सुविधा प्रदान करेगा। इसकी स्टैंडर्ड पोजीशनिंग सर्विस सुविधा जहां भारत में किसी भी क्षेत्र में किसी भी आदमी की स्थिति बताएगा, वहीं रिस्ट्रिक्टेड सर्विस सेना तथा महत्वपूर्ण सरकारी कार्यालयों के लिए सुविधाएं प्रदान करेगा।
भारतीय आईआरएनएसएस अमेरिकन नेविगेशन सिस्टम जीपीएस से कहीं अधिक बेहतर है। मात्र 7 सैटेलाइट के जरिए यह अभी 20 मीटर के रेंज में नेविगेशन की सुविधा दे सकता है, जबकि उम्मीद की जा रही है कि यह इससे भी बेहतर 15 मीटर रेंज में भी यह सुविधा देगा। जीपीएस की इस कार्यक्षमता के लिए 24 सैटेलाइट काम करते हैं, जबकि आईआरएनएसएस के लिए मात्र सात सैटेलाइट जरूरी है। सुरक्षा एजेंसियों और सेना के लिए सुरक्षा की दृष्टि से भी आईआरएनएसएस काफी बेहतर है। ये प्रणाली देश तथा देश की सीमा से 1500 किलोमीटर की दूरी तक के हिस्से में इसके उपयोगकर्ता को सटीक स्थिति की सूचना देगी। यह इसका प्राथमिक सेवा क्षेत्र भी है। नौवहन उपग्रह आईआरएनएसएस के अनुप्रयोगों में नक्शा तैयार करना, जियोडेटिक आंकड़े जुटाना, समय का बिल्कुल सही पता लगाना, चालकों के लिए दृश्य और ध्वनि के जरिये नौवहन की जानकारी, मोबाइल फोनों के साथ एकीकरण, भूभागीय हवाई तथा समुद्री नौवहन तथा यात्रियों तथा लंबी यात्रा करने वालों को भूभागीय नौवहन की जानकारी देना आदि शामिल हैं। आईआरएनएसएस के सात उपग्रहों की यह शृंखला स्पेस सेगमेंट और ग्राउंड सेगमेंट दोनों के लिए है। आईआरएनएसएस के तीन उपग्रह भूस्थिर कक्षा जियोस्टेशनरी ऑर्बिट के लिए और चार उपग्रह भूस्थैतिक कक्षा जियोसिन्क्रोनस ऑर्बिट के लिए हैं। सातों उपग्रह वर्ष 2015 तक कक्षा में स्थापित कर दिए जाएंगे और तब आईआरएनएसएस प्रणाली शुरू हो जाएगी।
1425 किलोग्राम वजन के आईआरएनएसएस-1 सी उपग्रह के माध्यम से धरती, आकाश, जल में दिशासूचक, आपदा प्रबंधन, वाहनों की खोज, जहाजी बेड़े का प्रबंधन, मोबाइल फोन के साथ संपर्क, मैपिंग और भूगणित आदि कार्य किये जा सकेंगे। इस उपग्रह में दो सौर पैनल हैं। परमाणु घड़ी सहित नाजुक तत्वों के लिए विशेष तापीय नियंत्रण व्यवस्था डिजाइन और क्रियांवित की गई है। इसरो के अनुसार पीएसएलवी के एक्सएल वर्जन का सातवीं बार प्रयोग किया गया। इसरो ने भारी बारिश के बीच 22 अक्टूबर 2008 को इसी पैड से चंद्रयान मिशन का प्रक्षेपण किया था। उस समय भी पीएसएलवी एक्सएल वर्जन का प्रयोग प्रक्षेपण में किया गया था। इसके अलावा मंगल मिशन को भी यहीं से भेजा गया था। आईआरएनएसएस-1 सी उपग्रह का जीवनकाल दस साल हैं।
सेंट मार्ग्रेट इंजीनियरिंग कॉलेज, नीमराना जिला-अलवर
(दिल्ली-जयपुर हाईवे), राजस्थान,
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