कैसे करती है मधुमक्खियाँ अपनी बात
जे.बी.एस.हाल्डेन
आठ वर्ष पूर्व मैंने डेली वर्कर समाचार पत्र में वॉन फ्रिश आदि के मधुमक्खियों की भाषा पर प्रारंभिक कार्य के बारे में लिखा था। जुलाई 1947 में ज्यूरिख के डॉ. हैडोर्न के साथ लंदन के चिड़ियाघर में गया। हमने वहां शीशे के अंदर बने छŸो में मधुमक्खियों को अपने पैरों के साथ बनी थैलियों में विभिन्न रंगों का पराग लाते देखा। वह मधुमक्खियों को देखकर यह बता पाने में सक्षम थे कि मक्खियाँ किस दिशा से आ रही थीं और अनुमानतः कितनी दूरी से। यह लेख पढ़कर ऐसा ही आप भी कर पाएंगे। पहले से विदित तथ्य इस प्रकार हैं। जब किसी मधुमक्खी को पराग का कोई भरा-पूरा स्रोत मिल जाता है तो वह छŸो में वापस आ जाती है और मधुछŸो में भंडारण करने वाली एक सेविका मक्खी को यह पराग देने से पहले एक अजीबोगरीब-सा ‘नृत्य’ करती है। इस नृत्य के दौरान अन्य मधुमक्खियाँ उस मधुमक्खी को अपनी शंृगिकाओं (ऐन्टेना) से छूकर यह अनुमान लगाने का प्रयास करती हैं कि वह कैसी गंध वाले पराग कण लाई है। फिर वे वैसे ही फूलों या ऐसे चीनी घुले पानी के कटोरों की खोज में उड़ जाती है, जिनमें से वैसी ही गंध आती हो, जैसे पिपरमिंट की।
जब वह फूल या चीनी घुला पानी छŸो से 50 गज की दूरी पर रखा जाता है, मधुमक्खियाँ सभी दिशाओं में ऐसे गंध वाले फूलों या कटोरों को ढूंढने निकल पड़ती हैं। परंतु जब ये मीठे पदार्थ 100 गज से अधिक दूरी पर होते हैं तो वे न केवल सही दिशा की ओर बल्कि सही दूरी तक भी उड़ती हैं। अब क्योंकि इनमें से कुछ मधुमक्खियाँ, मूल खोजकर्ता मधुमक्खी के शहद या पराग जमा करने से पहले ही वहाँ आ जाती है, यह समझाना आसान है कि उस खोजी मधुमक्खी ने अवश्य ही उन्हें सही दिशा एवं दूरी बता दी होगी।
वॉन फ्रिश ने यह पता लगा लिया है कि कोई जानकारी कैसे दी जाती है। यदि भोजन 50 गज के भीतर है तो खोजी मधुमक्खी गोल-गोल घूमकर नृत्य करती है। यदि वह 100 गज से अधिक दूरी पर है तो नृत्य काफी अलग प्रकार का हो जाता है। यह एक विशेष दिशा में एक या दो इंच आगे जाती है, अपने उदर को हिलाती हुई, फिर बिना ‘नृत्य’ किए वापस आती है और उसी नृत्य को बार-बार दोहराती है। जितनी अधिक मात्रा में उसे भोजन मिलता है, और चीनी घुला पानी जितना अधिक मीठा होता है, उतने ही अधिक समय तक यह नृत्य चलता है जिससे अधिक मक्खियाँ उससे इस गंध के विषय में जान पाती हैं जो उसे भोजन के साथ जुड़ी है और अधिक संख्या में वे उस स्रोत को ढूंढने निकल पड़ती हैं।
यदि खोजी मधुमक्खी गोल-गोल घूमकर नृत्य करती है तो अन्य मधुमक्खियाँ स्रोत को ढूंढने के लिए चारों दिशाओं में निकल पड़ती हैं परंतु सौ गज से अधिक दूरी पर नहीं जातीं। इससे अलग प्रकार का नृत्य उन्हें दिशा के बारे में जानकारी देता है। ये नृत्य अधिकतर छŸो के ऊपर होते हैं परंतु कभी-कभी यह छŸो के सामने उतरने वाले मंच पर भी होता है। यदि यह क्षैतिज होता है तो नर्तक मधुमक्खी भोजन की दिशा में बढ़ती है और अन्य मधुमक्खियाँ उसके नृत्य की दिशा में ही उड़ जाती हैं।
परंतु यदि छŸो की सतह खड़ी यानी ऊर्ध्वाधर हो तो इससे भी कहीं अजीब बात होती है। जैसे-जैसे दिन चढ़ता है नर्तक मधुमक्खी एक ही स्थान से आकर विभिन्न दिशाओं की ओर बढ़ते हुए नृत्य करती हैं। मान लें कि भोजन छŸो से दक्षिण-पश्चिम दिशा में है तो यह नृत्य करती मधुमक्खी सुबह नौ बजे क्षैतिज रूप से उल्टे हाथ की ओर, दोपहर को पैंतालीस डिग्री के कोण पर ऊपर की और, तीन बजे ऊर्ध्वाधर रूप से ऊपर की ओर और इसके बाद इसी प्रकार आगे भी बढ़ेगी। असल में ऊपर की ओर नृत्य का अर्थ है कि यह भोजन सूर्य की दिशा में है और दायें हाथ के नृत्य का अर्थ है कि भोजन सूर्य की दायीं ओर है, आदि। यह आश्चर्य की बात है कि बादलों से घिरे हुए आसमान में भी मधुमक्खियों को सूर्य की दिशा सही पता होती है। दूरी का अनुमान नृत्य की लय-ताल से होता है। यदि भोजन केवल 150 गज की दूरी पर है तो नृत्य में इसके लिए एक मिनट में 40 बार ही पूंछ हिलाई जाएगी। यह संख्या कम होकर सिर्फ बीस रह जाती है जब भोजन आधे मील की दूरी पर होता है और दो मील की दूरी के लिए यह केवल आठ ही होगी।
वॉनफ्रिश मानते हैं कि यह भाषा स्काउट मधुमक्खियों द्वारा भी प्रयोग की जाती है जो मधुमक्खियों के एक झुण्ड से निकलकर जाती हैं और फिर लौटकर उन्हें यह बताती है कि नया छŸाा बनाने के लिए उपयुक्त स्थान कहां मिला है। परंतु यह कुछ निश्चित नहीं है क्योंकि झुण्ड बनाने का कार्य बहुत ही कम होता है जबकि गर्मी के मौसम में एक साधारण छŸो को आसानी से सैकड़ों बार देखा जा सकता है।
नृत्य के अलावा मधुमक्खियों के पास कम से कम एक ‘बात’ और होती है, अर्थात वे बहुत सा भोजन मिलने पर एक मीठी सी गंध छोड़ती हैं जिससे अन्य मधुमक्खियाँ उस जगह की ओर आकर्षित होती हैं।
इन प्रेक्षणों का एक महा दार्शनिक महत्व भी लगता है। अधिकतर ऐसा कहा जाता है कि जीवों की ‘भाषा’ उनकी भावनाओं की अभिव्यक्ति होती है और उनसे तथ्यों के कथन का पता नहीं चल सकता। परंतु इतना तो तय है कि मधुमक्खियाँ एक-दूसरे को न केवल यह बता सकती हैं कि उन्हें भोजन मिला है बल्कि यह भी कि वह कहां है। यह सही है कि मक्खियों की भाषा उन्हें जन्म से ही मिलती है और हमारी भांति यह सीखी हुई नहीं होती। मधुमक्खियां शॉ के नाटक बैक टूमैथूसाले की नायिका की भांति हैं जो अंडे से एकदम सही शॉवियन अंग्रेजी बोलती हुई निकलती हैं। परंतु कुछ पक्षियों को अपनी भाषा कुछ हद तक सीखनी पड़ती है। यह बात भी स्पष्ट है कि मधुमक्खियों में दिशाओं की आश्चर्यजनक समझ होती है। यदि छत्ते को घुमा दिया जाए तो नर्तक मधुमक्खी छत्ते के ऊपर अर्ध गोलाकार पथ में घूमती है, जैसे उसके सिर पर कोई दिशासूचक सूई लगी हो। संभवतः उसमें एक प्रकार की चुंबकीय समझ होती है जो हममें नदारद है। उसकी लय-ताल की समझ भी हमसे कहीं अधिक उत्कृष्ट होती है।
पाठक यहाँ पूछ सकते हैं कि क्या यह संभव है कि वॉन फ्रिश हमारी टांग खींच रहे हों, या कम से कम यह कहा जा सकता है कि उनकी कल्पना शक्ति अत्यधिक सक्रिय हो गई हो और उन्होंने यह आश्चर्यजनक कहानी स्वयं बना ली हो। इसका उत्तर यह है कि यद्यपि उन्होंने नृत्य का अर्थ समझने में अवश्य कुछ भूलें की हैं, उनके अधिकतर कार्यों को सत्यापित ही नहीं किया गया बल्कि अनुसरण कर गुबिन, कोमारोव आदि सोवियत संघ के वैज्ञानिकों ने इनका अपने अध्ययन में भी प्रयोग किया है जैसा कि वॉन फ्रिश ने स्वयं जर्मनी एवं आस्ट्रिया में किया है।
लाल क्लोवर के फूलों का निषेचन अधिकतर बंबल मधुमक्खियों द्वारा किया जाता है और इसमें बीज बिना निषेचन नहीं बनते। लेकिन बंबल मधुमक्खियाँ इतनी अधिक नहीं पाई जाती हैं कि वे लाल क्लोवर के एक एकड़ या इससे अधिक क्षेत्र को निषेचित कर सके। साधारण मधुमक्खियाँ इन फलों की अपेक्षा अन्य फूलों को पसंद करती हैं क्योंकि उनके चूसने वाले ऐंटेना इतने लंबे नहीं होते कि वे लाल क्लोवर के फूल से सारा का सारा मकरंद चूस सकें। इसलिए निम्नलिखित तरीके का उपयोग होता है। मधुमक्खियों के छत्ते क्लोवर के खेतों के पास ले जाए जाते हैं। इन क्लोवर के खेतों में चीनी घुले पानी के गिलासों में क्लोवर के फूल डालकर रख दिए जाते हैं। इन्हें मधुमक्खियाँ जल्द ही ढूंढ लेती है और वापस आकर नृत्य करने लगती हैं। उनके सहायक इस प्रचार से प्रभावित होकर सही गंध वाले फूलों की खोज करने लगते हैं। इनमें से कुछ को चीनी धुला पानी मिल जाता है। इनमें से अधिकतर क्लोवर के फूलों में मिठास खोजती हैं। वहाँ उन्हें अधिक मकरंद नहीं मिलता, परंतु अपनी इन खोजों में वे पराग एक फूल से दूसरे फूल तक ले जाती हैं। इनमें से काफी मधुमक्खियों को चीनी घुला पानी मिल जाता हैं। इनमें से काफी मधुमक्खियों को चीनी घुला पानी मिल जाता है जिससे छत्ते में यह प्रचार लगातार चलता रहता है।
यह प्रणाली मुझे फुटबाल पूलों की याद दिलाती है जिनमें केवल कुछ व्यक्ति ही बड़े-बड़े पुरस्कार जीत पाते हैं और बड़ी संख्या में बाकी लोग केवल प्रायोजकों को धनवान बनाते हैं तथा डाक कर्मियों को काम में लगाए रखते हैं। अर्थशास्त्र के हिसाब से यह बीज बनाने वालों के लिए लाभदायक है। वॉन फ्रिश को केवल बारह पाउंड प्रति एकड़ के हिसाब से चीनी के खर्चे पर पांच सप्ताह में प्रति एकड़ 36 पाउंड क्लोवर बीजों की अधिक पैदावर मिली। चूंकि एक पाउंड क्लोवर बीज का खर्च 16 पाउंड चीनी के बराबर है, इसलिए यह एक फायदेमंद सौदा है, पर शायद मधुमक्खियों के लिए नहीं।
इससे भी अधिक लाभ हमें तब मिल सकता है जब हम मधुमक्खियों को फुसलाकर फलों के बागों में ले जा सकें। यह आवश्यक है कि चीनी घुले पानी पर आने वाली मधुमक्खियां जहां तक हो सके फल पुष्पपुंज पर ही बैठें और साथ ही उनका रस पीएं जिसमें पुष्पपुंज पीसकर मिलाया गया हो, ताकि उसमें सही सुगंध आ सके। मुझे नहीं पता कि हम चींटियों की भाषा समझ पाएंगे या नहीं और हमारी चीनी को बर्बाद होने से बचाकर चींटियों से अपनी रसोई का फर्श साफ करवा पाएंगे अथवा नहीं। मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि यदि हम इस विषय पर शोध करें तो हमें वांछित परिणाम मिल जाएंगे, न केवल अन्य प्राणियों बल्कि मानव समाजों के बारे में भी।
मधुमक्खियाँ अपना रास्ता कैसे ढूंढती हैं
मैंने वॉन फ्रिश के कार्यों पर अनेक लेख लिखे हैं जो मधुमक्खियों की ज्ञानेन्द्रियों तथा उनके संचार करने के तरीकों के विषय में बताते हैं। अभी हाल ही में उन्होंने एक ऐसी खोज की है जिससे प्राणियों के व्यवहार की अनेक बातों पर से रहस्य का पर्दा उठ जाएगा। मधुमक्खियाँ निश्चय ही रंगों एवं आकारों को पहचान सकती हैं। अधिक स्पष्टता से कहें तो इनका भेद करने में मधुमक्खियों को प्रशिक्षित किया जा सकता है। उनकी रंगों को पहचानने की शक्ति विलक्षण होती है परंतु आकार पहचानने की शक्ति हमारी या एक पक्षी की शक्ति से अधिक नहीं होती। परंतु वे प्रकाश के धुव्रण की पहचान कर सकती हैं जिसमें हम असमर्थ होते हैं। जब प्रकाश कुछ विशेष क्रिस्टलों में से होकर गुजरता है तो उसका पथ कुछ मुड़ जाता है। परंतु क्रिस्टल में से एक के बजाए दो किरणें निकलती हैं जिनके गुणधर्म अलग-अलग होते हैं।
साधारण प्रकाश में होने वाले वैद्युत कंपन उसके संचरण की दिशा के लंबवत् होते हैं। लेकिन, किसी क्रिस्टल से निकलने वाले ध्रुवीय प्रकाश पुंज में ये केवल एक ही दिशा में होते हैं। उदाहरण के लिए, यदि प्रकाश उŸार दिशा में जा रहा है तो कंपन ऊपर या नीचे, या पूर्व व पश्चिम दिशा में हो सकते हैं परंतु वे हमेशा उसी तल पर ही होंगे। हम एक ऐसे क्रिस्टल का प्रिज्म बना सकते हैं जो किसी विशिष्ट तल में ध्रुवित प्रकाश को ही निकलने देता है और उसे घुमाकर यह पता लगा सकते हैं कि कोई विशेष प्रकाश पुंज किस तल में ध्रुवित है। शर्करा तथा कई अन्य पदार्थ जिनमें असमित परमाणु होते हैं, ध्रुवित प्रकाश के तल को उस जल में से गुजारने पर जिनमें वे घुले होते हैं और इस मिश्रण का प्रयोग पानी में घुली शक्कर की मात्रा का परिशुद्धतापूर्वक पता लगाने के लिए किया जाता है।
वॉन फ्रिश ने पता लगाया कि शहद या पराग के विशाल स्रोत से लौट रही मधुमक्ख्यिाँ एक विलक्षण नृत्य से अपने साथियों को उसका दिशा ज्ञान कराती हैं। यदि वह नृत्य सपाट तल पर किया जाता है तो इसमें भोजन की दिशा की ओर दौड़ों की एक शंृखला होती है, जिसमें वापस आने का टेढ़ा-मेढ़ा पथ धीरे-धीरे चलकर पूरा किया जाता है। यदि यह नृत्य ऊर्ध्वाधर तल पर किया जाता है, जैसे कि शहद का छत्ता, तो ऊपर की दिशा सूर्य की दिशा को सूचित करेगी। इस तरह अगर सूर्य दक्षिण में है और भोजन दक्षिण-पश्चिम दिशा में तो वे ऊर्ध्वाधर दिशा के दाई ओर से 45 अंश के कोण की दिशा में ऊपर की ओर उडेंगीं। वॉन फ्रिश ने देखा कि यदि वह उनके नृत्य के लिए सपाट तल देता है और इस तल पर शीशे की दोहरी चादर रखता है जिनके बीच में कुछ क्रिस्टल भी हैं, जो केवल एक दिशा में ही ध्रुवित प्रकाश को अपने में से निकलने देते हैं, तो नृत्य की दिशा बदल जाती है।
इसका क्या आशय है? सूर्य से आने वाला सीधा प्रकाश ध्रुवित नहीं होता है, लेकिन शेष आकाश, विशेषकर साफ नीले आकाश से आता प्रकाश ध्रुवित होता है। किसी भी चीज से परावर्तित प्रकाश भी इसी तरह ध्रुवित होता है। हालांकि यह इतनी गहनता से ध्रुवित नहीं होता जितना कि कुछ क्रिस्टलों से गुजर कर निकला हुआ प्रकाश। यही वजह है कि कार चालक एक गीली सड़क पर से परावर्तनों द्वारा आने वाली चमक को ‘‘पोलेरॉडइ’’ चश्मों या विंडस्क्रीन की मदद से दूर कर सकते हैं। मेघों से ढके सूर्य जब बादलों से ढका हो तो उसकी मदद से मधुमक्खी अपना रास्ता स्वतः नहीं ढूंढ पाती है जितना कि आकाश से आते ध्रुवित प्रकाश से और प्राकृतिक रूप से ध्रुवित दिन के प्रकाश को कृत्रिम ध्रुवित प्रकाश से प्रतिस्थापित किए जाने पर वह बुद्धू बन जाती हैं।
हम ऊपर एवं निचली दिशा में बिना सोचे अंतर कर लेते हैं। मधुमक्खियाँ नीले आकाश के एक छोटे-से टुकड़े से भी सूर्य, भले ही वह बादल के पीछे छिपा हो, की दिशा का अनुमान लगा सकती हैं। बेशक, हमें इस बात का कोई अन्दाजा नहीं है कि उन्हें ध्रुवित प्रकाश देखने में कैसा लगता है और न ही यह कि रंगों को पहचानने की उनकी क्षमता हमारी जैसी है या नहीं। यह संगीत के सुरों को पहचानने या सूंघने की हमारी क्षमता जैसी हो सकती है, लेकिन इसका परिणाम यह है कि वह सतह जो हमें एक समान रूप से रंगी हुई सी लगती है उन्हें एक दिशा में खींची गई बारीक रेखाओं से भरी दिखाई देती है। रेखाओं की यह दिशा दिन चढ़ने के साथ बदलती जाती है।
ऐसे ही अन्य बहुत से कीट अपना आवास ढूंढने में पारंगत होते हैं एवं प्राणिविज्ञानी संभवतः आने वाले कुछ समय तक यह पता लगाते रहेंगे कि क्या वे भी ध्रुवित प्रकाश को देख सकते हैं। यह संभव है, पर पक्षियों में भी यह क्षमता हो, इसकी संभावना कम है। इसलिए कि प्रवासी पक्षी रात के समय समुद्र के ऊपर से उड़ते हैं और फिर भी अपना सही मार्ग बनाए रखते हैं। इस बारे में बहुत से सुझाव दिए गए हैं कि पक्षी अपना मार्ग कैसे ढूंढते हैं। इनमें से अनेक गलत सिद्ध हुए हैं। यह संभव है कि दिशासूचक यंत्र की तरह वे पृथ्वी के चुंबकत्व के प्रति संवेदनशील हों, लेकिन यदि ऐसा है तो वे शक्तिशाली चुम्बकों द्वारा पथभ्रष्ट हो जाने चाहिए, पर ऐसा नहीं होता है। परंतु मधुमक्खियों के विषय में हुई खोज से लगता है कि वे अपने परिवेश के किसी दिशात्मक गुण से परिचित हैं जिसके प्रति मनुष्य संवेदनशील नहीं हैं। यह ध्रुवित प्रकाश जैसा जाना-पहचाना कुछ हो सकता है। यह भी हो सकता है कि वे कुछ घटना चक्र पर निर्भर करते हों जिसकी पहचान भौतिकी विज्ञानी नहीं कर पाए हैं। अगर ऐसा ही है तो प्रवास के दौरान पक्षी अपना रास्ता कैसे ढूंढते हैं, इसकी खोज नई भौतिक घटना की खोज होगी, जो शायद बहुत महत्वपूर्ण होगी।
वॉन फ्रिश की खोज में हमारी रूचि दो कारणों से है। यह पहला अवसर है जब अन्य प्राणियोें में मनुष्य से अलग कोई ऐसी शक्ति पाई गई है जो हमारी शक्तियों से एकदम अलग है। इसमें संदेह नहीं कि कुत्ते की सूंघने की शक्ति हमसे कहीं अच्छी होती है और ध्वनि की दिशा का पता लगाने में भी वह हमसे ज्यादा माहिर होता है। लेकिन हम यह जानते हैं कि गंध क्या होती है और ध्वनि की दिशा का भी एक मोटा अनुमान लगा सकते हैं। यदि कोई कुत्ता चुंबकत्व या रेडियो तरंगों की पहचान कर पाता तो हममें कुछ और जैसे कि मधुमक्खियों में पाई जाने वाली नई किस्म की शक्ति मौजूद थी। दूसरे यह हमारे लिए एक चेतावनी देता है कि हमें अन्य प्राणियों के व्यवहार को समझने में सावधानी बरतनी होगी और उनके संसार को उनकी दृष्टि से देखना होगा, न कि अपनी दृष्टि से। हमें यह लग सकता है कि उनमें प्रशंसनीय अंतःप्रेरणा एवं अन्तःज्ञान होता है क्योंकि वे आसानी से उस बात का पता लगा लेते हैं जिनके लिए हमें जटिल उपकरणों का सहारा लेना पड़ता है। विश्व तो केवल एक ही है,पर यह अलग-अलग प्राणियों को एकदम अलग लगना चाहिए। हमें इसके विषय में इन प्राणियों का अध्ययन करके ही पता और अधिक चल सकता है।
(साभार: हर चीज कहती है अपनी कहानी)