विज्ञान


प्रेरणा के प्रतीक

डॉ. सुबोध महंती 

डॉ. कलाम के बारे में कुछ लिखना वाकई मुश्किल काम है। मुश्किल इसलिए है क्योंकि डॉ.कलाम के बारे में हर कोई कुछ न कुछ जानता ही है। उन्होंने खुद लाखों लोगों के साथ संपर्क स्थापित किया। कई किताबें लिखी जो विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनूदित हुई हैं, उनके बारे में विशेषकर नब्बे के दशक के बाद पत्र-पत्रिकाओं में लगातार कुछ न कुछ छपता ही रहा है और उनकी मृत्यु के बाद तो वे पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो, टेलीविजन एवं इंटरनेट, सोशल मीडिया में कई दिन तक छाए रहे, देश के विभिन्न प्रांतों में हजारों शोक सभाएं आयोजित की गईं, ऐसा होना स्वाभाविक भी था क्योंकि डॉ. कलाम के बारे में चर्चा नहीं की जायेगी तो किसके बारे में की जायेगी। आज डॉ. कलाम हमारे बीच में नहीं हैं जो है वो है उनकी प्रेरणादायी वार्ता, उनकी उपलब्धियां, उनका जीवनदर्शन उनके स्वप्न और देशवासियों विशेषकर युवा पीढ़ी से उनकी उम्मीदें। इसमें कोई संदेह नहीं है कि डॉ. कलाम का उदाहरण आने वाली पीढ़ी को प्रेरित करता रहेगा जैसे कि वे अपने जीवनकाल में करते रहे।
डॉ. कलाम अपने जीवन काल में ही किवदंती या लेजेंड बन गये थे। वे भारत के अघोषित मार्गदर्शक थे। वे एक प्रेरणादायी शिक्षक थे। आधुनिक भारत निर्माण में विशेषकर अंतरिक्ष कार्यक्रम तथा राष्ट्रीय सुरक्षा में उनका योगदान अभूतपूर्व है। डॉ. कलाम एक बहुमुखी प्रतिभा थे- इनोवेटिव (नवाचारिक) टेक्नोक्रैट (उद्योगतंत्रवादी), प्रबुद्ध विचारक, प्रेरणादायी शिक्षक, विज्ञान संचारक, समाज सुधारक एवं प्रभावशाली तथा स्वप्नदर्शी नेता। इन सभी के बावजूद उन्होंने जीवन के अंत तक एक साधारण मनुष्य की तरह जीवन व्यतीत किया एवं साधारण लोगों से जुड़े रहे। वे उन लोगों को कभी नहीं भूले जिसके बीच जिंदगी की शुरूआत की, जिनसे शिक्षा ली एवं जिनके साथ काम किया। वे आजीवन बच्चों की भांति जिज्ञासु एवं सरल बने रहे। वे विज्ञान और प्रौद्योगिकी के सबसे बड़े दूत (एमबेसेडर) रहे। डॉ. कलाम उन महान व्यक्तियों में से हैं, जिन्होंने यह करके दिखाया कि परिस्थितियां कितनी भी विपरीत क्यों न हो मनुष्य यदि चाहे तो आगे बढ़ कर जिंदगी में न केवल महान उपलब्धियां हासिल कर सकता है बल्कि दूसरों को भी राह दिखा सकता है, समाज तथा देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। डॉ. कलाम निःसंदेह ही प्रेरणा के प्रतीक हैं एवं इसके साथ-साथ मानवतावाद तथा सांस्कृतिक एकता के भी प्रतीक हैं। वे विनम्रता एवं ईमानदारी के भी प्रतीक थे। डॉ. कलाम सही अर्थ में भारत रत्न थे।
डॉ. कलाम एक साधारण मध्यमवर्गीय तमिल परिवार में जन्में थे। उनके पिता ने स्कूल-कालेजों में पढ़ाई नहीं की थी। वे मछुआरों के लिए इस्तेमाल नाव के निर्माण कार्य से जुड़े थे। अपने बचपन को याद करते हुये डॉ. कलाम ने अपनी आत्मकथा ‘विंग्स ऑफ फायर’ में लिखा है ‘मैं मद्रास राज्य के रामेश्वरम कस्बे में एक मध्यमवर्गीय तमिल परिवार में जन्मा था। मेरे पिता जैनुलअबदीन न तो अधिक पढ़े-लिखे थे न ही उनके पास अधिक धन था फिर भी वे महान स्वाभाविक बुद्धिमत्ता तथा विशाल जीवटता के स्वामी थे। मेरी माता आशिअम्मा के रूप में उन्हें एक आदर्श पत्नी मिली थी। मुझे एकदम सही संख्या तो नहीं याद है कि प्रतिदिन कितने लोगों को भोजन कराती थी, लेकिन मैं निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि प्रतिदिन हमारे साथ भोजन करने वाले बाहरी लोगों की संख्या हमारे पूरे परिवार से अधिक ही होती थी। हम अपने पुश्तैनी मकान में रहते थे जो 19वीं सदी के मध्य में बनाया गया था। रामेश्वरम के मस्जिद मार्ग पर चूना पत्थर व ईंटों से बना यह काफी बड़ा मकान था। मेरे सादगी पसंद पिता सुख-सुविधाओं से दूर रहते थे। हालांकि खाना, कपड़े व दवाइयों जैसी आवश्यक चीजें उपलब्ध रहती थी। वास्तव में मैं कहना चाहूंगा कि मेरा बचपन भौतिक व भावनात्मक दोनों दृष्टियों से सुरक्षित था।’ 
डॉ. कलाम का बचपन तमिलनाडु के रामेश्वरम में गुजरा जो काफी संघर्षपूर्ण था। डॉ. कलाम जब छह वर्ष के थे तो समुद्री तूफान के कारण उनके पिता के नाव निर्माण कार्य को बहुत नुकसान हुआ एवं परिवार की आर्थिक स्थिति पर असर पड़ा। डॉ. कलाम भी बचपन में कई तरह के प्रयास करते रहे। जिससे परिवार को आर्थिक सहायता मिल सके। वह अपने चचेरे भाई के अखबार वितरण के काम में भी सहायता करने लगे जिसके लिए उनको मेहनताना दिया जाता था। कहा जाता है कि वे इमली के बीज बेचने के लिए इकट्ठे करते  थे (उस समय इमली के बीज की मांग बढ़ गयी थी)। वे सुबह चार बजे उठकर ट्यूशन पढ़ने चले जाते थे जिसके लिए उन्हें फीस नहीं देनी पढ़ती थी, पांच बजे ट्यूशन से लौटने के बाद पिता के साथ नमाज अदा करने जाते थे। नमाज अदा करने के बाद अखबार लाने के लिए वे तीन मील दूर रेलवे स्टेशन जाते थे। इसके बाद स्कूल में पढ़ाई करने जाते थे। डॉ. कलाम ने रामेश्वरम के पंचायत विद्यालय में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद रामनाथपुर के स्क्वार्टज हाईस्कूल में प्रवेश लिया। हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के पश्चात डॉ. कलाम ने तिरुचिरापल्ली के सेंट जोसेफ कॉलेज से बीएस-सी डिग्री हासिल की। बीएस-सी डिग्री पाने के बाद डॉ. कलाम ने अभियांत्रिकी की पढ़ाई करने का निर्णय लिया एवं इस उद्देश्य से मशहूर अभियांत्रिकी कॉलेज, मद्रास प्रौद्योगिकी संस्थान (मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी - एमआईटी) में प्रवेश लिया। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि उस समय उस कॉलेज में प्रवेश पाना काफी कठिन काम था। प्रवेश तो मिल गया मगर उस कॉलेज में प्रवेश शुल्क देने की स्थिति में डॉ. कलाम का परिवार नहीं था। उनकी बड़ी बहन जोहर,ा जिसकी शादी हो चुकी थी, ने अपनी शादी में मिले आभूषणों को बेच कर फीस का पैसा दिया। इस कार्य में डॉ. कलाम के बहनोई जलालुद्दीन की भी पूर्ण सहमति थी। डॉ. कलाम अपनी बहन-बहनोई के त्याग को कभी नहीं भुला पाये। उन्होंने कठोर परिश्रम करके छात्रवृत्ति प्राप्त की। एमआईटी से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग  (वैमानिकी अभियांत्रिकी) में डिग्री हासिल करने के बाद डॉ. कलाम ने बेंगलुरु में स्थित हिंदुस्तान एयरोनॉटिकल लिमिटेड में प्रशिक्षु के रूप में कुछ समय काम किया। जब अपना कैरियर शुरु करने का समय आया तो एक वैमानिक इंजीनियर होने के कारण डॉ. कलाम के पास दो विकल्प थे-रक्षामंत्रालय के प्रौद्योगिकी विकास व उत्पादन (वायु) के किसी तकनीकी केंद्र या भारतीय वायु सेना में नौकरी करना। 
डॉ. कलाम की पहली पसंद थी वायुसेना मगर वहां उनका चयन न होने के कारण वह रक्षा मंत्रालय के प्रौद्योगिकी विकास व उत्पादन निदेशालय (वायु) के दिल्ली में स्थित प्रौद्योगिकी केंद्र (नागर विमानन) से वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक के रूप में जुड़े। वहां उन्हें विमानों को उड़ने योग्य बनाने के लिए योगदान देने के अलावा एक पराध्वनिक आक्रामक विमान के डिजाइन को तैयार करने का काम सौंपा गया। एक वर्ष के अंदर ही डॉ. कलाम डिजाइन बनाने के काम में सफल हो गये। दिल्ली से उनहें बेंगलुरु स्थित वायुयान विकास स्थापना में स्थानांतरित किया गया। वहाँ उन्हें हॉवरक्राफ्ट डिजाइन परियोजना का दायित्व सौंपा गया। डॉ. कलाम ने ही इस परियोजना का नाम ‘नंदी’ दिया था। ‘नंदी’ की सफल उड़ान के तत्कालीन रक्षामंत्री कृष्णमेनन ने सराहना की थी एवं डॉ. कलाम ने ही रक्षामंत्री को लेकर ‘नंदी’ की परीक्षण उड़ान भरी थी। रक्षामंत्रालय के संस्थाओं में काम करने के बाद डॉ. कलाम भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति से जुड़े, जो आज भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑरगेनाइजेशन या इसरो) के नाम से जाना जाता है। इससे जुड़ने के बाद उनकी रॉकेट व प्रक्षेपास्त्र प्रौद्योगिकी के बहुचर्चित कॅरियर की शुरुआत हुयी। इसरो में उन्होंने विविध काम किये। शुरुआती दौर में डॉ. कलाम ने फाइवर रीइनफोर्सड प्लास्टिक्स परियोजना की नींव रखी तथा डायनामिक्स व डिजाइन समूह में कुछ समय बिताया। इसके बाद थुंबा के उपग्रह प्रक्षेपणयान परियोजना से जुड़े। उन्हें प्रशिक्षण हेतु नासा (अमेरिका) भेजा गया जिससे उन्हें नासा के रॉकेट कार्यक्रमों के विभिन्न पहलुओं से परिचित होने का अच्छा अवसर मिला। डॉ. कलाम को एसएलवी-3 परियोजना का निर्देशक बनाया गया। उपग्रह प्रक्षेपण यान प्रौद्योगिकी के विकास तथा नियंत्रण, प्रणोदन व वायुगतिकी में प्रवीणता हासिल करने में डॉ. कलाम की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। जुलाई 1980 में एसएलवी-3 के सहारे एक वैज्ञानिक उपग्रह ‘रोहिणी’ को पृथ्वी की निकट कक्षा में स्थापित किया गया। भारत के लिए यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। इसरो में काम करने के दौरान डॉ.कलाम भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉ.विक्रम साराभाई, प्रोफेसर सतीष धवन एवं डॉ.ब्रह्मप्रकाष से विषेष प्रभावित हुये थे।
सन 1982 में डॉ. कलाम रक्षा अनुसंधान व विकास संगठन (डीफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंटल ऑर्गेनाइजेषन-डीआरडीओ) से जुड़े। डीआरडीओ में उनका पहला काम था एकीकृत निर्देषित प्रक्षेपास्त्र विकास कार्यक्रम (इंटीग्रेेटेड गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम-आईजीएमडीबी) के नेतृत्व का दायित्व संभालना। उनके कुषल नेतृत्व में भारत ने सामरिक प्रक्षेपास्त्रों के विकास में स्वनिर्भर होने की दिषा में ठोस कदम उठाये। ‘नाग’ (टेंकरोधी निर्देषित प्रक्षेपास्त्र), ‘पृथ्वी’ (सतह से सतह तक मारक प्रक्षेपास्त्र), ‘आकाष’ (माध्यम मारक क्षमता का द्रुतगामी सतह से वायु प्रक्षेपास्त्र), ‘त्रिषूल’ (तीव्र प्रतिक्रिया वाली सतह से वायु प्रक्षेपास्त्र) तथा ‘अग्नि’ (मध्यम मारक क्षमता का एक बेलेस्टिक प्रक्षेपास्त्र) जैसे प्रक्षेपास्त्र (मिसाइल) विकसित किये गये एवं अधिक से अधिक उन्नत प्रक्षेपास्त्र बनाने की पृष्ठभूमि तैयार की गयी। प्रक्षेपास्त्र प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नयी प्रयोगषालाएँ स्थापित की गयी। डॉ. कलाम को ‘मिसाइल मैन’ कहा जाने लगा।
डॉ. कलाम ने डीआरडीओ में निदेषक के रूप में काम षुरू किया था एवं बाद में इस संस्थान के प्रमुख तथा रक्षा मंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार (जुलाई 1992 से दिसंबर 1999) बने।
नाभिकीय हथियारों के सफल परीक्षण में भारतीय प्रयास में डॉ.कलाम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। सन 1999 में डॉ. कलाम को भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया। प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के पद छोड़ने के बाद चेन्नई में स्थित अन्न विष्वविद्यालय में प्रौद्योगिकी व सामाजिक रूपांतरण के प्रोफेसर नियुक्त हुए। उन्होंने युवा मस्तिष्क को प्रज्ज्वलित करने का निर्णय लिया एवं इस उद्देष्य को सफल करने के लिए उन्होंने देष के विभिन्न प्रांतों में बच्चों के साथ मिलने का सिलसिला षुरु कर दिया। 25 जुलाई 2002 में डॉ. कलाम ने भारत के ग्यारहवें राष्ट्रपति के रूप में षपथ ग्रहण की। राष्ट्रपति बनने के बाद भी वे बच्चों के साथ मुखातिब होते रहे। डॉ.कलाम लाखों बच्चों के साथ मिले एवं उन्हें उत्प्रेरित करने के लिए हर संभव प्रयास किया। डॉ.कलाम ने राष्ट्रपति पद की गरिमा को बढ़ाने के साथ-साथ राष्ट्रपति भवन को आम जनता के नजदीक लाने के लिए कई सार्थक प्रयास किए।
डॉ. कलाम न केवल किताबें पढ़ना पसंद करते थे बल्कि दूसरों को विषेषकर बच्चों को किताबें पढ़ने के लिए उत्प्रेरित करते थे। उनके पढ़ने की कोई सीमा नहीं थी। तीन किताबों ने उनको बेहद प्रभावित किया। ये तीन किताबें है-
स लाइटस फ्राम मैनी लैंपस, एडिटेड वाई लिलियन वाटसन
स थिरूकुराल वाई थिरूवालुवार (यह किताब 2000 वर्ष पहले तमिल में लिखी गयी थी)।
स मैन द अन्नोन वाई अलेक्सिस कोरेल।
डॉ. कलाम ने खुद भी कई किताबें लिखी है। उनकी कुछ प्रमुख किताबें हैं:
स विंग्स ऑफ फायर (सह लेखक अरूण तिवारी)
स इगनाईटेड माइंडस
स एनविजनिंग अन एम्पावर्ड नेषन: टेक्नॉलॉजी फॉर सोसायटल ट्रांसफारमेंषन (सह लेखक: ए.सिवाथनु पिल्लई)
स डेवलपमेंटस इन फ्ल्यूड मेकेनिक्स एंड स्पेस टेक्नॉलॉजी (सह लेखक आर.नरसिम्हा)
स इंडिया 2020: ए विजन फॉर द न्यू मिलेनियम (सह लेखक: वाई.एस.राजन)
स टर्निंग प्वाइंट्स: अ जर्नी थ्रु चैलेंजेस
स टर्गेट थ्री विलियन
स इनडोमिटवल स्परिट
स द फेमिली एंड द नैषन
स स्परिट ऑफ इंडिया
स द साइंटिफिक इंडियन: अ ट्वेनटी सेंचुरी गाइड टु द वर्ल्ड एराउंड अस
स माइ जर्नी: ट्रांसफार्मिंग ड्रीम्स इन्टु एक्षन
स गाइडिंग सोल्स: डायलॉग ऑन द पर्पज ऑफ लाइफ
स द लुमिनस स्पार्कस
स मिषन इंडिया
स इनस्पाइरिंग थाट्स
स रीइगनाइटेड: सांइटिफिक पाथवे टु आ ब्राइटर फ्यूचर (सह लेखक: सृजन पाल सिंह)
डॉ. कलाम की एक सबसे बड़ी खूबी थी उनका कुषल नेतृत्व। उनके कार्यषैली एवं जीवन दर्षन से यह प्रतीत होता है कि एक सफल नेता बनने के लिए निम्नलिखित गुणों का धनी होनी चाहिएः
स एक नेता को अज्ञात रास्तों में चलने में सक्षम होना चाहिए (ज्ञात रास्ते में तो हर कोई चल सकता है।)
स वही सच्चा नेता है जो विफलता के लिए अपने को जिम्मेदार मानता है और सफलता का श्रेय टीम के सदस्यों को देता है।
स नेता में फैसला लेने के लिए हिम्मत और आत्मविष्वास होना चाहिए।
स एक नेता के अपनाए गये प्रबंधन में उत्कृष्टता होनी चाहिए एवं नेता का हर कार्य पारदर्षी होना चाहिए।
स एक नेता को न केवल ईमानदारी से काम करना चाहिए बल्कि सफलता का आधार भी ईमानदारी होनी चाहिए।

अंत में मैं 25 जुलाई 2002 में राष्ट्रपति का पदभार ग्रहण करते समय डॉ. कलाम के भाषण से उद्धृत करना चाहूंगा, ‘विगत 50 वर्षो में खाद्य उत्पादन, स्वास्थ्य, उच्च षिक्षा, पत्रकारिता व जन संचार, विज्ञान व प्रौद्योगिकी तथा प्रतिरक्षा क्षेत्रों में हमने उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है। हमारा देष प्राकृतिक संसाधनों, संवेदनषील लोगों तथा पारंपरिक नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण है। इन प्रचुर संसाधनों के बावजूद हमारे देष की एक बड़ी जनसंख्या गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करती है। उनमें कुपोषण व्याप्त है तथा उन्हें प्राथमिक षिक्षा भी नहीं मिल पाती। गरीबी एवं बेरोजगारी को दूर करने के लक्ष्य को लेकर तीव्र विकास के साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा को हर भारतीय को राष्ट्रीय प्राथमिकता के रूप में स्वीकार करना होगा। वास्तव में भारत को आर्थिक, सामाजिक व सामरिक रूप से आत्मनिर्भर एवं षक्तिषाली बनाना, अपनी मातृभूमि तथा अपने व भावी पीढ़ियों के प्रति हमारा प्रमुख कर्तव्य है।’ डॉ. कलाम अपने हर भाषण के अंत में कुछ कर्तव्य या लक्ष्यों को अपनाने के लिए प्रतिज्ञा दिलाने में नहीं चूकते थे। आज हमारे बीच डॉ.कलाम नहीं है मगर वे जाने के पहले हम सभी को विकसित भारत का स्वप्न देखने एवं दिखाने के लिए प्रेरित कर गये है। निःसंदेह हर कोई डॉ. कलाम नहीं बन सकता, ऐसा व्यक्तित्व विरले ही होता है मगर ये भी बात सच है कि हम सभी डॉ. कलाम के दिखाये गये रास्ते में आगे बढ़ सकते हैं एवं भारत को विकसित देष बना सकते हैं।


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