विज्ञान


भारत की पहली सबसोनिक क्रूज मिसाइल निर्भय


षुकदेव प्रसाद


भारत के पास ‘ब्रह्मोस’ जैसी सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल तो पहले से ही मौजूद है जिसकी नौसेना, थल सेना में तैनाती हो चुकी है। इसके वायु सैनिक रूपांतरण का विकास हो रहा है। अब डीआरडीओ ने अपनी पहली सबसोनिक क्रूज मिसाइल भी विकसित कर ली है जिसे ‘निर्भय’ (भयमुक्त) नाम से अभिहित किया गया है। सबसोनिक का तात्पर्य उस मिसाइल से है जो ध्वनि के वेग (1मैक) से कम गति से गतिमान हो और ट्रांसोनिक का तात्पर्य .8.1ण्2 मैक की गति से गतिमान वस्तु से है। सुपरसोनिक मिसाइलें वे होती हैं जो ध्वनि के वेग से 1.2 से लेकर 5 गुना तीव्र वेग से गतिमान होती हैं। ‘ब्रह्मोस’ वायुमंडल में 2.8 से लेकर 3 मैक की गति से उड़ान भरती है, अतः इसे सुपरसोनिक कोटि में रखते हैं। हाइपरसोनिक मिसाइलें 5 से लेकर 10 मैक की गति से उड़ान भरती हैं जबकि हाई-हाइपरसोनिक मिसाइलें 10 से लेकर 25 मैक की गति से उड़ान भरती हैं और जब शटलें वायुमंडल में पुनर्प्रवेश करती हैं तो उनकी गति 25 मैक से अधिक होती है।

पहली उड़ान पर ही तुषारापात

यद्यपि डीआरडीओ ने तो अपनी तरफ से पूरी तैयारियां ठोंक बजाकर कर ली थीं लेकिन उड़ान के दौरान मिसाइल कुछ ही मिनटों में पथभ्रष्ट हो गई और चांदीपुर के निकट जमीन पर गिरकर ध्वस्त हो गई, गनीमत यह रही कि किसी भी व्यक्ति को कोई क्षति नहीं हुई। 12 मार्च, 2013 को प्रातः 11रू50 बजे मिसाइल को रोड मोबाइल लांचर से अंतरिम परीक्षण रेंज, चांदीपुर, ओडिशा से दागा गया। इसके प्रथम चरण के बूस्टर ने पर्याप्त उछाल प्रदान किया। बूस्टर इंजन और नियंत्रण प्रणालियों ने ठीक से कार्य निष्पादन किया। बूस्टर का अलगाव भी समुचित रूप से हुआ। उड़ान भरने (.67 मैक की गति से) के 20 मिनटों तक तो सब कुछ ठीक-ठाक रहा लेकिन इसी के बीच इसके उड़ान पथ में विचलन आ गया और मिसाइल धरती पर आ गिरी। उम्मीद की गई थी कि यह अपनी 1,000 किमी. की यात्रा पूर्ण करेगी, मगर कुछेक तकनीकी खामियों के कारण ऐसा नहीं हो पाया। रक्षा विशेषज्ञों ने ही इसकी उड़ान को बीच रास्ते में स्विच ऑफ कर दिया ताकि तटवासियों की जान का जोखिम न उठाना पड़े। इस तरह इस मिसाइल को डीआरडीओ के इंजीनियरों ने आधे रास्ते में ही ध्वस्त कर दिया। मिसाइल ने 250 कि.मी. तक की यात्रा तो की लेकिन इसी के बाद यह निम्न कक्षा में आने लगी। यदि यह उड़ान सफल होती तो इसे अपनी पूरी मारक दूरी की यात्रा करने में 45 से 60 मिनट तो लगते ही लेकिन मिसाइल 20 मिनटों की यात्रा के बाद पथभ्रष्ट हो गई। फलतः उसे डीआरडीओ ने जन-धन की अपार क्षति के मद्देनज़र बीच रास्ते में ही विनष्ट कर देना उचित समझा।

अंततः दूर हुआ गतिरोध

स्त्राताजिक भयादोहन की सक्षमता की दिशा में सन्नद्ध डीआरडीओ को अंततः एक लंबी जद्दोजहद के बाद सफलता मिल ही गई। 17 अक्टूबर, 2014 को आयोजित ‘निर्भय’ का दूसरा अभ्यास परीक्षण पूरी तरह सफल रहा। मिसाइल ‘आईटीआर’ चांदीपुर, उड़ीसा के लांच काम्प्लेक्स-3 से कनस्तर आधृत मोबाइल लांचर से प्रातः10ः05 बजे दागी गई और इसने रॉकेट की भांति लंबवत उड़ान भरी और एक वायुयान की भांति 0.7 मैक की गति से हवा में उड़ना शुरू कर दिया। धरती से 4.8 किमी. की ऊंचाई पर पहुंचने के बाद मैनुअवर्स की शृंखला संपन्न की गई। कुल उड़ान एक घंटे दस मिनट की थी। 350 किग्रा. के नकली युद्धशीर्ष के साथ मिसाइल ने बंगाल की खाड़ी में पूर्व निर्धारित लक्ष्य को अत्यंत परिशुद्धता के साथ गोता लगाते हुए ध्वस्त कर दिया।
‘निर्भय’ ‘दागो और भूल जाओ’ क्षमता से लैस मिसाइल है जैसा कि हमारा सतह से हवा में मारक प्रक्षेपास्त्र ‘नाग’ है। ‘नाग’ टैंक रोधी प्रक्षेपास्त्र है। इसे एक बार निर्देशित करने के बाद पुनः निर्देशन की आवश्यकता नहीं है। इसीलिए इसे ‘दागो और भूल जाओ’ प्रक्षेपास्त्र भी कहते हैं। यह 4-6 किमी. की दूरी से दुश्मन के किसी भी टैंक को ध्वस्त कर सकती है। यद्यपि इसके कई परीक्षण संपन्न किए जा चुके हैं लेकिन सैन्य मापदंडों पर यह खरी नहीं उतरी है, अतः फिलहाल इसकी सैन्य तैनाती नहीं हो सकी है।
कहना न होगा कि हमारी नई मिसाइल ‘निर्भय’ भी इस क्षमता से लैस है। आक्रमण के सही कोण और समय के अनुमान के अभिज्ञान की क्षमता इस मिसाइल में विद्यमान है।
डीआरडीओ के आनुषंगिक संगठन वैमानिक विकास प्रतिष्ठान बंगलौर द्वारा विकसित ‘निर्भय’ अपने साथ नाभिकीय युद्धशीर्ष और पांरपरिक युद्धशीर्ष दोनों ले जा सकता है। इसकी मारक क्षमता 1000 कि.मी. से भी अधिक है। डीआरडीओ के महानिदेशक अविनाश चंदर ने इस उड़ान की सफलता से विस्मित होते हुए इसे ‘महान क्षण’ की संज्ञा दी, कारण यह कि मिसाइल उम्मीदों से कहीं अधिक खरी उतरी। वास्तव में डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने इसकी मारक दूरी का लक्ष्य 900 किमी. निर्धारित किया था लेकिन मिसाइल ईंधन समाप्त होने तक उड़ान भरती रही और इसने इस अंतर्यात्रा में 1ए000 किमी. से अधिक दूरी की यात्रा संपन्न की।

निर्भय की विशिष्टताएँ

‘निर्भय’ सतह से सतह पर मारक प्रक्षेपास्त्र है। इस द्विचरणीय प्रक्षेपास्त्र में टर्बो जेट इंजन प्रयुक्त होता है। ‘निर्भय’ को डीआरडीओ की एक बंगलौर स्थित सुविधा वैमानिक विकास प्रतिष्ठान ;।मतवदंनजपबंस क्मअमसवचउमदज म्ेजंइसपेीउमदज. ।क्म्द्ध ने डिजाइन किया है। वस्तुतः ‘निर्भय’ चालक रहित विमान ;च्पसवजसमेे ज्ंतहमज ।पतबतंजि.च्ज्।द्ध ‘लक्ष्य’ का ही व्युत्पन्न है। ‘आकाश’ और ‘त्रिशूल’ जैसी मिसाइलें सतह से हवा में मार करती हैं ;ैनतंिबम.जव.।पत डपेेपसम . ै।डद्ध और इनके ही परीक्षण के लिए डीआरडीओ ने चालक रहित विमान ‘लक्ष्य’ का विकास किया है। जैसा कि ऊपर बताया जा चुका है कि यह ‘लक्ष्य’ का ही व्युत्पन्न है, अतः यही खूबियां ‘निर्भय’ में भी हैं। मसलन यह कि यह दिखता तो विमान जैसा है लेकिन यह युद्ध शीर्षों को भी गिरा सकता है। इसे रिमोट से नियंत्रित किया जा सकता है और वापस लौटाया जा सकता है। लेकिन इसकी पहली उड़ान में इसकी रिकवरी और किसी युद्धशीर्ष के गिराए जाने की कोई योजना नहीं बनाई गई थी। यह मात्र परीक्षण उड़ान थी और कुछेक पैरामीटरों की जांच करनी थी। यद्यपि ‘निर्भय’, धरती, वायु और सागर कहीं से भी दागी जा सकती है लेकिन आरंभिक उड़ान में इसे सड़क मार्ग ;त्वंक उवइपसम संनदबीमतद्ध से दागा गया। दागे जाने के बाद इसके प्रथम चरण से संबद्ध बूस्टर इसको उछाल देते हैं। बूस्टरों के अलगाव के बाद इसका दूसरा चरण 500 मीटर से 1 किमी. की ऊंचाई तक जा सकता है। यह लंबी अवधि तक ण्67 मैक की गति से अंतर्यात्रा कर सकता है। इसमें ईंधन के रूप में एटीएफ ;।अपंजपवद ज्नतइपदम थ्नमसद्ध यानी केरोसीन प्रयुक्त होता है जैसा कि सभी विमानों में।
‘निर्भय’ निम्न उन्नतांशों पर भी उड़ान भर सकती है मसलन यह कि पहाड़ियों और उनके चारों ओर चक्कर लगा सकती है और यह राडारों के पकड़ में भी नहीं आ सकती है। इसीलिए इसे ‘ट्री-टॉप’ मिसाइल भी कहते हैं। 
यह अपने लक्ष्य का पीछा तब तक कर सकती है जब तब कि उपयुक्त अवसर ढूंढ़ कर उसे ध्वस्त न कर दे। 
रक्षा विशेषज्ञ इसे अमेरिकी ‘टोमाहॉक’ के समतुल्य मानते हैं। 
यद्यपि एक क्रूज मिसाइल पाकिस्तान के पास भी है लेकिन पाक के ‘बाबर’ की मारक क्षमता मात्र 700 किमी. तक ही है।
‘निर्भय’ में अत्याधुनिक नैवीगेशन और निर्देशन प्रणालियां सम्प्रयुक्त हैं जो पाकिस्तानी क्रूज मिसाइल से श्रेष्ठतर हैं।   


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शुकदेव जी की दो विशेषताएं बहुत ध्यान आकर्षित करती हैं- एक तो यह कि उन्होंने इतनी डिग्रियों के बावजूद नौकरी नहीं की। विज्ञान और वैज्ञानिक लेखन को व्यवसाय के रूप में न लेते हुए मिशन के रूप में लिया। दूसरे उन्होंने अपने लेखन का माध्यम हिन्दी चुना। जबकि आज लोग अंग्रेजी में लिखने को सम्मान और आय दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण मानने लगे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि इसके जरिए वे रातों रात अमीर हो जायेंगे और दुनिया की बिरादरी में बैठने लायक हो जाएंगे, तब राष्ट्रभाषा में विज्ञान संबंधी आलेखन सचमुच एक साहस और मिशन ही है। यह भी देश सेवा का एक जज्बा है, जो इस अर्थयुग में निरंतर छीज रहा है।
यों शुकदेव प्रसाद जी के काम को भारत में सम्मान भी मिला है। उन्हें अनेक महत्वपूर्ण पुरस्कारों से विभूषित किया गया है। ‘साइंटिस्ट ऑफ टुमारो’ एक सुंदर उपाधि जैसा पुरस्कार है, जिसमें हम सबकी भी शुभकामना, आशा और इच्छा जुड़ी है। उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, डॉ.आत्माराम पुरस्कार, डॉ.संपूर्णानंद पुरस्कार, विज्ञान वाचस्पति, साहित्य महोपाध्याय जैसे सम्मान-पुरस्कार मिल चुके हैं। उन्होंने विज्ञान-भारती, विज्ञान वैचारिकी और पर्यावरण दर्शन जैसी पत्रिकाओं का संपादन भी किया।


प्रभाकर श्रोत्रिय 
पूर्व निदेशक
भारतीय ज्ञानपीठ