विज्ञान


प्रथम सौर विमान की उड़ान

डॉ.अरविन्द मिश्र

सौर विमान इम्पल्स -2 मनुष्य के प्रौद्योगिकीय विकास का एक सुनहरा अध्याय है जो पूरी तरह से सौर ऊर्जा से ही संचालित है। विज्ञान कथाओं के विवरण से लगने वाले इस अभियान को मूर्त रूप देने वाली युगल जोड़ी है बर्ट्रेंड पिकार्ड और ऐंड्रे बोर्श्चबर्ग की जिन्होंने हवाई उड़ानों के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय लिख दिया है। राईट बंधुओं द्वारा गैस संचालित विमान की पहली उड़ान के सौ साल से भी अधिक समय के बाद फिर एक युगांतरकारी घटना घटी है। इन स्विस अन्वेषियों ने पूरी तरह सौर ऊर्जा से संचालित वायुयान को महज आसमान में ले जाने में ही सफलता नहीं पायी बल्कि इससे वे विष्व भ्रमण पर भी निकल चुके हैं। इस समय जबकि ये पंक्तियाँ लिखी रही हैं ऐंड्रे बोस्चबर्ग की कप्तानी में यह विमान भारत में अहमदाबाद और तदनन्तर वाराणसी से म्यांमार के लिए उड़ान भर चुका है। यहाँ अचानक मौसम ख़राब हो जाने और बादलों से आच्छादित आसमान के चलते सौर ऊर्जा चालित इस विमान का सहज संचालन बाधित हुआ था  किन्तु मनुष्य की जिजीविषा को भला कौन पराजित कर पाया है! 
यह 13 घंटे में अहमदाबाद से वाराणसी आया था। अहमदाबाद में विमान और उसके चालक दल के सदस्य एक सप्ताह के लिए रुके थे। विमान ने वाराणसी के लिए उड़ान भरते समय करीब 5ए200 मीटर की न्यूनतम ऊंचाई बनाए रखी। विमान 10 मार्च को अहमदाबाद पहुँचा था। इसने 9 मार्च को आबू धाबी से यात्रा शुरू की थी। ऐसी संभावना थी कि सोलर इम्पल्स 2ए 17 मार्च 2015 को वाराणसी एअरपोर्ट पर नियत समयसारणी के अनुसार पहुँचेगा मगर मौसम की खराबी से यह 18 मार्च की रात्रि रात साढ़े 8 बजे के बाद वाराणसी के बाबतपुर स्थित श्री लालबहादुर शास्त्री हवाईअड्डे पर पहुंचा और फिर अगले ही दिन वहाँ से आगामी पड़ाव म्यांमार की ओर उड़ चला।
इस अद्भुत सौर विमान के पायलट आंद्रे बोश्चबर्ग प्रधानमंत्री जी द्वारा शुरू किये गए स्वच्छता कार्यक्रम की मिसाल बने अस्सी घाट स्थित सुबह-ए-बनारस स्थल पर अपनी पत्नी पालिन बोस्वर्ग के साथ पहुंचे। वे गंगा और सूर्यदेव की आरती में भी सम्मिलित भी हुए। सोलर इम्पल्स-2 के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए वहाँ लोगों में बड़ी उत्कंठा थी। पायलट आंद्रे बोशवर्ग ने सभी की जिज्ञासा शांत की। वे गंगा तट पर आकर अभिभूत थे। इससे पहले अहमदाबाद से विशेष विमान द्वारा सोलर इंपल्स के दूसरे पायलट बारट्रैड पिकार्ड वाराणसी पहुँच चुके थे। दरअसल विमान के कॉकपिट में एक समय मात्र एक ही पायलट की ही जगह है। एक समय कोई एक ही चालक सुविधापूर्वक उसमें रह सकता है। 
यह पूरी तरह पारम्परिक ईधन रहित है। सोलर सेलों से लिथियम पॉलिमर बैट्रियां चार्ज होती हैं जिनकी बदौलत विमान रात में भी सौर ऊर्जा से उड़ान भरता है। यह विमान 60 से 70 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से उड़ान भरता है। चार इंजिन है जो विद्युत संचालित हैं और डैने सोलर पैनल से युक्त हैं जहाँ से दिन की यात्रा के समय सौर ऊर्जा इनके जरिये बैटरियों में संचित होती रहती है और आवश्यकतानुसार विद्युत में तब्दील होती रहती है। पूरी यात्रा पांच महीने की है और इस दौरान यह अद्भुत यान 33ए800 किमी की यात्रा तय कर लेगा।
सौर विमान के स्वप्नद्रष्टा बर्ट्रेंड पिकार्ड मनोविज्ञानी भी हैं और वे अक्सर भविष्य को वर्तमान तक खींच लाने की सोच और जुगत में रहते हैं। उन्हें ईधन रहित सौर संचालित विमान की सूझ तब कौंधी जब वे सह पायलट ब्रायन जोन्स के साथ गुब्बारों से कई द्वीपों और शहरों के ऊपर से गुज़र रहे थे बिल्कुल जूल्स वेर्ने के ‘फाइव वीक्स इन अ बैलून’ की ही तर्ज पर। किन्तु ईधन संचालित यात्राओं में ईधन की आवश्यकता उन्हें एक बड़ा अवरोध लगा। उन्हें लगा कि ईधन पर निर्भरता मनुष्य के विकास की एक बड़ी बाधा है। फिर क्या था वे एक ऐसे विमान के अन्वेषण में जुट गए जिसमें कोई भी पारम्परिक ईधन इस्तेमाल न हो। और अब सौर विमान के रूप में उनकी कल्पना साकार हो उठी है।
अपने अभियान में पिकार्ड को स्विस फ़ेडरल इंस्टीच्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी से मदद मिली। अभियान से जुड़े इंजीनियरों को जल्दी ही समझ में आ गया कि सौर ऊर्जा संचालित विमान का आकार सोलर पैनलों की जरुरत के मुताबिक़ बहुत बड़ा होना चाहिए किन्तु वजन बहुत कम। विमान के हर सूर्याेन्मुखी सतह पर सोलर सेल लगाये जाने की जुगत समझ में आयी -कुल 6 हजार सोलर सेल्स मनुष्य के बाल की मोटाई के बराबर लगाये गए। डैनों की लम्बाई इस तरह 125 फ़ीट जा पहुँची जो बोइंग 787-8 से भी अधिक है। यान बहुत हलके तत्व का है किन्तु अकेले बैटरियों के 235 किलो भार सहित कुल यान का भार 2ए268 किलो है। यह अपेक्षानुसार हल्का तो नहीं है किन्तु फिलहाल कामचलाऊँ है.
बर्ट्रेंड पिकार्ड का पारिवारिक संस्कार उन्हें साहसिक यात्राओं के लिए बचपन से ही प्रेरित करता रहा। उनका बचपन फ्लोरिडा के केप केनेवरल के समुद्री तट पर बसे भवन में बीता जहाँ उनके पिता जैकेस अमेरिकी नैवी में काम करते थे। उनके पिता के दोस्तों में अमेरिकी अंतरिक्ष कार्यक्रम से वैज्ञानिक वेर्नर ब्रान बौर्न थे जो अक्सर बर्ट्रेंड के घर आते जाते थे। यही नहीं चन्द्रजेता नील आर्मस्ट्रांग और बज एल्ड्रिन भी इनके घर पहुंचने वाले मेहमानों में थे। एक और अंतरिक्षयात्री स्कॉट कारपेंटर तो बर्ट्रेंड के बारहवें जन्मदिन में भी शरीक हुए थे। जाहिर है इन महान हस्तियों से बालक बर्ट्रेंड पिकार्ड को निरंतर कुछ सर्वथा नया और साहसपूर्ण जोखिमभरा करने की प्रेरणा मिलती रही। 
कहते हैं होनहार विरवान के होत चीकने पात। किशोरवयी पिकार्ड ने पहाड़ों की चोटियों से ग्लाइडर उड़ाना सीख लिया था और 19 वर्ष की उम्र में ही माइक्रोलाईट क्राफ्ट उड़ाने लगे थे। उन्होंने चिकित्सा विज्ञान का अध्ययन शुरू करने के पहले अपने भौतिकविद पितामह ऑगस्ट से गर्म हवा के गुब्बारों को उड़ाने की भी दीक्षा ले ली थी। अपने ऐसे माहौल के चलते ही पिकार्ड जोखिम भरे कामों के मामले में दुनिया के दीगर दिवास्वप्न दर्शी दिवंगत स्टीव फासेट और व्यावसायिक अंतरिक्षयात्रा के जन्मदाता रिचर्ड ब्रैंसन की कतार में आ खड़े हुए हैं। गैस के गुब्बारे में समूची धरती का चक्कर लगाने की अपनी सनक में दो बार मुंह की खाने के बाद अंततः 1999 में इन्हे सफलता मिली जब ब्रीटलिंग आर्बिटर 3 के सहारे 19 दिनों अपने सहयात्री ब्रायन जोन्स के साथ इन्होने अनवरत उड़ान की एक नयी मिसाल कायम की। यह गुब्बारा प्रोपेन और हीलियम ईधन से चालित था। जबकि उन्होंने चाँदी के सिलिंडरों में इस ईधन की भारी मात्रा 3 टन अपने साथ रखी थी मगर यह पर्याप्त नहीं थी।
उन्हें यात्रा के दौरान ईधन की कमी की आशंका हमेशा बनी रही और तभी लगा कि पारम्परिक ईंधन हवाई उड़ानों की बाधा हैं। उनका संकल्प बना ‘मैं सतत उड़ना चाहता हूँ, मुझे सीमाएं पसंद नहीं’। 2002 में उन्होंने सौर ऊर्जा के सहारे अनंत उड़ान का सपना देखा। वे अमेरिका के अंतरिक्ष इंजीनियरों पॉल मैकक्रीडी और बर्ट रटन से मिले जिन्होंने एक बार ईधन भरा लेने पर दुनिया की पूरी सैर वाले यानों की डिजाइन तैयार की थी। एक वर्ष बाद ही वे स्विस फ़ेडरल इंस्टीच्यूट पहुंचे और यही ऐंड्रे बोर्श्चबर्ग की अगुवाई में सौर विमान की इनकी कल्पना साकार हुई। सोलर इम्पल्स 2 के ठीक पहले नासा ने इस विमान के एक पूर्व प्रारूप को तैयार कर लिया था जो 12 फ़ीट लंबा मानवरहित यान था- नाम था हेलियोज! मगर यह परीक्षणों के दौरान हवाई द्वीप पर समुद्र की लहरो में जा समाया था। मगर बोर्श्चबर्ग ने यह चुनौती स्वीकार की। पिकार्ड अगर सौर विमान इम्पल्स 1 के स्वप्नद्रष्टा हैं तो बोर्श्चबर्ग उसे साकार करने वाले शख्सियत हैं।
असंभव सी लगने वाली इस परियोजना पर 16 करोड़ डॉलर खर्च हो चुके हैं और बिना बड़े प्रायोजकों से सहयोग मिले ही। हाँ गूगल ने जरूर इस अंतरमहाद्वीपीय उड़ान को सहयोग दिया है। वैसे उड्डयन की दुनिया में यह कोई बड़ी राशि नहीं है क्योंकि एक बोइंग विमान बनाने में 26 करोड़ डॉलर तक व्यय हो जाते हैं। सोलर इम्पल्स के आसमानी राहों में खतरे बहुत हैं -नीले आसमान से सागर की नीली गहराईयाँ कभी कभी बहुत डरावनी लगती हैं। पिकार्ड के साथ एक हादसा 1999 में हुआ था जब गुब्बारे से विष्व भ्रमण के दौरान प्रशांत महासागर में वे मिशन कंट्रोल से संपर्क खो बैठे थे और 37 घंटे तक जीवन और मृत्यु के बीच झूलते रहे। बाद में बचाव दल ने इन्हे और सह पायलट को उबार लिया।
आसमानी खतरे हजार हैं। तड़ित विद्युत, पक्षी, ओला वर्षा और अनवरत उड़ानों में काकपिट का अकेलापन भी कभी कभी काट खाने दौड़ता है! ऊचाईयों की बीमारियां अलग है। वैसे तो इन सबसे निपटने के इंतज़ाम किये गए हैं और यान को ऑटो पायलट मोड में लाकर मात्र 20 मिनट की झपकी भी ली जा सकती है। मगर खतरों के अंदेशे भी कम नहीं। मलेशियाई एयरलाइन की उड़ान संख्या 370 के हादसे से भला कौन अपरिचित है जिसका आज तक कोई अता पता ही नहीं चल पाया। इनके बावजूद भी मनुष्य की उस जिजीविषा को सलाम है जो कभी हार नहीं मानती और असंभव को संभव कर दिखाती है। भारत से उड़कर यह विमान 29 मार्च 2015 से म्यांमार और आगे के पड़ावों की ओर बढ़ चला था!


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