विज्ञान


अंतर्राष्ट्रीय प्रकाश वर्ष


मनीष मोहन गोरे

प्रकाश के हमारे जीवन में महत्व को दृष्टिगत रखते हुए 20 दिसंबर 2013 के दिन संयुक्त राष्ट्र की आमसभा के 68वें सत्र में वर्ष 2015 को ‘अंतर्राष्ट्रीय प्रकाश तथा प्रकाश-आधारित प्रौद्योगिकियों का वर्ष’ घोषित किया गया था। इस अंतर्राष्ट्रीय प्रकाश वर्ष संबंधी पहल के पीछे यूनेस्को सहित विश्व के असंख्य वैज्ञानिक, शैक्षिक, प्रौद्योगिकी निकायों, नॉन-प्रॉफिट संस्थाओं तथा निजी क्षेत्र के सहभागियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।


प्रकाश हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा है। कल्पना कीजिए कि अगर हमारी पृथ्वी पर सूर्य का प्रकाश इस उपयुक्त व प्राकृतिक तौर पर नहीं पहुंचता तो क्या यहां जीवन पनप पाता और क्या हम मानव, विभिन्न जंतु तथा वनस्पतियों का अस्तित्व होता। इसका जवाब ‘ना’ में है। वास्तव में प्रकाश है तो पृथ्वी पर जीवन है इसलिए प्रकाश को ‘जीवन का पर्याय’ कहना अतिश्योक्ति न होगी।
प्रकाश संश्लेषण की नैसर्गिक प्रक्रिया में हरे पौधे सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में अपनी पत्तियों के हरे वर्णक पर्णहरिम में वायुमंडल से कार्बन डाइआक्साइड तथा जड़ों से पानी लेकर कार्बोहाइड्रेट का निर्माण करते हैं। यह कार्बोहाइड्रेट पृथ्वी की सभी खाद्य श्रृंखलाओं के घटक जीवों की ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। अगर गौर करें तो पृथ्वी पर जीवन का आधार यह प्रकाश-संश्लेषण क्रिया है और प्रकाश-संश्लेषण का आधार सूर्य का प्रकाश है। सूर्य का प्रकाश हमारी पृथ्वी पर ऊर्जा का सबसे महत्वपूर्ण स्रोत है। सूर्य का प्रकाश, प्रकाश संश्लेषण के अलावा हमें गर्म रखता है, इसके कारण मौसम का निर्माण होता है तथा दिन के समय इसकी उपस्थिति में हम अपने रास्तों का पता लगा पाते हैं। प्रकाश हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और 21वीं सदी में प्रकाश ने विज्ञान व प्रौद्योगिकी से जुड़े असंख्य खोजों/आविष्कारों को उत्प्रेरित किया है। स्वास्थ्य, चिकित्सा, संचार आदि जैसे अहम क्षेत्रों में प्रकाश संबंधी प्रौद्योगिकियों ने क्रांति ला दी है।
अंतर्राष्ट्रीय प्रकाश वर्ष 2015 का प्रमुख मकसद है - स्थायी विकास को बढ़ावा देना और ऊर्जा, शिक्षा, कृषि तथा स्वास्थ्य के क्षेत्र में वैश्विक चुनौतियों के समाधान उपलब्ध कराने की दिशा में प्रकाश आधारित प्रौद्योगिकियों की भूमिका को लेकर जन-जागरूकता फैलाना।
प्राचीन काल से प्रकाश को लेकर लोगों के मन में तरह-तरह के कौतूहल व्याप्त रहे हैं। प्रकाश की वैज्ञानिक अभिव्यक्ति के लिए बहुत पुराने समय से दार्शनिकों और वैज्ञानिकों ने समय-समय पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं। कुछ वैज्ञानिकों ने प्रकाश को कण माना तो कुछ ने तरंग। प्रकाश को लेकर यह द्वैत व्याख्या इसलिए सामने आई क्योंकि प्रकाश दो अलग-अलग प्रकार के व्यवहार प्रदर्शित करता है। आइजक न्यूटन का मत था कि प्रकाश कण है। 17वीं सदी में उन्होंने प्रकाश से जुड़े अनेक प्रयोग किए और जिसके बाद वह इस नतीजे पर पहुंचे थे। उनका प्रसिद्ध प्रयोग सूर्य का प्रकाश एवं प्रिज्म पर केंद्रित था जिसमें उन्होंने प्रतिपादित किया था कि श्वेत प्रकाश अनेक रंगों से मिलकर बनता है और प्रत्येक रंग को उपयोग कर श्वेत प्रकाश पुनः निर्मित नहीं किया जा सकता है तथा न ही किसी एक रंग के प्रकाश को और आगे विभक्त किया जा सकता है।
न्यूटन के मत से अलग हटकर कुछ वैज्ञानिकों (हाइगेन्स और रॉबर्ड हुक) ने कहा कि प्रकाश एक तरंग है। सन् 1800 में थॉमस यंग नामक भौतिकशास्त्री ने अपने प्रयोगों के आधार पर यह बताया कि प्रकाश व्यतिकरण ;पदजमतमितमदबमद्ध नामक भौतिक घटना को प्रकट कर सकते हैं। व्यतिकरण में तरंगों के शीर्ष ;बतमेजद्ध और द्रोण ;जतवनहीद्ध घट-बढ़ कर प्रकाश में चमकदार तथा गहरी पट्टियों को प्रदर्शित करते हैं। यंग ने यह भी प्रतिपादित किया था कि प्रकाश के विभिन्न वर्णों के भिन्न-भिन्न तरंग दैर्ध्य होते हैं। 19वीं सदी में वैद्युतिकी और चुंबकत्व संबंधी विज्ञान की पराकाष्ठा भौतिकशास्त्री जेम्स क्लार्क मैक्सवेल के सिद्धांत में दिखाई दी जिसमें उन्होंने कहा था कि दोलनकारी वैद्युत एवं चुंबकीय क्षेत्रों की तरंगें होनी चाहिए। इन तरंगों की गति प्रकाश की मापी गई गति के बहुत निकट पाई गई। इससे यह ज्ञात हुआ कि दृश्य प्रकाश एक विद्युत-चुंबकीय घटना है। वर्तमान समय में यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि प्रकाश विद्युत-चुंबकीय विकिरण की एक अति उच्च आवृत्ति होती है। प्रकाश की तरंग प्रकृति संबंधी सिद्धांत की स्थापना के दौरान सन् 1905 में महान भौतिकशास्त्री अल्बर्ट आइन्सटाइन ने बताया कि प्रकाश-विद्युत प्रभाव की व्याख्या के लिए आवश्यक है कि प्रकाश पृथक बंडल (फोटॉन) में उत्पन्न हो। वर्तमान सुस्थापित धारणा के अनुसार प्रकाश की द्वैत प्रकृति होती है और यह कण तथा तरंग दोनों के गुण एवं व्यवहार प्रदर्शित करता है। प्रकाश से अभिप्राय है दृश्य प्रकाश और यह दृश्य प्रकाश समग्र विद्युत चुंबकीय वर्ण-क्रम का महज एक छोटा हिस्सा दृश्य प्रकाश होता है। इस दृश्य प्रकाश ;अपेपइसम सपहीजद्ध के एक छोर पर दीर्घ रेडियो तरंगें होती हैं तो दूसरे छोर पर लघु व अत्युच्च ऊर्जावान गामा किरणें। साधारण शब्दों में दृश्य प्रकाश, विद्युत चुंबकीय विकिरण के बंडलों (फोटानों) के रूप में मुक्त ऊर्जा होता है और इसे ही हमारी आंखंे प्रकाश के रूप में महसूस करती हैं। ये फोटान (ऊर्जा के बंडल) केवल तभी मुक्त होते हैं, जब परमाणुओं में आवेशित इलेक्ट्रॉन स्थिर कक्षाओं में लौटकर आते हैं। परमाणु स्तर पर होने वाली इस घटना के फलस्वरूप ऊर्जा मुक्त होती है। जिस प्रकार लोहे की छड़ को ऊष्मा देने पर वह गर्म होता है और ऐसा लगातार करने पर उसका रंग बदलता जाता है। उसी तरह तापमान में वृद्धि होने पर प्रकाश के अदृश्य अवरक्त विकिरण उत्सर्जित होते हैं। तापमान में और अधिक वृद्धि करने पर प्रकाश का रंग लाल, नारंगी, पीला तथा अंत में चमकीले सफेद रंग में बदलता है। हमारे घरों में प्रयोग होने वाले प्रकाश को अनेक विधियों से उत्पन्न किए जाते हैं। परंपरागत तेल के दीए और मोमबत्तियों में लौ में गर्म कार्बन कणों के द्वारा प्रकाश उत्पन्न होता है। सामान्य टंगस्टन बल्बों में गर्म टंगस्टन तंतु के द्वारा प्रकाश पैदा होता है जबकि प्रतिदीप्ति प्रकाश और सीएफएल में गैस व प्रतिदीप्ति के द्वारा वैद्युत प्रवाह के कारण प्रकाश उत्पन्न होता है। लाइट इमिटिंग डायोड (एलईडी) में ठोस-अवस्था इलैक्ट्रॉनिक प्रक्रियाओं के द्वारा प्रकाश उत्पन्न होता है।  प्रकृति की सूक्ष्म से लेकर स्थूल रचनाओं को देखने के लिए प्रकाश को एक शक्तिशाली साधन के रूप में प्रयोग किया जाता है। जाहिर सी बात है कि हम मनुष्यों की आंखों की क्षमता से परे किसी वस्तु को देख पाना प्रकाश के कारण संभव हो पाया है। प्रकाशिक सूक्ष्मदर्शी ;सपहीज उपबतवेबवचमद्ध से जहां एक तरफ हम अति सूक्ष्म रचनाओं को देखने में सक्षम हुए हैं तो वहीं दूसरी ओर दूरदर्शी ;जमसमेबवचमद्ध ने हमें सुदूर अंतरिक्ष पिंडों के प्रेक्षण के लिए काबिल बनाया है। ये दोनों उपकरण प्रकाश के सिद्धांत पर कार्य करते हैं। कुछ वैज्ञानिकों के आविष्कार इतने महत्वपूर्ण होते हैं कि उनसे विश्व में एक क्रांतिकारी बदलाव आ जाता है। विद्युत बल्ब एक ऐसा ही आविष्कार है जिसने समूचे विश्व को प्रकाशित कर दिया अन्यथा शायद हम आज भी दिन ढलते ही अंधकार में डूब जाते। बल्ब के इस अहम आविष्कार का श्रेय जाता है महान अमेरिकी आविष्कारक थॉमस अल्वा एडीसन को। एडीसन ने विश्व को अनेक महत्वपूर्ण आविष्कार दिए हैं जिनमें मोशन पिक्चर कैमरा, फोनोग्राफ, प्रिटिंग टेलीग्राफ, टाइपराइटिंग मशीन, गैल्वेनिक बैटरी, इलैक्ट्रिकल जेनेरेटर तथा टेलीग्राफी आदि प्रमुख हैं। वह एक प्रखर आविष्कारक थे और उनके नाम से 1093 पेटेंट दर्ज हैं। विश्व में पहली औद्योगिक अनुसंधान प्रयोगशाला की स्थापना का श्रेय एडीसन को दिया जाता है। बचपन में एक फिसड्डी विद्यार्थी और औपचारिक शिक्षा न लेने वाला यह व्यक्ति आगे चलकर एक महान आविष्कारक बना और जिसने विश्व को अनेक महत्वपूर्ण आविष्कारों की सौगात दी। एडीसन ने पहले विद्युत प्रकाश बल्ब का नहीं बल्कि पहले व्यापारिक रूप से व्यावहारिक उद्दीप्त बल्ब का आविष्कार किया था। उन्होंने 1878 ई. में एडीसन इलैक्ट्रिक लाइट कंपनी की स्थापना न्यूयार्क शहर में की थी। 31 दिसंबर, 1879 को एडीसन ने मेनलो पार्क में अपने द्वारा बनाए गए उद्दीप्त प्रकाश बल्ब का सार्वजनिक प्रदर्शन किया और इस अवसर पर कहा था, ‘मैं इतनी सस्ती बिजली बनाऊंगा कि केवल अमीर लोग ही मोमबत्ती जलाएंगे’।


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