संपादकीय


डॉ.ए.पी.जे. अब्दुल कलाम

जब वर्ष 2002 में डॉ.ए.पी.जे.अब्दुल कलाम भारत के राष्ट्रपति बने तो विज्ञान के क्षेत्र में काम करने वाले हम सब मित्रों को बहुत प्रसन्नता हुई थी। वे डॉ. राधाकृष्णन जैसे दार्षनिक बुद्धिजीवी की परंपरा से आते थे जिसने देष में ज्ञान-विज्ञान की परंपरा को आगे बढ़ाने का बड़ा काम किया।
उनके जीवन और आदर्षों के बारे में काफी कुछ लिखा गया है। देष के मिसाईल और अंतरिक्ष कार्यक्रमों को नई ऊँचाई तक ले जाने, देष में सुरक्षा एवं षक्ति के पक्ष में एक नया पर्यावरण रचने, ग्रामीण विकास का एक नया मॉडल तैयार करने तथा बच्चों और षिक्षा के साथ उनके अभूतपूर्व जुड़ाव ने उन्हें देष का हीरो बना दिया। उनके निधन से देष भर में षोक की जो व्यापक लहर फैली और आमजन से लेकर षीर्ष नेताओं तक जिस तरह उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित किये गये, यह उनकी अपार लोकप्रियता का ही परिणाम था।
वैसे तो हम लोग उनके विचारों के पहले से ही कायल थे पर मेरी पहली मुलाकात उनसे दिल्ली के विज्ञान भवन में वर्ष 2005 में हुई जहाँ वे हमारी संस्था आईसेक्ट को इंडियन इनोवेषन अवार्ड देने के लिये पधारे थे। आईसेक्ट का ग्रामीण विकास के लिये सूचना तकनीक का मॉडल, उनके पुरा मॉडल (प्रॉवीज़न ऑफ अर्बन सर्विसेज़ इन रूरल एरियाज़) के बहुत निकट बैठता था। उन्होंने विस्तार से इसके बारे में जानने की कोषिष की, तत्काल ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली और कनेक्टिविटी की समस्या पर नवाचारों के बारे में बताया था जिन्हें सुनकर वे बहुत खुष हुये थे। मंच से उन्होंने इसका ज़िक्र भी किया। उनका मानना था कि ब्रॉडबैंड सुविधा प्रत्येक गाँव तक पहुँचानी चाहिये और ज्ञान-विज्ञान की खिड़की हर बच्चे के लिये खुलनी चाहिये। उन्होंने इस बात पर विषेष रूप से खुषी जाहिर की थी कि आईसेक्ट मध्यप्रदेष एवं छत्तीसगढ़ के ग्रामीण तथा आदिवासी क्षेत्रों में काम कर रहा है। उनके साथ उनके मित्र और प्रख्यात वैज्ञानिक प्रोफेसर एम.जी.के.मेनन भी थे जो हमारी ज्यूरी के सदस्य थे।
दूसरी बार उनके मेरी मुलाकात तब हुई जब आई.टी. क्षेत्र की प्रख्यात संस्था नैसकॉम ने आईसेक्ट को नैसकॉम इनोवेषन अवॉर्ड के लिये चुना। मुंबई के हयात होटेल में अत्यंत भव्य और गरिमामय समारोह में वे देषभर के आई.टी. दिग्गजों के बीच उपस्थित थे। मंच पर उनके साथ टी.सी.एस. के डॉ. रामादुराई और नैसकॉम के अध्यक्ष डॉ.किरण कार्णिक भी थे। उनका वहाँ दिया गया भाषण मुझे सदा याद रहेगा। उन्होंने आई.टी. के क्षेत्र में एषियन देषों के बीच सहयोग की बात की थी कि इसी के माध्यम से वे विष्व में एक ताकतवर यूनिट के रूप में उभर सकते थे। वे चाहते थे कि मलेषिया, थाईलैंड से लेकर भारत होते हुये मध्यपूर्व तक एक ऐसे फाईबर ऑप्टिक्स केबल नेटवर्क का विस्तार हो जिससे संचार सरल और सुगम हो सके। उन्होंने नैसकॉम से 10 बिलियन डॉलर की भारतीय आई.टी. इंडस्ट्री को दस वर्षों के भीतर 100 बिलियन डॉलर तक ले जाने का आह्वान किया था और भारत में उसके विस्तार की संभावनाओं को भी रेखांकित किया था। आज जब हम भारत में एषियन देषों के बीच सहयोग की पहल देखते हैं या सूचना तकनीक का विस्तार पाते हैं तो उसमें कहीं न कहीं डॉ.कलाम का विज़न साफ तौर पर नज़र आता है।
यह भारत का सौभाग्य रहा कि उसे डॉ. कलाम जैसे स्वप्न दृष्टा राष्ट्रपति मिले जिन्होंने ‘इंडिया 2020’ में राष्ट्रनिर्माण का नया स्वप्न देखा, ‘विंग्स ऑफ फायर’ में आलोकित मन और दिमाग़ का संदेष दिया और देष की कई पीढ़ियों को एक साथ नये स्वप्न देखने, नया काम करने और नवप्रवर्तन के लिये प्रेरित किया।
इलेक्ट्रॉनिकी का ये अंक डॉ. कलाम की स्मृति को समर्पित है।


- संतोष चौबे