तकनीकी


तकनीक : प्रभाव और दुष्प्रभाव

निशा राठौर

तकनीक ने हमारे जीवन को बहुत आसान कर दिया है। दुनिया भर के काम पलक झपकते संपन्न हो जाते हैं। हर कदम पर हम किसी न किसी रूप में तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं जिससे हमारा जीवन बहुत ही सरल और सुविधायुक्त हो गया है। लेकिन यही सरल और सुविधायुक्त जीवन मृत्यु के उतना ही करीब जा रहा है। पहले बच्चे अनेक प्रकार के खेल खेला करते थे जैसे कबड्डी, फुटबाल, क्रिकेट, लुका छिपी और कन्चे। लेकिन आज खेल के नाम पर सिर्फ मोबाइल का स्क्रीन नजर आता है। बच्चे मोबाइल या वीडियो गेम ज्यादा पसंद कर रहे हैं, उन्हें घंटों सोफे पर बैठकर कार्टून देखना अच्छा लगता है। भले ही रियल लाइफ में एक भी दोस्त ना हो, लेकिन फेसबुक और वाट्सअप पर घंटों चैट करते है और शायद यही कारण है कि एक अनुमान के अनुसार हर दस बच्चे में दूसरा बच्चा दृष्टि की समस्या से पीड़ित है। चश्मे की जरूरत औसतन चालीस वर्ष के बाद पड़ती है लेकिन आज छह-सात वर्ष के बच्चों को मोटे कांच वाला चश्मा पहनना पड़ रहा है। हर बच्चा सिर दर्द और बुखार होने की आषंका में रहता है। यह सब हमारी तकनीक का दुष्परिणाम है। जब हम देर तक मोबाइल पर गेम खेलते हैं, चैट करते हैं या घंटों टी.वी देखते हैं तो मोबाइल अथवा टी.वी. के स्क्रीन से निकलने वाला विकिरण हमारी देखने की क्षमता को बुरी तरह प्रभावित करता है। आजकल हेडफोन अथवा ईयर फोन से गाना सुनना युवा वर्ग के फैशन में शमिल हो गया है जिसका दुष्प्रभाव है कि वे सुनने की क्षमता खोते जा रहे हैं। एक वैज्ञानिक रिपोर्ट के अनुसार अगर आप एक से दो घंटे रोजना ईयरफोन का इस्तेमाल करते हैं तो आने वाले पाँच से दस सालों में आप पूर्ण रूप से अपनी श्रवण क्षमता खो देंगे। बहरेपन की समस्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। इसके अलावा आये दिन सड़क दुर्घटना होती रहती है और पाया जाता है कि अमुख व्यक्ति गाड़ी चलाते वक्त या रोड पार करते वक्त ईयर फोन से गाने सुन रहा था। यहां गलती एक इंसान करता है, भुगतना बाकी लोगों को भी पड़ता है जो पूर्णतः निर्दोष है। आज हमारी पृथ्वी पर विकिरणों का जाल बिछ गया है। कदम-कदम पर मोबाइल टॉवर दिखाई देते हैं। पैसे की लालच में लोग अपने छत या जमीन पर टॉवर लगवाते हैं लेकिन वे भूल जाते हैं कि वे ऐसा करके पूरे परिवार और आस-पड़ौस एवं आने वाली पीढ़ी को मौत के मुंह में ढकेल रहे हैं। अब तक तीन सौ से ज्यादा वैज्ञानिक अनुसंधान किये जा चुके हैं और रिपोर्ट के अनुसार मोबाइल टॉवर एवं मोबाइल से निकलने वाले विकिरण विभिन्न प्रकार के रोगों को जन्म देते हैं जैसे ब्रेन ट्यूमर, डीएनए का क्षतिग्रस्त होना, कैंसर, असमान कोशिका विभाजन इत्यादि।
इसके अलावा सिर-दर्द, चक्कर आना, आंखों में जलन जैसी समस्या मोबाइल से निकलने वाले विकिरणों के कारण होती है। जब हम घंटों कान से सटाकर मोबाइल से बात करते हैं तो उस समय सबसे ज्यादा विकिरण निकलता है और वह हमारे दिमाग की कोशिका को खराब करता है। हम सब मोबाइल के इतने शौकीन हो गये हैं कि बिना काम के मोबाइल के स्क्रीन पर देखते रहते हैं। अंगुली फेरते रहते हैं। आजकल स्क्रीन टच मोबाइल का दौर बढ़ता जा रहा है। आने वाले दिन में हम अंगूठे के कैंसर से पीड़ित होंगे। जब हम सोते हैं मोबाइल हमारे तकिये के पास होता है, जब हम बाहर जाते हैं मोबाइल को ऊपर के पॉकेट में रखते हैं। इससे निकलने वाली विकिरण हमारी हृदय और किडनी को बुरी तरह प्रभावित करता है। अर्थात जितना हम विकास कर रहे, कहीं उस से ज्यादा बर्बादी की ओर अग्रसर हो रहे हैं। जाने-अनजाने  मौत को न्यौता दे रहे हैं। विकास की दौड़ में हम इतने अंधे हो गये हैं कि आने वाली का भी ख्याल नहीं रख पा रहे हैं। खैर तकनीक से यह समस्या उत्पन्न हुई है, तकनीक ही कोई बचाने का रास्ता प्रदान करेगा। फिर भी हम कुछ गतिविधियों का प्रयोग करके काफी हद तक बच सकते हैं; जैसे सोतेे वक्त मोबाइल बंद कर दें, विकिरण को कम करने के लिए चिप लगवाये तथा मोबाइल या कम्प्यूटर का इस्तेमाल करते समय विकिरणरोधी चश्मे का इस्तेमाल करें तथा आवश्यकता से ज्यादा इन चीजों का इस्तेमाल ना करें।


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