क्या है ब्रह्माण्ड का डार्क मैटर
डॉ. विजय कुमार उपाध्याय
हमारा ब्रह्माण्ड रहस्यों से पूर्ण तथा विचित्रताओं से भरा हुआ है। इसका जितना अधिक अध्ययन किया गया, इसमें उतनी ही अधिक विचित्रताएँ मिलती गयीं तथा उतने ही अधिक रहस्य सामने आते गये। प्रागैतिहासिक काल से ही मानव इसके रहस्यों का पता लगाने का प्रयास करता आया है। हमारे देश के प्राचीन ऋषि-मुनियों ने ब्रह्माण्ड के अध्ययन में अपना बहुमूल्य योगदान दिया तथा अपने अध्ययनों एवं शोधों से प्राप्त जानकारियों को पौराणिक तथा अन्य ग्रंथों में लिपिबद्ध किया। मध्यकाल तथा आधुनिक काल के दौरान भी अनेक वैज्ञानिकों ने ब्रह्माण्ड के अध्ययन द्वारा उसके रहस्यों को समझने का काफी प्रयास किया। परंतु ब्रह्माण्ड का जितना अधिक अध्ययन किया गया उतना ही अधिक रहस्य सामने आता गया। ब्रह्माण्ड का एक ऐसा ही महत्वपूर्ण रहस्य है ‘डार्क मैटर’ का जिसे पूरी तरह समझने में खगोल वैज्ञानिक लोग अभी तक कामयाब नहीं हो पाये हैं।
अब एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि डार्क मैटर है क्या चीज? सामान्य तौर पर ब्रह्माण्ड में जितनी भी चीजें हमें दिखायी पड़ती हैं वे या तो स्वयं ही प्रकाशमान हैं अर्थात प्रकाश का उत्सर्जन करती है अथवा वे किसी अन्य स्रोत से उत्सर्जित होने वाले प्रकाश को परावर्तित करती है। परन्तु ब्रह्माण्ड में पाया जाने वाला डार्क मैटर एक ऐसा पदार्थ है जो न तो प्रकाश का उत्सर्जन करता है और न किसी अन्य स्रोत से उत्सर्जित होने वाले प्रकाश को परावर्तित कर पाता है। इसी कारण से इस पदार्थ को डार्क मैटर कहा जाता है। अब पूछा जा सकता है कि यदि डार्क मैटर न तो प्रकाश का उत्सर्जन करता है और न परावर्तन अर्थात यह दिखाई नहीं पड़ता है तो फिर इसकी उपस्थिति का अनुमान कैसे लगाया जाता है? वस्तुतः खगोल वैज्ञानिकों द्वारा डार्क मैटर का अनुमान उस गुरुत्वाकर्षण बल के आधार पर लगाया गया जो उसके आसपास के पिण्डों पर अपना प्रभाव डालता है। खगोल वैज्ञानिकों द्वारा किये गये गहन अध्ययनों से जानकारी मिली है कि ब्रह्माण्ड में मौजूद कुल पदार्थ का लगभग 96 प्रतिशत भाग सिर्फ मैटर है तथा शेष 4 प्रतिशत दृश्य पदार्थ है।
अब प्रश्न उठता है कि डार्क मैटर की खोज कब तथा किसके द्वारा की गई? डार्क मैटर के संबंध में अनुमान सबसे पहले आज से लगभग आठ दशक पूर्व सन 1933 में लगाया गया था। इस अदृश्य पदार्थ की उपस्थिति का अनुमान लगाने वाला सबसे पहला व्यक्ति था स्विस मूल का अमरीकी नागरिक डॉ. फ्रिट्ज ज्विकी जो कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी में एक खगोलविद के रूप में कार्य कर रहा था। वह एक बार ‘कौमा’ नामक एक काफी दूरस्थ मंदाकिनी समूह का पर्यवेक्षण कर रहा था। उसने अपने द्वारा की गयी गणनाओं के आधार पर अनुमान लगाया कि इस मंदाकिनी समूह के अन्दर कुछ इस प्रकार का पदार्थ भी शामिल है जिसका पिण्डमान तो है परन्तु विद्युत चुम्बकीय तरंगों (अर्थात प्रकाश इत्यादि) का न तो उत्सर्जन करता है और न उनका परावर्तन। ज्विकी ने जब मंदाकिनी समूह के किनारे पर स्थित विभिन्न मंदाकिनियों की घूर्णन गति के आधार पर उपर्युक्त मंदाकिनी समूह के सम्पूर्ण पिण्डमान की गणना की तो पता चला कि यह पिण्डमान प्रयोगों द्वारा निकाले गये पिण्डमान का लगभग 400 गुना है। अतः इसे लुप्त पिण्डमान समस्या (मिसिंग मास प्रोब्लम) नाम दिया क्योंकि उस काल के दौरान ‘डार्क मैटर’ जैसे शब्द का नाम वैज्ञानिकों के बीच प्रचलन में नहीं आया था। शुरू-शुरू में खगोलविदों ने ज्विकी द्वारा लगाये गये अनुमान की बात पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया। परन्तु बाद कई अन्य खगोलविदों द्वारा किये गये अध्ययनों के आधार पर इस बात की पुष्टि हो गयी कि फ्रिट्ज ज्विकी द्वारा अनुमानित अदृश्य पदार्थ वास्तव में ब्रह्माण्ड में अस्तित्व में है। इन खगोल वैज्ञानिकों ने इस अदृश्य पदार्थ अथवा लुप्त पिण्डमान समस्या का एक नया नामकरण किया ‘डार्क मैटर’। जिन खगोल वैज्ञानिकों ने डार्क मैटर की उपस्थिति की बात साबित करने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया उनमें एक प्रमुख नाम है ‘वेरा रूबिन’ नामक खगोलविद का जो संयुक्त राज्य अमेरिका में वाशिंगटन स्थित कार्निज इंस्टीट्यूट के स्पेस मैगनेटिज्म विभाग में कार्य करता था। उसने अपने सहयोगी कैंट फोर्ड के साथ मिलकर सन 1960 से 1975 के बीच विभिन्न मंदाकिनी समूहों के पर्यवेक्षण से निष्कर्ष निकाला कि डार्क मैटर का अस्तित्व वास्तव में है। वेरा रूबिन तथा कैंट फोर्ड द्वारा निकाले गये उपर्युक्त निष्कर्ष के बाद तो डार्क मैटर के अध्ययन की दिशा में खगोल वैज्ञानिकों के बीच होड़ लग गयी तथा इस संबंध में समय-समय पर नये-नये तथ्य सामने आने लगे। विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा किये गये अध्ययनों से पता चला कि ब्रह्माण्ड में कुछ मंदाकिनियाँ ऐसी हैं जिनमें डार्क मैटर बिलकुल ही अनुपस्थित है। उदाहरणार्थ ऐसी ही एक मंदाकिनी का नाम है ‘ग्लोबुलर’। इसके ठीक विपरीत कुछ ऐसी मंदाकिनियां भी ब्रह्माण्ड में मौजूद हैं जिनमें दृश्य पदार्थ नगण्य परिमाण में पाया जाता है तथा ये लगभग पूर्णतः डार्क मैटर से निर्मित है। उदाहरण के तौर पर वर्गों नामक मंदाकिनी समूह में एक ऐसी ही मंदाकिनी मौजूद है।
अब एक महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि डार्क मैटर का संघटन क्या है अर्थात यह किस प्रकार के पदार्थ से बना हुआ है? शुरू-शुरू में अधिकांश खगोल वैज्ञानिकों की धारणा थी कि डार्क मैटर कृष्ण विवर (ब्लैक होल) का ही एक परिवर्तित रूप है। परन्तु अनेक वैज्ञानिकों द्वारा किये गये अध्ययनों एवं अनुसंधानों से इस बात की पुष्टि नहीं हो पायी। फिर कुछ वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि डार्क मैटर शायद ‘न्यूट्रीनों’ नामक कणों से बना हुआ है। न्यूट्रीनों की खोज ई.फर्मी नामक वैज्ञानिक द्वारा की गयी थी। न्यूट्रीनों एक प्रकार का आवेशरहित कण है जिसका पिण्डमान लगभग शून्य होता है। ये कण प्रकाश के वेग से गतिमान रहते हैं। परन्तु गहन अध्ययनों एवं शोधों के आधार पर इस बात की पूर्ण रूप से पुष्टि नहीं हो पायी कि डार्क मैटर का निर्माण न्यूट्रीनों नामक कणों से हुआ है। खगोल वैज्ञानिकों के मतानुसार वृहत स्तर पर तो न्यूट्रीनों द्वारा डार्क मैटर के निर्माण संबंधी विषय की व्याख्या की जा सकती है परन्तु लघु स्तर पर इस विषय की व्याख्या करना संभव नहीं हो पाया है। लघु स्तर पर डार्क मैटर के निर्माण की व्याख्या करने के लिए खगोल वैज्ञानिकों द्वारा कुछ नये प्रकार के मूल कणों की परिकल्पना प्रस्तुत की गयी है। इस प्रकार के नये कणों में शामिल हैं एक्सियोन तथा विम्प्स। विम्प्स शब्द अंग्रेजी भाषा के चार शब्दों वीकली इंटऐक्टिंग मावि पार्टिकल्स का संक्षिप्त रूप है। अधिकांश वैज्ञानिकों की धारणा है कि डार्क मैटर का निर्माण विम्प्स नामक कणों से ही हुआ होगा। कुछ खगोलविदों के मतानुसार डार्क मैटर का निर्माण करने में प्रमुख भूमिका पौजीट्रन नामक कणों की रही है। यह विचार उन्होंने 2006 में प्रमोचित किये गये ‘पामेला’ नामक उपग्रह से प्राप्त किये गये संकेतों के आधार पर व्यक्त किया है। पौजीट्रन एक प्रकार के बहुत ही सूक्ष्म कण होते हंए जिनका पिण्डमान इलेक्ट्रॉन कण के पिण्डमान के बराबर होता है। परन्तु दोनों में एक अन्तर यह है कि इलेक्ट्रॉन पर जहां ऋणात्मक आवेश पाया जाता है, वही पौजीट्रन पर धनात्मक आवेश मौजूद रहता है। इसी कारणवश पौजीट्रन का प्रति कण भी कहा जाता है।
खगोल वैज्ञानिकों द्वारा लगाये गये अनुमान के अनुसार पूरे ब्रह्माण्ड में दृश्य पिण्डों का परिमाण सिर्फ 4 प्रतिशत है। दृश्य पिण्डों में शामिल हैं तारे, ग्रह, उपग्रह, धूमकेतु तथा उल्कायें एवं क्षुद्र ग्रह इत्यादि। अनुमान है कि ब्रह्माण्ड में डार्क मैटर का कुल परिमाण लगभग 23 प्रतिशत है। जबकि शेष 73 प्रतिशत ब्रह्माण्ड डार्क ऊर्जा से निर्मित है।
राजेन्द्र नगर हाउसिंग कालोनी, (के.के.सिंह कालोनी) पोस्ट जमगोड़िया,
वाया-जोधाडीह (चास), जिला-बोकारो, झारखंड
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