तकनीकी


डिजिटल इंडिया 

तैयारी दूसरी सूचना क्रांति की


बालेन्दु षर्मा ‘दाधीच’

केंद्र सरकार की ‘डिजिटल इंडिया’ नामक पहल भारत में सूचना क्रांति के दूसरे दौर का सूत्रपात कर सकती है। नागरिकों को तकनीकी दृष्टि से सक्षम बनाने, सरकारी सेवाओं को डिजिटल माध्यमों से जनता तक पहुँचाने, सूचना तकनीक और दूरसंचार के क्षेत्र में व्यापक आधारभूत विकास करने तथा विभिन्न विभागों व मंत्रालयों की डिजिटल सेवाओं को आपस में जोड़ने वाली इतनी बड़ी, सुनियोजित और समन्वित परियोजना की परिकल्पना भारत में अब तक नहीं की गई थी। हालाँकि केंद्र और राज्य सरकारें पिछले कुछ दशकों से कम्प्यूटरीकरण और ई-प्रशासन को महत्व देती आई हैं और उन्होंने इस दिशा में अपने-अपने स्तर पर सफलताएँ भी अर्जित की हैं, किंतु सूचना क्रांति में निहित व्यापक संभावनाओं की तुलना में ये उपलब्धियाँ बहुत सीमित हैं। ‘डिजिटल इंडिया’ को भारत की राजनैतिक-सामाजिक व्यवस्था, हमारी अर्थव्यवस्था और देश की जनता को ज्ञान आधारित भविष्य की ओर ले जाने के महत्वाकांक्षी प्रयास के रूप में देखा जा सकता है।
एक लाख करोड़ रुपए से अधिक की लागत वाली यह पहल इंटरनेट और संचार प्रौद्योगिकी, जिसे आईसीटी कहा जाता है, में निहित संभावनाओं, शक्तियों और सुविधाओं को भारत के गाँव-गाँव तक पहुँचाने में प्रभावी भूमिका निभा सकती है। हालाँकि लक्ष्य बहुत महत्वाकांक्षी तथा चुनौतीपूर्ण हैं किंतु प्रधानमंत्री, जिन्हें स्वयं डिजिटल तकनीकों के प्रयोग में प्रवीणता के लिए सराहा जाता है, सन् 2019 तक पूरी होने वाली इस पहल में गहरी दिलचस्पी ले रहे हैं और इसके क्रियान्वयन की निगरानी करने वाले शीर्ष समूह का नेतृत्व कर रहे हैं।
हम तीन बड़े लक्ष्यों को लेकर आगे बढ़ रहे हैं- पहला, देश में व्यापक स्तर पर आधारभूत डिजिटल सेवाओं का विकास जिनका प्रयोग नागरिकों द्वारा बेरोक-टोक किया जा सके। दूसरा, जनता को इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से सरकारी सेवाएं तथा प्रशासनिक सुविधाएं हर समय उपलब्ध रहें, जिसे तकनीकी भाषा में ‘ऑन डिमांड’ कहा जाता है, अर्थात् जब चाहें, सेवा पाएँ। तीसरा लक्ष्य है- भारतीय नागरिकों को तकनीकी दृष्टि से सक्षम और सबल बनाना। इसके लिए ज़रूरी है कि तकनीकी उपकरणों, सुविधाओं, ज्ञान और सूचनाओं को समाज के सभी स्तरों तक पहुँचाया जाए। 
वैष्विक रुझानों के अनुरूप
डिजिटल इंडिया की अवधारणा तकनीकी विष्व के ताजा रुझानों के अनुरूप है जहाँ दुनिया भर की आबादी को इंटरनेट से जोड़ने की प्रक्रिया चल रही है। न सिर्फ सरकारों के स्तर पर बल्कि निजी क्षेत्र की कंपनियों द्वारा भी। दुनिया की सबसे बड़ी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट फेसबुक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जुकरबर्ग ने पिछले दिनों अपने भारत दौरे के समय कहा था कि भारत के 23 करोड़ लोग इंटरनेट से जुड़े हैं जबकि एक अरब आज भी इससे वंचित हैं। यदि भारत अपने गांवों को कनेक्ट करने में सफल रहता है तो दुनिया उसकी ओर ध्यान देने पर मजबूर होगी। देश के विशाल समाज और उसमें निहित बाजार तक पहुँच का एक आसान तथा शक्तिशाली जरिया उपलब्ध हो जाएगा।
मार्क जुकरबर्ग के बयान के कारोबारी निहितार्थ हो सकते हैं, लेकिन उनकी टिप्पणी व्यावहारिक है। मैकिन्सी के अनुसार विष्व के सर्वाधिक इंटरनेट-वंचित लोग भारत में ही हैं। अगर इतनी बड़ी आबादी इंटरनेट से जुड़ जाती है और इस माध्यम का प्रयोग उसके साथ सीधे कनेक्ट करने के लिए किया जाता है तो उसके परिणाम कितने विस्मयकारी हो सकते हैं, इसकी कल्पना मात्र ही रोमांचित कर देती है। इंटरनेट को दोतरफा संपर्क, आग्रह और डिलीवरी के माध्यम के रूप में इतनी बड़ी आबादी तक ले जाया जा सके तो ई-प्रशासन, ई-कॉमर्स, ई-शिक्षा और ई-बैंकिंग जैसे क्षेत्रों का कायाकल्प हो जाएगा। केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद को यकीन है कि देश में डिजिटल क्रांति और मोबाइल क्रांति के घटित होने के कगार पर है। महत्वपूर्ण यह है कि यह कनेक्टिविटी प्रशासन और जनता के बीच मौजूद अवरोधों को ध्वस्त करने में भी योगदान देंगी और हमारी प्रशासनिक मशीनरी को ज्यादा पारदर्शी तथा जवाबदेह बनाएंगी। 
केंद्र सरकार ने सन् 2017 तक 2ण्5 लाख गांवों में ब्रॉडबैंड इंटरनेट कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा है। लगभग इतने ही विद्यालयों को सन् 2019 तक वाई-फाई सुविधा से लैस कर दिया जाएगा। नेशनल ऑप्टिक फाइबर नेटवर्क, जिस पर करीब 35 हजार करोड़ रुपए की राशि खर्च की जाने वाली है, ग्रामीण जनता को इंटरनेट सुपरहाइवे पर ले आएगी। डिजिटल सेवाओं के सार्थक प्रयोग के लिए डिजिटल शिक्षा और जागरूकता भी बहुत महत्वपूर्ण है। केंद्र सरकार का ‘दिशा’ नामक कार्यक्रम इसमें हाथ बँटाएगा और बड़ी संख्या में भारतीय नागरिकों को डिजिटल साक्षरता की ओर भी ले जाएगा। 

स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र को संबोधित करते समय प्रधानमंत्री ने ई-गवर्नेंस के साथ-साथ एम-गवर्नेंस का भी जिक्र किया था, जिसका अर्थ है सचल युक्तियों या मोबाइल गैजेट्स के माध्यम से तकनीकी सेवाओं तथा सुविधाओं की डिलीवरी। डिजिटल इंडिया परियोजना में मोबाइल फोन के प्रयोग को काफी महत्व दिया जा रहा है क्योंकि यह सरकारी सेवाओं को घर-घर तक ले जाने का आसान जरिया बन सकता है। भारत में कम्प्यूटर और इंटरनेट का प्रयोग आज भी बहुत सीमित है किंतु मोबाइल कनेक्शनों के प्रसार की दृष्टि से हम चीन के बाद विष्व में दूसरे नंबर पर हैं। अगस्त 2014 के आंकड़ों के अनुसार भारत में 80 करोड़ से भी अधिक मोबाइल कनेक्शन मौजूद हैं। जहाँ कम्प्यूटर और इंटरनेट के प्रयोग के लिए बिजली की उपलब्धता एक बड़ा मुद्दा है, वहीं मोबाइल के साथ ऐसा नहीं है इसलिए भारतीय परिस्थितियों में ई-गवरनेंस की तुलना में एम-गवरनेंस अधिक प्रभावी सिद्ध हो सकता है। 
डिजिटल इंडिया के तहत विकास के नौ स्तंभ चिन्हित किए गए हैं, जिनमें ब्रॉडबैंड हाइवेज, सर्वत्र उपलब्ध मोबाइल कनेक्टिविटी, इंटरनेट के सार्वजनिक प्रयोग की सहज सुविधा, ई-प्रशासन, ई-क्रांति- जिसका अर्थ सेवाओं की इलेक्ट्रॉनिक डिलीवरी से सबके लिए सूचना, इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण, रोजगार के लिए सूचना प्रौद्योगिकी तथा अर्ली हार्वेस्ट कार्यक्रम शामिल हैं। केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों को निर्देश दिए गए हैं कि वे ऐसी सेवाओं और सुविधाओं का विकास करने में जुटें जिन्हें आईसीटी के माध्यम से लोगों तक पहुँचाया जा सके। इनमें स्वास्थ्य सेवाएँ, शिक्षा, न्यायिक सेवाएँ, राजस्व सेवाएँ, मोबाइल बैंकिंग आदि शामिल हो सकती हैं। फिलहाल इन विभागों की तरफ से डिजिटल माध्यमों से उपलब्ध कराई जाने वाली सेवाएं सीमित हैं और उनके बीच कोई स्पष्ट तालमेल नहीं है। एक केंद्रीय तंत्र के अधीन शामिल कर लिए जाने पर ऐसा तालमेल सुनिश्चित किया जा सकेगा और वे एक-दूसरे से लाभान्वित हो सकेंगी। राज्यों के स्तर पर डिजिटल तकनीकों, सुविधाओं और सेवाओं के विकास की एक अलग, समानांतर प्रक्रिया चल रही है। ज़रूरत राज्यों की परियोजनाओं को भी डिजिटल इंडिया के दायरे में लाने की है ताकि अनावश्यक दोहराव, भ्रम और अतिरिक्त खर्चों से बचा जा सके। सरकार इस संदर्भ में राज्यों की सहमति हासिल करने का प्रयास कर रही है। इस संदर्भ में राज्यों के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रियों और सचिवों का राष्ट्रीय सम्मेलन भी आयोजित किया जा चुका है, जिसमें केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने कहा है कि देश डिजिटल क्रांति के मुहाने पर खड़ा है। 

चुनौतियाँ कम नहीं

डिजिटल इंडिया के लिए निर्धारित सन् 2019 की समय सीमा बहुत दूर नहीं है, जो इतनी विशाल परियोजना के लिए बड़ी चुनौती सिद्ध होने वाली है। भारत में बिजली, आधारभूत सुविधाओं, संचार तंत्र आदि की भी सीमाएँ हैं। लास्ट माइल कनेक्टिविटी, यानी अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति तक सेवाएँ मुहैया कराने के लिए विशाल तंत्र के निर्माण की जरूरत है और उसे स्थायित्व देने के लिहाज से लाभप्रद बनाए जाने की भी। सरकार को इस चुनौती का अहसास है और उसे नए सहयोगियों के साथ जुड़ने में आपत्ति नहीं है। सरकार न सिर्फ आम लोगों, विशेषज्ञों आदि को जोड़ने की इच्छुक है बल्कि निजी क्षेत्र की कंपनियों को साथ लेकर चलने में भी कोई हिचक नहीं है। ‘डिजिटल इंडिया’ में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है और यही वजह है कि गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, फेसबुक, अमेजॉन जैसी विष्व की अग्रणी आईटी कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों ने पिछले दिनों भारत का दौरा किया है। आईबीएम और सिस्को जैसी अन्य कंपनियाँ भी परियोजना में अपनी दिलचस्पी दिखा चुकी है। भारत के आईटी उद्योग के लिए भी बड़ा कारोबारी अवसर उभरने जा रहा है।
भारत के समाज और अर्थव्यवस्था में विकास की व्यापक संभावनाएँ निहित हैं किंतु समुचित आधारभूत ढाँचे के अभाव में हम उन संभावनाओं का पर्याप्त दोहन नहीं कर पाते। डिजिटल इंडिया परियोजना भारत में डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में मील का पत्थर सिद्ध होने वाली है। अगले पाँच साल में जिस बड़े पैमाने पर आधारभूत सुविधाओं का विकास होने वाला है, वह बाजार अर्थव्यवस्था से जुड़े हमारे व्यापक आर्थिक लक्ष्यों के भी अनुकूल है। उम्मीद करनी चाहिए कि डिजिटल इंडिया न सिर्फ सरकार और नागरिकों के बीच दूरी को पाट सकेगी बल्कि इक्कीसवीं सदी की अपेक्षाओं के अनुरूप हमें ज्ञान आधारित भविष्य की ओर भी ले जा सकेगी।


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