विज्ञान


क्या अंतरिक्ष से आए हैं एलियन के रेडियो संकेत?

प्रमोद भार्गव

 

अंतरिक्ष से आने वाला रेडियो संकेत वैज्ञानिकों के लिए विस्मय का कारण बन गए हैं। वैज्ञानिकों ने पहली बार किसी ऐसे रेडियो संकेत को सुना है, जो एक निश्चित अवधि के अंदर बार-बार आ रहा है। वैज्ञानिकों ने इसे ‘फास्ट रेडियो बर्स्ट’ (एफआरबी) यानी ‘तीव्र रेडियो प्रस्फोट’ नाम दिया है। ब्रिटिश कोलंबिया और आस्ट्रलिया नेशनल साइंस ऑर्गेनाइजेशन में ये प्रयोग चल रहे हैं। यह संकेत 16.35 दिन में मिल रहा है। दस सेकेंड तक मिलते रहने वाले इस संकेत के साथ दो चीजें अनूठी हैं, एक तो अंतरिक्ष से आने वाला यह पहला ऐसा रेडियो संकेत है, जिसकी एक निश्चित अवधि के बाद पुनरावृत्ति हो रही है। दूसरे, यह अंतरिक्ष के बाहरी भाग में स्थित किसी स्रोत से आ रहा है, जो धरती के बहुत करीब है। हालांकि 1972 में पहला रेडियो संकेत मिलने का दावा रषियन अखबार ‘प्रावदा’ ने किया था। उसके बाद मिलने वाले पाँच ऐसे संकेत हैं, जिन्हें बाकायदा रिकॉर्ड किया गया है। पहला, वाओ नामक संकेत 72 सेकेंड तक मिला था। दूसरा, एसएचजीबी-0+40ए संकेत है। तीसरा, एचडी-164595 रेडियो संकेत सूर्य के पास स्थित किसी सितारे से आया था। चौथे, रेडियो संकेत को कॉस्मिक रॉर अर्थात अंतरिक्ष की दहाड़ नाम दिया गया है। पांचवां संकेत एफआरबी 180924, छठा एफआरबी 180916 और सातवां एफआरबी 190523 है। दो अन्य संकेत भी मिले हैं, जो एफआरबी की कडि़यों में ही गिने गए हैं। अंतरिक्ष की एक विलक्षणता यह है कि वहाँ हवा नहीं होती है। इसलिए ध्वनि अर्थात आवाज एक स्थान से दूसरे स्थान तक नहीं जाती है। लेकिन तरंगें आ-जा सकती हैं।  

एफआरबी का स्रोत

एफआरबी की पहचान 2007 में खगोलविज्ञानी डंकन लोरीमर एवं डेविड नारकेविक ने पल्सरों के अध्ययन के दौरान की थी। इस वजह से इन्हें ‘लोरीमर प्रस्फोट‘ भी कहा जाता है। अब तक वैज्ञानिकों ने दो तरह के एफआरबी का पता लगाया है। एक तो वे एफआरबी हैं, जिनसे एक ही बार रेडियो संकेत छोड़ा जाता है और दूसरे वह हैं, जो बार-बार अपने स्रोत से छोड़े जाते हैं। वैज्ञानिक टेवनी ने चार फरवरी 2020 को बार-बार आने वाले रेडियो संकेत का नाम एफआरबी-180916 दिया है। इस संकेत के विश्वसनीय स्रोत का फिलहाल पता नहीं चला है। नतीजतन कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि कृष्ण विवर (ब्लैक हॉल) से यह संकेत आता है। ऐसा अनुमान है कि जिस स्रोत से यह संकेत निकलता है, वह अपने अक्ष पर 16ण्35 दिनों में एक बार घूमता होगा। इसलिए प्रत्येक 16ण्35 दिन में यह संकेत मिल रहा है। वहीं कुछ वैज्ञानिक इसके एलियन से संबंध होने की भी आशंका जता रहे हैं। उनका मानना है कि एलियन की ओर से ये संकेत पृथ्वी पर भेजे जा रहे हैं। वैज्ञानिकों का अंदाज है कि एफआरबी धरती से 50 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर स्थित तारामंगल के बाहरी हिस्से से आता है। सितम्बर 2018 से अक्टूबर 2019 के बीच वैज्ञानिकों ने रेडिया दूरबीन से एफआरबी की निगरानी करने पर पाया कि ये संकेत लगातार चार दिनों तक अनुभव किए जाते हैं और फिर 12 दिन तक गायब रहते हैं। इस तरह 16.35 दिनों की अवधि के बाद ये संकेत फिर लौट आते हैं। कुछ वैज्ञानिक इन्हें धूमकेतुओं से उत्सर्जित होना भी मान रहे हैं।
क्या इनका स्रोत एलियंस हैं
इन संकेतों का स्रोत एलियन अर्थात पराग्रही हैं तो यह प्रश्न स्वाभाविक है कि ब्रह्माण्ड के असीम विस्तार में पृथ्वी के अलावा भी जीवन की संभावनाएं हैं। हमारे ही नहीं विश्व के प्रत्येक प्राचीन धर्म की पौराणिक कथाओं में सुदूर ग्रह या लोकों के देवताओं के पृथ्वी पर आने-जाने का उल्लेख मिलता है। इन पौराणिक कथाओं के शाब्दिक अर्थों के प्रकाश में उनकी तार्किक उपस्थिति की पड़ताल के लिए वैज्ञानिक सक्रिए हुए हैं। एलियंस के आ रहे चित्रों, विज्ञान-कथाओं व फिल्मों में जीवंत पात्र की भूमिका ने इसकी एक काल्पनिक छवि हमारी स्मृति में उकेर दी है। इनके अस्तित्व और मानव सभ्यता पर इसके प्रभाव को लेकर शोध निरंतर जारी हैं। प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने एलियंस से संपर्क नहीं करने की चेतावनी दी थी। उन्होंने इन्हें पृथ्वी निवासी मानव अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा बताया था। उनकी शंका थी कि एलियंस हमसे बेहतर तकनीक वाले जीव हो सकते हैं। हालांकि कई वैज्ञानिकों ने इस आशंका को निर्मूल बताया है।
खैर, साहसी लोग शंका-कुशंकाओं की परवाह किए बिना आगे बढ़ते हैं। गोया, आज अंतरिक्ष में अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन है, जो ब्रह्माण्ड की गुत्थियों को सुलझाने की कोशिश में लगा है। चंद्रमा के बाद मनुष्य मंगल पर पहुंचने का रास्ता प्रशस्त करने में लगा है। हालांकि अभी तक जीवंत रूप में कोई पराग्रही चंद्रमा और मंगल पर सक्रिय उपग्रहों की दृष्टि में नहीं आया है और न ही मनुष्य के जीवन के जीवनदायी तत्व पानी की उपलब्धता देखने में आई है। बावजूद खगोलविज्ञानी षक्तिशाली दूरबीनों और उपग्रहों के माध्यम से अनंत आकाश के किसी ग्रह पर मानवीय बसाहट की उम्मीद से ब्रह्माण्ड को खंगाल रहे हैं। संभव है, इसी तलाश में कोई पराग्रही जीव अंतरिक्ष में लगे कैमरे की आँख में कैद हो ही जाए ?
हालांकि तमाम जीवविज्ञानियों का मानना तो यहां तक है कि अतीत में सुदूर ग्रहों से परलोकीय प्राणी पृथ्वी पर आए थे और उन्होंने ही पृथ्वीवासी मनुष्य को सभ्य होने का रास्ता दिखाया था। अब हमारे पुराणों में तो जितने देवता हैं, उनका निवास परलोक ही है। इस परलोकीय स्वर्ग के राजा इंद्र हैं। जब भी कोई पराक्रमी अपने तप बल से इस लोक की ओर जाने को उद्यत होता है, तो बेचारे इंद्र का सिंहासन ढोलने लग जाता है। तब परलोकवासी ब्रह्मा, विष्णु, महेश इंद्र को मदद का आश्वासन देते हैं और फिर पराक्रमी देव हों या दानव या फिर मानव उसे परलोक की ओर जाने से रोक देते हैं। देवता धरती व अन्य ग्रहों पर अपने आकाशगामी यानों से आया-जाया करते थे। हालांकि अब अनेक परंपरागत जड़ताएं टूट रही हैं। वैज्ञानिक एलियंस की सच्चाई को समझने के लिए पराग्रही देवताओं के काल्पनिक व अविश्वसनीय से लगने वाले अस्तित्व में भी झांक रहे हैं।

वैज्ञाानिकों के दावे

अपनी मृत्यु से कुछ समय पहले प्राध्यापक चार्ल्स हैपगुड से आइंर्स्टाइन ने कहा था, ‘मैं यह मानने को तैयार हूँ कि प्रागैतिहासिक काल में ग्रहों के वासी पृथ्वी पर आए थे।’ पराग्रही प्राणियों के अध्ययन क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ। फ्रांसिस क्रिक और लेस्त्री ऑर्गल नाम के इन दो जीव विज्ञानियों का अभिमत है कि ‘जीवन की उत्पत्ति पृथ्वी पर नहीं हुई। आज से अरबों वर्ष पूर्व, हमारी आकाशगंगा में स्थित किसी सभ्य ग्रह से शैवाल अथवा सूक्ष्मजीवों से भरा कोई अंतरिक्ष यान पृथ्वी पर आया होगा और पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति और सभ्यता का विकास करके अपने ग्रह पर वापस लौट गया होगा।’ रॉकेट के आविष्कारक हरर्मन हावर्थ ने अपने एक भाषण में कहा था, ‘यह संभावना है कि पृथ्वी पर कभी अन्य ग्रहवासियों का आगमन हुआ था, मुझे असत्य व अविश्वसनीय नहीं लगता है।’ इसी क्रम में प्रसिद्ध जीव वैज्ञानिक कार्ल सागन ने कहा था कि ‘अन्य ग्रहों पर जीवन है या नहीं, इस खोज की  शुरूआत हमें पृथ्वी पर से ही करनी होगी, क्योंकि पृथ्वी पर अन्य ग्रहों पर जीवन के अनेक बोलते प्रमाण हैं।‘
डॉ। कार्ल सागन ने अपने प्राध्यापक मित्र जोसेफ स्कलोवस्की के साथ मिलकर एक विचारोत्तेजक शोधपूर्ण पुस्तक ‘इंटेलिजेंट लाइफ इन द यूनिवर्स’ पराग्रहियों पर लिखी है। इसमें दोनों ने अनेक तर्कों और साक्ष्यों द्वारा यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि जिस काल में मानव पूर्ण मानव (होमोसेपियेंस) बना था, उस कालखडं में या उससे कुछ समय पूर्व पृथ्वी पर अन्य किसी ग्रह से अत्यंत सभ्य और प्रबुद्ध प्रजाति के लोग आए थे। उन्होंने इस मत का आधार प्राचीन सुमेर तथा अक्कद (वर्तमान बेबीलॉन) की कला, संस्कृति और विज्ञान को बनाया है। जैविक विकास प्रक्रिया के अनुसार उन्हें सभ्य होने में कई हजार वर्ष लगने थे, पर वे जिस तत्परता से सभ्य हुए, वह हैरानी में डालने वाला तथ्य है। दरअसल ऐसा इसलिए संभव हुआ, क्योंकि सुमेर और अक्कद देशों के लोग अंतरिक्षवासियों के उत्तराधिकारी थे। बेबीलोन, असीरिया और फारसवासी असुर यानी सक्षम जाति के लोग थे। सुमेर के प्राचीन इतिहास में उल्लेख है कि प्राचीन सुमेरवासी ऐसे लोगों के वंशज हैं, जो मानव नहीं थे तथा अन्य ग्रहों से पृथ्वी पर आए थे। सुमेर की दंतकथाओं में भी यही उल्लेख है। इन कथाओं में ‘अपकल्लू’ नामक देवता का जिक्र बार-बार आया है। सुमेर की प्राचीन शैल-भित्तियों पर कीलाक्षर लिपि में ताम्र-पत्रों पर जो वर्णन है, उससे ज्ञात होता है कि इस देवता का अवतरण प्राचीन सुमेर के जन्म के कई हजार वर्ष पूर्व हुआ था।
अमेरिकी खगोलशास्त्री जेएन हाइन ‘अंतरिक्ष में जीवन’ विषय पर शोधरत हैं। उनका मानना है, ‘पृथ्वी के अतिरिक्त अन्य ग्रह भी हैं, जहां मनुष्य से भी अधिक उन्नत और सभ्य प्राणी निवास करते हैं।’ रूसी खगोलशास़्त्री वेलारिना जूरावलेवा ने कहा था कि ‘अपने अध्ययन से हम इस नतीजे पर पहुंचे हंै कि अंतरिक्ष के विभिन्न ग्रहों से अंतरिक्ष यात्री अपने अंतरिक्ष यानों द्वारा, प्राचीन काल से पृथ्वी पर आते रहे हैं। हमारी परिकल्पना है कि ये अंतरिक्ष यात्री पौराणिक कथाओं के दवता रहे होंगे? ये यात्री स्वान नामक तारा-समूह में स्थित एक सुदूर ग्रह से आए थे। आज भी इस ग्रह से पृथ्वी पर समझ में नहीं आने वाले रेडियो संदेश आते रहते हैं। स्वयं हमने ऐसे कुछ संदेश प्राप्त किए हैं।’
ब्रितानी वैज्ञानिक जॉन केज ने स्वीकारा है कि ‘‘ग्रहों से पृथ्वी पर आने वाले प्राणी, वास्तव में दूरस्थ ग्रहों के ऐसे संज्ञावान प्राणी हैं, जिनकी रचना ऋणात्मक विद्युत से हुई है। वे मानव निर्मित सजीव पदार्थों के किसी भी वर्ग में नहीं आते। जब कभी उनमें विद्युत ऊर्जा अधिक हो जाती है, तो वे अतिरिक्त ऊर्जा को विसर्जित करने पृथ्वी पर आ जाते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान वे नाना रंग, रूप और आकार धारण करते हैं।’ नासा में भारतीय वैज्ञानिक रहे डॉ। राम सिन्हा ने कहा था कि ‘अंतरिक्ष की खोज से संबंधित वैज्ञानिक अब यह मानते जा रहे हैं कि अतीत में सभ्य ग्रहों के समृद्धशाली व तकनीक से संपन्न लोग पृथ्वी पर आ चुके हैं। उन्होंने पृथ्वी और अन्य अविकसित ग्रहों से लगातार संपर्क बनाए रखने के लिए, अंतरिक्ष में कहीं अपना ठिकाना भी बना रखा है। पृथ्वी से ऐसा निकटतम ठिकाना चंद्रमा या मंगल के किसी सिरे पर हो सकता है। यह भी संभावना है कि उनका यह अड्डा बृहस्पति या शनि के किसी उपग्रह पर या हमारे सौरमंडल के कहीं बाहर स्थित हो।’

दूसरे ग्रहों पर जीवन की उम्मीद

इन तथ्यों से आभास होता है कि वैज्ञानिक इस तथ्य के प्रति आश्वस्त हैं कि दूसरे ग्रहों पर जीवन है और वहाँ प्राणी रहते हैं। हमारे पौराणिक देवगणों का सप्त लोकों में विचरण सामान्य बात थी। साफ है, अनंत अंतिरक्ष में असीम संभावनाएं हैं। वैसे भी जब पृथ्वी पर लगभग चार अरब साल पहले जीवन की उत्पत्ति हुई थी, तब का एक जीवाश्म वैज्ञानिकों को मिला है। इसे जीव की उत्पत्ति का कारक माना जा रहा है। इससे पहले पृथ्वी अत्याधिक गर्म पिंड के समान थी। बाद में वह ठंडी हुई और जीवन पनपने के लिए पाँच तत्व विकसित हुए। जो प्रक्रिया पृथ्वी पर चली, वही अन्य ग्रहों पर भी हुई। परिणमतः वे ग्रह भी जीवन के लायक बन गए और पराग्रही प्राणी रहने लग गए। अब प्रश्न उठता है कि ऐसे कौन से ग्रह हैं, जहां जीवन संभव है या पूर्व से ही जीव अस्तित्व में है। ये जो उम्मीदें व स्टीफन हॉकिंग जैसी शंकाएं पृथ्वीवासियों को हैं, वहीं पराग्रही- वासियों को भी हो सकती हैं ? गोया हो सकता है, जो उड़नतश्तरियाँ और एलियंस हम पृथ्वी पर आते देख रहे हैं, वे उसी उपक्रम का हिस्सा हों, जिस तरह से मंगल और चंद्रमा पर जीवन जीने के चिन्ह पृथ्वीवासी खोज रहे हैं। अब स्वाभाविक सवाल उठता है कि क्या पराग्रही इतने बुद्धिमान हैं, कि उन्होंने भी ऐसे उपकरण व यंत्र विकसित कर लिए हैं, जो वे पृथ्वी जैसे दूसरे ग्रहों पर भेजने के लिए सक्षम हो गए हैं। ऐसा है तो वे वास्तव में बुद्धिमान हैं, तभी वे ब्रह्माण्ड के रहस्यों को खंगालने में लगे हैं। दुनिया के खगोलविदों का मानना है कि हमारी आकाशगंगा में ही 1,00,00,00,00,000 (एक खरब) नक्षत्र हैं और इनमें से अधिकांश का आकार पृथ्वी के आकार के समान ही है। सारे ब्रह्माण्ड में ऩक्षत्रों की संख्या का अनुमान 10,00,00,00,00,00,00,00,000 (दस शंख) है। इतनी आकाशगंगाओं और ग्रहों की थाह अभी तक कोई नहीं ले पाया है।
इसके आगे जीव की उत्पत्ति के लिए यह भी जरूरी है कि जिस ग्रह पर जीवन है, उसका सूर्य के साथ विशेष संबंध हो। पृथ्वी के सौरमंडल में मौजूदा नौ ग्रहों में से केवल पृथ्वी ही ऐसा ग्रह है, जिसका सूर्य के साथ साम्य है। पृथ्वी के अलावा ऐसी दूसरी संभावना मंगल के साथ है। चूंकि पृथ्वी की आकाशगंगा में जब इतने असंख्य ग्रह हैं, तो ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि वहां किसी ग्रह पर जीवन हो ? यदि एक हजार में एक ही ऐसा ग्रह हो, जिसमें पृथ्वी के समान सभ्य जीवन हो तो भी कम से कम एक करोड़ ऐसे ग्रह पृथ्वी की आकाशगंगा में होने चाहिए, जिनमें वर्तमान पृथ्वी जैसी उन्नत सभ्यता और तकनीक की उम्मीद की जा सकती है। इस संभावना के आधार पर ही वैज्ञानिक यह मानकर चल रहे हैं की पराग्रही अर्थात वैदिक देवता और पृथ्वीवासी पुरातन काल में ग्रहों पर आवागमन करते रहे हैं।

एलियंस से संवाद की भाषा

अब वैज्ञानिकों के सामने प्रश्न है कि एलियंस से ऐसी कौन-सी भाषा या लिपि में संवाद किया जाए, जिसे वे समझ सकें और प्रतिउत्तर भी भेज सकें। चूंकि वैज्ञानिकों को अब तक यही अंदाजा है कि पराग्रही मानवों की सरंचना भी धरती के प्राणियों जैसी ही होगी। रूस में जिस एलियंस की लाश एक महिला के घर में मिली है, उसकी आकृति हुबहू मनुष्य जैसी ही है, लेकिन वह बौना है। उसकी ऊँचाई मात्र दो फीट है। हालांकि हमारे कुछ वैज्ञानिकों की धारणा है कि पराग्रही शायद इतने विकसित हो चुके हैं कि वे स्वयं खतरों की आशंका वाली अंतरिक्ष यात्रा पर नहीं निकलेंगे। बल्कि वहां के वैज्ञानिक और जीववैज्ञानिकों ने मिलकर अब तक एक ऐसे मानव की उप-प्रजाति विकसित कर ली होगी, जो दूसरे ग्रहों के जीवन-उपयोगी लक्षण समझने में सक्षम हों? जैसे कि हम रोबोट के जरिए कृत्रिम मानव और क्लोन के मार्फत हूबहू मानव विकसित करने की प्रक्रिया में लगे हैं।
 पराग्रहियों से संवाद संप्रेषण की कौनसी भाषा हो, जिसके माध्यम से वार्तालाप संभव हो ? पृथ्वी के वैज्ञानिकों ने इस दिशा में पहल करते हुए केप केनेडी से 1972 में पायनियर-10 अंतरिक्ष यान में एक धातु पट्टिका पर संदेश उकेर कर भेजा था। एलियंस के नाम लिखे इस संदेश में एक से दस तक की संख्याएं, पांच मूलभूत तत्वों की परमाणु संख्या, डीएनए कुडंली और पृथ्वी पर खड़े मनुष्य का रेखा-चित्र भेजे थे। यह अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष में ही भटक कर सौरमंडल की सीमा के पार कहीं चला गया। इसके उपरांत 1977 में वायेजर-1 तथा वायेजर-2 अंतरिक्ष यान छोड़े गए। इनमें अज्ञात ग्रहों के अज्ञात पराग्रहियों के लिए लंबे समय तक गूंजने वाले रिकार्डेड दृश्य व श्रव्य संदेश भेजे गए। इनमें पृथ्वीवासियों की कई प्रकार की आवाजें और प्राणियों, पहाड़ा़ें, नदियों और अन्य भौगोलिक स्थलों के छायाचित्र थे। इनमें भारत की एक भीड़ भरी सड़क, ताजमहल का चित्र और लोकगयिका  केसरबाई केलकर के गाए गीत, ‘राम तुम जात कहां हो,’ का अंश भी शामिल है। साफ है, आज दुनिया के तमाम देशों में पराग्रही जीवों का पता लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं। सौरमंडल से बाहर के यानी बाहिर्ग्रहों में जीवन की सबसे अधिक संभावना है। इन खोजों में लगे अभियानों के वैज्ञानिक बेहद आशावादी हैं, इसीलिए स्टीफन हॉकिंग के विपरीत यह धारणा बनी है कि एलियन पृथ्वी के लिए अशुभ नहीं, शुभ भी सिद्ध हो सकते हैं।
ज्यादातर खगोलविदों ने एलियंस से संवाद की भाषा के लिए गणितीय भाषा का प्रयोग सर्वोत्तम बताया है। इसीलिए बाइनरी अर्थात भारतीय अंक प्रणाली की संख्याओं के चित्र पायनियर-10 अंतरिक्ष यान में भेजे थे। अब आगे इस संवाद-संप्रेषण के लिए संस्कृत और उसे लिखे जाने की लिपि देवनागरी में संदेश भेजने की कोशिशें हो रही हैं। दरअसल भाषा वैज्ञानिक विलियम जोंस ने प्रमुख वैश्विक भाषाओं का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए ‘संस्कृत‘ को सबसे अधिक वैज्ञानिक भाषा माना है। रिक ब्रिग्स जैसे वैज्ञानिक ने भी सुझाव दिया था कि संगणक के लिए एक सामान्य भाषा विकसित करने की दृष्टि से संस्कृत सार्थक भाषा है। दरअसल मानवीय भाषाओं में संस्कृत ऐसी भाषा है, जिसके अक्षर अर्थपूर्ण हैं, इसलिए वे मनुष्य में संवेदना व चेतना का सृजन करते हैं।

एलियंस के रूप

पुराणों के अनुसार ब्रह्माण्ड में सात लोक हैं। इनमें देवता, सर्प, गंधर्व, रुद्र, मरुत, अप्सराएं, राक्षस और मनु के अलावा पितर, भूत, प्रेत भी रहते हैं। इस संदर्भ में डॉ. ब्रेसवेल की पराग्रहियों के बारे में कही बात दिलचस्प है, ‘पराग्रही पृथ्वी से अधिक सभ्य और उन्नत हैं, उनमें रहने वाले बौद्धिक प्राणियों की शरीर संरचना पृथ्वीवासियों से भिन्न हो सकती है। पृथ्वी पर जिस तरह से भिन्न-भिन्न आकार-प्रकारों वाले प्राणियों, जैसे हाथी, कंगारू, सिंह, व्हेल मछली, हंस, उल्लू, चूहे देखते हुए हमें कोई आश्चर्य नहीं होता, ठीक उसी तरह अंतरिक्षवासी भी भिन्न-भिन्न शक्ल-सूरत व रंग के हो सकते हैं।’ क्या डॉ। ब्रेसवेल का यह कथन सप्त लोकों में रहने वाले प्राणियों के उन्हीं विलक्षण रूपों की पुष्टि नहीं करता जो पुराणों में दर्ज हैं।
अंतरिक्ष में जिन भी प्राणियों के होने की उम्मीद वैज्ञानिकों को है, उनका मानना है कि पृथ्वी से इतर लोकों के निवासी पृथ्वीवासियों के ही समान उसी एक ऊर्जा से निर्मित बनी काया की छायाएँ हैं, इसी अनंत प्रकाश-पुँज की किरणें हैं। नाना रूप व गुणों के बावजूद वे एक ही हैं। दुनिया के लगभग सभी धर्मग्रंथों में ईश्वर अर्थात ‘ब्रह्म’ को उस मूल ऊर्जा का कारण माना गया है, जिससे प्राणियों का सृजन संभव हुआ है। इसी के मूल से देवता हंै, मानव हैं, राक्षस हंै और अन्य जीव-जगत है। भौतिकी के आलोक में मूल ऊर्जा अर्थात ब्रह्म को वैज्ञानिक दृष्टि से देखने पर यही सिद्ध होता है। देव-दानवों और जीव-जगतों के समस्त प्राणियों की शक्ति का यही रहस्य है और यही वैज्ञानिक स्वरूप है।

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