तकनीकी


स्मार्टसिटी और साइबर हमले


विजन कुमार पांडेय

एक तरफ तो भारत में स्मार्ट सिटी बनने वाली हैं तो दूसरी तरफ साइबर हमले के साये में है सारी दुनिया। नये षोध से पता चला है कि हर दस में से आठ इलेक्ट्रानिक उपकरण इस्तेमाल करने वालों की निजी जानकारी लीक हो सकती हैं। इसमें ई-मेल एड्रेस और यूजर नेम के अलावा, घर का पता, टेलीफोन नंबर, जन्म तिथि, क्रेडिट कार्ड नंबर और बीमा की जानकारी तक शामिल है। अधिकतर उपकरणों में लोगों ने 1234 जैसे आसान से पासवर्ड का इस्तेमाल किया है, जो हैकरों के लिए काम को और आसान बना देता है। ऐसा अनुमान है कि 2020 तक दुनिया भर में 26 अरब उपकरण इंटरनेट से जुड़े हुए होंगे। इससे साइबर हमले के खतरे और बढ़ जाएँगे। ऐसे में स्मार्ट सिटी के लिए तो खतरे हैं ही साथ ही आतंकी हमले भी और बढ़ जाएँगे। ई-कॉमर्स में भी ऐसे खतरे की संभावना बढ़ जाएगी। इसलिए स्मार्ट सिटी बनाते समय इन सब बातों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। केवल स्मार्टफोन और टेबलेट पीसी ही नहीं, इन दिनों टीवी, फ्रीज और यहां तक कि घर के ताले भी इंटरनेट से जुड़ने लगे हैं, अर्थात आपके आसपास मौजूद हर चीज आप पर साइबर हमला कर सकती है। इंटरनेट से जुड़े स्मार्ट घर कुछ ऐसे हो गए हैं कि अगर आपको काम पर पहुंच कर याद आए कि आप घर पर बत्ती बंद करना भूल गए हैं, तो आप दफ्तर में बैठे-बैठे ही बत्ती बुझा सकते हैं। यहां तक कि काम से निकलने से पहले ही घर का एसी या हीटर भी चला सकते हैं, ताकि जब तक आप घर पहुंचें, आपके कमरे का तापमान आपके मन मुताबिक हो। जहां एक तरफ यह सब जीवन को आसान बनाने और सुरक्षा बढ़ाने के लिए किया जा रहा है, वहीं यह सुरक्षा में सेंध भी लगा रहा है। एक नये शोध से पता चला है कि इंटरनेट से जुड़े 70 फीसदी उपकरण सुरक्षा के लिहाज से खतरनाक हैं। अधिकांश लोग अपने ईमेल, बैंक अकाउंट आदि के पासवर्ड एक जैसे ही रखते हैं। इस कारण इन्हें हैक करना आसान होता है। इंटरनेट ऑफ थिंग्स अनगिनत चीजों को आपस में जोड़ देता है। लेकिन हमले के खतरे को कई गुना बढ़ा भी देता है। एच पी की सिक्युरिटी शाखा ‘फॉर्टीफाई’ ने इन्हें ‘इंटरनेट ऑफ थिंग्स’ का नाम दिया है। इंटरनेट के जरिए इन उपकरणों के इस्तेमाल के लिए अपने इंटरनेट अकाउंट में लॉगइन करने की जरूरत होती है। यह शोध ऐसे समय आया है जब इंटरनेट सुरक्षा को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहस चल रही है। हाल के दिनों में टीवी, कारों और यहां तक कि सार्वजनिक टॉयलेट के हैक होने के मामले भी सामने आए हैं।
स्मार्ट सिटी का सपना जल्दी ही साकार होगा लेकिन इसके लिए हमें अपने में बदलाव लाना होगा। स्मार्ट सिटी यानी ऐसा षहर जो अपने नागरिकों की हर जरूरत को स्मार्टली पूरा करे। ऐसा षहर जो हर सुविधा संपन्न हो। किफायती के साथ-साथ बाधारहित भी हो। जहाँ प्रकृति के साथ विज्ञान के तालमेल का अनूठा संगम हो। ऐसा शहर जहां कचरे का नामो निशान न हो। एक ऑनलाइन क्लिक पर प्रशासन की हर जानकारी सामने हो। प्रशासनिक निर्णयों में जन-भागीदारी का अहम स्थान हो। पूरे संसार में इस समय स्मार्ट सिटी को बसाने की कवायद तेज हो गई है। कई देश अपने लोगों को ऐसे शहर की सेवाएं मुहैया करा रहे हैं। मोदी सरकार भी 100 ऐसे स्मार्ट सिटी बसाने के संकल्प पर आगे बढ़ रही है। इसके लिए शहरों का चयन हो रहा है। सरकार के दृढ़ निश्चय से लगता है वह दिन दूर नहीं जब भारत में भी स्मार्ट सिटी अस्तित्व में होंगे। अब सवाल यह उठता है कि क्या हम अपने आचार, विचार और व्यवहार में बदलाव लायेंगे। क्या हम भारतीय इन शहरों में जीवन लायक स्मार्ट हैं? कहीं भी कचरा बिखेर देना, असभ्यता करने से परहेज न करना और सौंदर्यीकरण वाली चीजों को उखाड़कर घर में इस्तेमाल करने जैसे व्यवहार को छोड़ेंगे? हड़ताल करने पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहंुचाने जैसे अपने कृत्यों से क्या हम स्मार्ट सिटी की अवधारणा को साकार कर पाएंगें? क्यों नहीं हम अभी जहां रह रहे हैं उसे ही स्मार्ट सिटी बनाने का उपक्रम करें। उसी हिसाब से अपने कार्य-व्यवहार में बदलाव लाएं। ऐसा करके कम से कम हम स्मार्ट सिटी में रहने के तौर-तरीकों से वाकिफ तो हो जाएंगे। इसके लिए हमें पहले से ही स्मार्ट बनने की प्रेक्टिस करनी होगी। यह आज का सबसे अहम मुद्दा है। हमें पूरे तौर तरीके को वैज्ञानिक साज समान के आधार पर ढालना होगा। स्मार्ट सिटी में जो अहम सुविधायें उपलब्ध होनी चाहिए या होती हैं उन पर हम निम्न बिन्दुओं पर विचार कर सकते हैं:

  • तकनीकी सूचनाओं की पहुंच में सुधार-शहर से जुड़ी किसी भी सेवा से संबंधित समस्त सूचनाएं, आंकड़े, तथ्य आदि सभी को सुलभ हो। किसी भी विभाग की कोई घोषणा, नियम और कानून-कायदों की जानकारी सभी लोगों तक पहुंचनी चाहिए। सभी सेवाएं वित्तीय रूप से टिकाऊ होनी चाहिए जिससे गुणवत्ता वाली सुविधाएं देने के दौरान धन बाधा न खड़ी हो।
  • स ऊर्जा की चिंता स्मार्ट सिटी के लिए अहम है। क्योंकि स्मार्ट सिटी साल भर चमचमाता रहेगा। यातायात प्रणाली, लाइटिंग, सौर ऊर्जा आदि सभी ऊर्जा की जरूरत वाली सुविधाओं में ऊर्जा इस्तेमाल का हीे इस्तेमाल किया जाता है।
  • सबसे पहले तो कचरे पर लगाम लगाना होगा। इसके लिए ऐसी व्यवस्था करनी होगी जिससे कचरा निस्तारण तुरंत हो। वर्षा जल भंडारण को बढ़ावा देना जरूरी होगा। कचरे को न्यूनतम करने और प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने में इससे अहम कामयाबी मिलेगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से हैं। लिहाजा स्वास्थ्य के लिए बड़ा जोखिम बने हुए हैं। स्वच्छ तकनीक से इस प्रवृति को पीछे धकेला जा सकता है।
  • इसका व्यापक इस्तेमाल जरूरी है। इसी से सूचनाओं का आदान प्रदान और तेज संचार संभव है। अधिकांश सेवाएं आइसीटी आश्रित होनी चाहिए। इससे यात्रा करने की जरूरत खत्म हो जाएगी। लोग घर बैठे सुविधाएं हासिल कर सकेगें। इससे सड़कों पर जाम, प्रदूषण, ऊर्जा इस्तेमाल सब कम हो जाएगा।
  • हर आदमी की स्मार्ट सिटी को स्मार्ट रखने की जिम्मेदारी होनी चाहिए। इसके लिए निजी क्षेत्रों की भागीदारी जरूरी है। किसी षहर को रहने योग्य बनाने और लोगों व कारोबार को आकर्षित करने के लिए बेहतर गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सुविधाएं अहम कारक होती हैं।
  • स्कूली और उच्च शिक्षा दोनों ही स्तरों के लिए षहर में उच्च गुणवत्ता वाली शैक्षिक सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए। सभी स्कूल एक मानक के आधार पर पढ़ाई करें। एक ही ढंग की सुविधायें हो। 3000 की आबादी पर एक नर्सरी स्कूल हो। 5000 हजार की आबादी पर एक प्राइमरी और एक लाख की आबादी पर एक इंटर कालेज हो। 50 हजार की आबादी पर एक निशक्त बच्चों के लिए स्कूल हो। 1ण्50 लाख आबादी पर एक डिग्री कालेज होना चाहिए। 10 लाख की आबादी पर एक इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, पैरा मेडिकल संस्थान और विश्वविद्यालय हो। 
  • बाढ़ के पानी के निकासी का पूरा नेटवर्क सड़क से जुड़ा हो। पूरे साल भर में जल जमाव की एक बार भी स्थिति न बने। पूरे बारिश के पानी की एक जगह भंडारण की व्यवस्था हो।
  • सभी के पास वाई-फाई कनेक्टिविटी की सुविधा हो। 100 एमबीपीएस इंटरनेट स्पीड हो। मोबाइल सहित सभी के पास टेलीफोन कनेक्शन हो।
  • टेलीमेडिसिन की व्यवस्था होनी चाहिए। आपात स्थिति में मदद 15 मिनट में हो। 50 हजार आबादी पर एक डायगोनेस्टिक केंद्र हो। कोई भी बीमार दवा के अभाव में न मरे। उसे तत्काल सारी स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हो जाएं। ऐसा तभी संभव होगा जब अस्पतालों की भरमार हो। वहां डाक्टर भी पूरी तरह उपलब्ध हों।

कैसे संभव होगी स्मार्ट सिटी

देश में स्मार्ट सिटी बनानी है। लेकिन यह कैसे संभव होगा? आज दुनिया के कई शहर प्रदूषित हो चुके हैं। प्रदूषित हवा के चलते कई शहरों में ऑक्सीजन बूथ लगने जा रहे हैं। अब डिब्बा बंद ऑक्सीजन भी मिला करेगी। पिछले कई दशकों से हमने पृथ्वी के परिवेश को ही बदल दिया है। सड़कांे पर गाड़ियों की भीड़ और उद्योगों की बाढ़ के कारण पूरा वातावरण प्रदूषित हो चुका है। दअसल उद्योग कंेद्रित विकास नीति ने सब कुछ उलट-पुलट कर रख दिया है। हमारी दिन प्रतिदिन बढ़ती आवश्यकताएं ही हमें गर्त में ले जा रही हैं। विडंबना यह है कि इसका हल भी हमने उद्योगों के ही माध्यम से ढूंढा है। जल संकट आया तो पानी के बोतल का व्यापार सामने आ गया। मिट्टी में पैदा हुई गड़बड़ियांे का विकल्प रासायनिक खाद के रूप में आ गया। अब स्मार्ट शहर बनाने की बात आई तो प्रदूषित वातावरण सामने आ गया। अच्छे स्वास्थ्य का सफाई से गहरा संबंध है। जिस तरह हम दिवाली में अपना घर साफ करते हैं। उसी तरह अपने देश को भी साफ रखें। हमारा देश सफाई के मामले में बहुत पीछे है। इसीलिए यहां लोग बीमार भी ज्यादा होते हैं। सफाई रहने पर पर्यावरण भी शुद्ध रहेगा और हम स्वस्थ भी रहेंगे। प्रधानमंत्री ने लक्ष्य निश्चित करते हुए कहा है कि 2019 में गांधी जी की 150 वीं जयंती तक सारा देश साफ-सुथरा हो जाए। लेकिन सफाई के दौरान जो कूड़े निकल रहे हैं वे कहां रखे जायें। उसे कहीं आसमान में नहीं फेंक दिया जाएगा। दरअसल सही अर्थों में सफाई तब होगी जब हम आगे गंदगी पैदा ही न करें। वातावरण को दूषित ही न करें। तभी भारत स्वच्छ और स्मार्ट होगा।
विदेशों में हमारी तरह सड़कों पर कोई कूड़ा नहीं फेंकता। जब हमारे यहां से कोई अमेरिका या यूरोपीय देशों में जाता है तो वहां की सफाई देखकर चकित रह जाता है। ऐसा हमारे यहां क्यों नहीं हो सकता। दरअसल हमारे देश में लोगों की आदत ही खराब हो गई है। गुटखा मुंह में डाला और रेपर कहीं भी फेंक दिया। जहाँं मन में आया पान खा कर थूक दिया। नमकीन खाया और रेपर रोड पर फेंक दिया। अपने घर का कूड़ा चुपके से दूसरे के घर के सामने खिसका दिया। ऐसा पश्चिमी देशों में नहीं होता। वहाँ तो अगर आप अपने हाथ के कूड़े को सड़क पर फेंक दें तो आप से पीछे चलने वाला उसे उठाकर कूड़ेदान में डाल देता है। आपके द्वारा फेके गए कूड़े उठाने से न तो उसका स्वाभिमान आहत होता है और न ही वह आपको बुरा-भला कहते हुए लड़ने लगता है। दरअसल यह हमारी सोच का फर्क है। सफाई तभी स्थाई रूप से रहेगी जब हम अपनी मानसिकता बदलेंगे। एक या दो दिन की सफाई से कुछ भी नहीं होने वाला। हमारे यहाँ तो नागरिकों की हालत यह है कि वे सारी जिम्मेदारी सरकार की समझते हैं। गंदगी हम करें और साफ करे सरकार। इस मानसिकता से हमें उबरना होगा।

लोगों को भी स्मार्ट बनना होगा

अगर सरकार देश में सौ स्मार्ट सिटी बनाना चाहती है तो इसके लिए स्मार्ट बनना होगा। भारत के षहर बेतरतीब तरीके से बसाये गये हैं। हर शहरों में अतिक्रमण है। रोड के किनारे दुकान लगा कर गरीब अपना पेट भरते हैं। बिना किसी योजना के मकान बनाये गये हैं। शहरों में गंदगी हर जगह पसरी नजर आती है। नाले कचड़ों से भरे पड़े हैं। ऐसे में स्मार्ट शहर का सपना सच होता नजर नहीं आता है। अंग्रेजों के जाने के बाद चंडीगढ़ जैसे कुछ शहर को छोड़ दें तो भारत में शहरों का नियोजित विकास नहीं हुआ। स्मार्ट सिटी में बिजली के ग्रिड से लेकर सीवर पाइप, सडकें, कारें और इमारतों की हर चीज एक नेटवर्क से जुड़ी होगीं। इमारतें अपने आप बिजली बंद करेगी। स्वचालित कारें खुद अपने लिए पार्किंग ढूंढेंगीं और यहां तक कि कूड़ादान भी स्मार्ट होगा। कहीं भी कूड़े को ऐसे फेंक नहीं पायेगें। हर काम आपको सफाई से करना होगा। इस तरह पहले हमें अपने में परिवर्तन लाना होगा। तभी स्मार्ट सिटी स्मार्ट रह पायेगी।
एक ऐसा शहर जहां सारी सुविधाएँ हों, वहां कौन नहीं रहना चाहेगा। प्रधानमंत्री की स्मार्ट सिटी बनाने की योजना बहुत अच्छी है। इसमें कोई शक नहीं है। शहर हमारे सुंदर हों यह सभी चाहते हैं। सारी सुविधाओं से पूर्ण, पर्यावरण की दृष्टि से उपयुक्त शहर बनने ही चाहिए। इसमें किसी को एतराज नहीं होना चाहिए। लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है जो दुखद है। आज हमारे देश में लाखों घर मिट्टी के हैं। उनमें शौचालय भी नहीं है। गांवों में ऐसे घरों की संख्या करीब 11 करोड़ 50 लाख हैं, जहां शौचालय नहीं है। इन घरों में शौचालय की सुविधा देने का खर्च करीब 25 से 26 खरब रूपये हैं। इसलिए पहले सभी घरों में शौचालय हो जाए फिर स्मार्ट सिटी बने तो ज्यादा अच्छा होगा। शहरों का विकास तो जरूरी है। लेकिन गांवों की ओर भी उतना ही ध्यान देने की जरूरत है। उसे भी साफ-सुथरा बनाना होगा। इससे गांवों से पलायन रुकेगा।

आसान नहीं होगा स्मार्ट सिटी बनाना

हालत इतने बिगड़ गये हैं कि अब साफ हवा भी नसीब नहीं होगी। तब क्या हाल होगा स्मार्ट सिटी का। अस्पतालों में ऑक्सीजन सिलिंडर बहुत पहले से ही चल रहे हैं। हरियाली हमसे बहुत पहले ही छिन गई है। इसकी झलक बस एयरपोर्ट या पार्कों में दिखाई देती है। अब अप्राकृतिक प्लास्टिक वृक्षों से हरियाली दिखाई देती है। प्रकृति के साथ हो रहे बुरी हरकतों का यह नतीजा है कि हिमालय भी हिल रहा है। वह भी आपदाओं का शिकार हो रहा है। जो पारिस्थितिकी के सबसे बड़े रक्षक हैं, वे ही प्रकृति की मार झेल रहे हैं। बात केवल हिमालयी राज्यों की नहीं है। यह पूरे देश का मामला है। पूरे देश को सरकार का स्मार्ट बनाने का प्लान है। यहां हमें यह भी ध्यान रखना होगा कि वर्तमान विकास का ढांचा आने वाले समय में आपदाओं को खुला निमंत्रण दे रहा है। ऐसे में स्मार्ट शहर का सपना कैसे साकार होगा? अगर हो भी गया तो उसे भी प्रकृति की मार झेलनी पड़ेगी। आजकल सभी को विकास की चिंता खाये जा रही है। लेकिन उस विकास को हम तभी भोग पाएंगे, जब प्रकृति को समझने की कोशिश करेगें। हम स्मार्ट सिटी के बिना तो जी लेगें। लेकिन स्वच्छ पर्यावरण के बिना न हम स्मार्ट रह पायेगें और न ही ऐसे शहरों का सपना पूरा हो पाएगा। भारतीय शहरों को स्मार्ट सीटी बनाना इतना आसान काम नहीं होगा। हमारे जितने भी पुराने षहर है सब अनियोजित हैं। उनकी सही मैंपिंग नहीं की गई है। इन शहरों की 80 फीसदी आबादी अनियोजित इलाकों में रहती है। इन इलाकों में लगातार आवाजाही लगी रहती है। ऐसे में आप काम की शुरूआत भी कैसे करेंगे। इससे आसान तो होगा कि नए शहर ही बसाए जायें, जहां हर चीज प्लानिंग से हो। आज शहर की एक बड़ी आबादी पक्के मकानों में रहती है। जबकि करीब इतनी ही आबादी सड़कांे और झुग्गी-झोपड़ियों में रहती है। सरकार को ऐसे षहर बनाने चाहिए, जहां लोगों के रहन-सहन में समानता हो। उसे यह भी ध्यान में रखना होगा कि 2030 तक 77 शहरों की आबादी दस लाख से अधिक हो जाएगी और 30 शहर 40 लाख की आबादी के साथ मेगा सिटी बन चुके होंगे। तो क्या सभी को स्मार्ट सिटी की सुविधा दे पाएँगे? नए स्मार्ट शहरों के बजाए पहले जरूरी है कि मौजूदा शहरों को ही स्मार्ट बनाया जाए। फिर बढ़ती आबादी को देखते हुए अलग स्मार्ट सिटी का निर्माण हो। सरकार ने देश में सौ स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा तो कर दी है लेकिन अपंग प्रशासन और रूढ़ नौकरशाही के सामने यह योजना कितनी सफल हो पाएगी, यह तो भविष्य ही बताएगा।  

स्मार्ट सिटी में ऑनलाइन शापिंग की महŸाा

देशों में अनेक स्मार्ट सिटी हैं। वहाँ आज सजे हुए परम्परागत बाजारों की ऑनलाइन शापिंग ने कड़ी टक्कर देनी शुरू कर दी है। परम्परागत दुकानों की तरह ही ऑनलाइन खुदरा व्यापारियों के पास हर समान उपलब्ध है। किताबों से शुरू हुआ यह सिलसिला कपड़ों, किराने के सामान से लेकर फर्नीचर, सौंदर्य प्रसाधन तक पहुंच गया है। यह लिस्ट हर दिन बढ़ती जा रही है। एक ऑनलाइन शापिंग साइट का दावा है कि उसके साथ 50 हजार निर्माता जुड़े हुए हैं। इस खरीदारी की दुनिया में घुसना आसान है क्योंकि आप अपने बैडरूम से दफ्तर या गाड़ी से कहीं से भी आर्डर दे सकते हैं और समान खुद व खुद आपके घर पहुंच जाएगा। कहीं जाने की भी झंझट नहीं। अगर किसी वजह से आपको खरीदा आइटम पसंद नहीं तो वह रिफंड भी हो सकता है। साथ ही रिप्लेस भी। हाल के फेस्टिव सीजन में रिटेल ऑनलाइन कंपनियों ने पिछले साल से करीब चार गुना अधिक का कारोबार किया है। जबकि परम्परागत दुकान और रिटेल स्टोर के कारोबार में गिरावट आई है। ट्रेडर्स का कारोबार 45 फीसदी कम रहा। ट्रेडर्स एसोसिएशन ने ई-कामर्स कंपनियों के लिए नियम और नियामक संस्था गठित करने की मांग की है। रिटेलर्स कंपनियां ऑनलाइन षापिंग का विकल्प ग्राहकों को देकर अपना कारोबारी स्तर लगभग बराबर रखने में सफल रही हैं। सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक आइटम की बिक्री में ही गिरावट दर्ज की गई है। यह कंपनियां वैसे भारी डिस्काउंट देकर और घाटा सहकर भी कारोबार कर रही है। ये कंपनियां भारी डिस्काउंट इसलिए दे रही हैं क्योंकि वे सीधा कंपनियों से थोक माल खरीदती हैं, इनको किसी इंन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत नहीं। ऐसे में देश के छः करोड़ ट्रेडर्स, 31 लाख करोड़ रूपए प्रति वर्ष का कारोबार और 30 करोड़ लोगों की रोजी-रोटी दांव पर आ गई है। रिटेलर्स की खुशकिस्मती यह है कि ई-कामर्स यानि ऑनलाइन शापिंग फिलहाल बड़े शहरों तक सीमित है। छोटे शहरों और कस्बों में इंटरनेट की सुविधा नहीं है पर आने वाले सालों मंे यह भी पूरी हो जाएगी। स्मार्ट सिटी बन जाने पर सभी काम नेट से जुड़ जाएँगे। ऐसे में इंटरनेट पर आतंकवादियों के हमले का भी डर बढ़ जाएगा। इसलिए स्मार्ट सिटी बनाने से पहले आतंकी हमलों से बचने के भी उपाय सोचने होंगे। तभी हम सुरक्षित रह आरम्भ पाएँगे। 


बड़ी बाग लंका मैदान (मजार के पास), गाजीपुर  उ.प्र.
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