तकनीकी


नेट न्यूट्रलिटी

संगीता चतुर्वेदी

आज आप बिजली का बिल इस आधार पर पे नहीं करते हैं कि आप किस ब्रांड के उपकरण प्रयोग कर रहे हैं, उसी तरह से इंटरनेट ऐक्सेस के लिए किस ब्रांड अर्थात किसकी वेबसाइट या एप्प का प्रयोग कर रहे हैं, इस आधार पर इंटरनेट के लिए पे क्यों करें? या जिस तरह से आपकी फोन कंपनियां यह निर्णय नहीं ले सकती हैं कि आप किसे कॉल करें और कॉल पर क्या कहें, उसी तरह आपके IPS को भी आपके द्वारा ऑनलाइन देखे जाने वाले या पोस्ट किए जाने वाले किसी भी कंटेंट से मतलब नहीं होना चाहिए। अतः नेट न्यूट्रलिटी का अर्थ उपरोक्त उदाहरणों को ध्यान में रखते हुए कुछ इस प्रकार से समझाया जा सकता है-
स    नेट न्यूट्रलिटी का अर्थ है एक ऐसा इंटरनेट जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता प्रदान करता है और उसकी सुरक्षा भी करता है अर्थात इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स को हमें ओपन नेटवकर्स प्रदान करने चाहिए और इन्हें किसी भी ऐप्लीकेशन या कंटेंट जोइन नेटवकर्स पर शामिल होते हैं, के विरूद्ध रुकावट या विभेद नहीं करना चाहिए।
स    नेट न्यूट्रलिटी का अर्थ है कि इंटरनेट पर आने वाले संपूर्ण ट्रेफिक को इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर्स द्वारा समान रूप से मान्यता दी जाए। अर्थात इसके डाटा की सभी बिट्स समान है और इनमें कंटेंट, साइट या यूजर के आधार पर अंतर करना अनुचित है।
स    नेट न्यूट्रलिटी इंटरनेट के लिए दिशा निर्देश सिद्धान्त है जिसमें ऑनलाइन पर स्वतंत्र रूप से संचार करने के हमारे अधिकार को संरक्षित किया गया है। यह एक ओपन इंटरनेट की तरह है।
उपरोक्त तीनों बिंदुओं से आप नेट न्यूट्रलिटी के बारे में समझ चुके होंगे।
नेट न्यूट्रलिटी की बहस पिछले दिसम्बर 2014 से शुरू हो चुकी है, जब एयरटेल जैसी भारत की सबसे बड़ी मोबाइल टेलीकॉम कंपनी ने अपने यूजर्स से स्काईप (जो कि एक लोकप्रिय इंटरनेट सेवा है जिससे वॉएस और वीडियो कम्यूनिकेशन किया जा सकता है) और वाइबर जैसे ऐप्स के लिए अतिरिक्त शुल्क लेना शुरू किया। ये एप्स टेलीकॉम प्रोवाइडर्स की वॉएस मैसेजिंग सेवाओं के साथ प्रतिद्वंदी हैं और ये सेवाएं सस्ती हैं। इसके बारे में काफी हल्ला मचा और एयरटेल को अपना निर्णय रोकना पड़ा।
इसी बीच ट्राई अर्थात टेलीकॉम रेगुलेटरी अर्थारिटी ऑफ इंडिया ने नेट न्यूट्रलिटी की जांच प्रारंभ की। विकसित देशों में यह बहस काफी वर्षों से चल रही है। जबसे स्काईप और इसी तरह की अन्य सेवाओं और कई एप्स जैसे व्हाट्सअप, यूट्यूब, फेसबुक और ट्विटर की शुरूआत हुई, तबसे टेलीकॉम कंपनियों की आकर्षक वॉएस और टेक्स्ट सेवाओं पर दवाब बढ़ा और इसके विरोध में ये अन्य इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर कंपनियों के साथ एक ऐसी मुहिम में शामिल हुए जिसमें या तो किसी ओवर द टॉप सेवा में एक्सेस को ब्लॉक किया जाता है अथवा ग्राहकों द्वारा फास्ट एक्सेस को सक्षम बनाने के लिए डील की जाती है।
आइए आगे बढ़ने से पहले ऊपर प्रयुक्त नए शब्द ओवर द टॉप के बारे में जान लेते हैं।

  • ओवर द टॉप का अर्थ है इंटरनेट पर सार्वजनिक रूप से वीडियो, टेलीविजन और अन्य सेवाएं प्रदान करना ना कि किसी सर्विस प्रोवाइडर के निजी एवं स्वतंत्र रूप से मैनेज किए जाने वाले IPTV द्वारा।
  • ओवर द टॉप एक एप्प या सर्विस है जो इंटरनेट पर प्रोडक्ट प्रदान करती है और ट्रेडीशनल डिस्ट्रीब्यूशन को बाईपास करती है। ऐसी सर्विस की लागत ट्रडीशनल डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम की अपेक्षा कम होती है।

अब प्रश्न ये आता है कि बड़ी-बड़ी टेलीकॉम कंपनियों ने जब बड़ी-बड़ी लागत पर अपने ब्रॉडबैंड विकसित किए हैं और इनमें से भी मोबाइल टेलीकॉम कंपनियों ने नीलामी पर स्पेक्ट्रम खरीदने के लिए करोड़ों रूपये खर्च किए हैं, तो क्या वे अपने नेटवर्क को जैसा चाहें वैसे ऑपरेट करने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं? ताकि उन्हें अधिकतम लाभ मिल सके।
लेकिन इसका उत्तर है ‘नहीं’। क्योंकि ओवर द टॉप पूर्ण रूप से अनियमित है जबकि टेलीकोज और ISPS नियमित प्रदाता है। इसका अर्थ यह है कि ये ग्राहकों से फास्ट स्पीड के लिए अधिक चार्ज करने के लिए मान्यता प्राप्त है। जैसे 1 एमबीपीएस के लिए जितना चार्ज करते हैं, उससे अधिक 2 एमबीपीएस ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी के लिए चार्ज करना। लेेकिन इन्हें इस बात की मान्यता बिल्कुल नहीं मिलनी चाहिए कि ये कुछ निर्दिष्ट वेब साइट्स की एक्सेसिंग स्पीड को या तो बढ़ाएं अथवा दबाएं।
नेट न्यूट्रलिटी से प्रत्येक इंटरनेट यूजर को स्टार्टअप कंपनियों को और नए वेंचर्स को फायदा होगा। इसलिए आज नेट न्यूट्रलिटी के समर्थकों की संख्या भी बढ़ रही है। इसके समर्थकों के अनुसार नेट न्यूट्रलिटी लोगों, छोटी कंपनियों स्टार्टअप कंपनियों, एडवोकेसी ग्रुप्स आदि को, बड़े ब्रांड या कॉर्पोरेट्स के साथ मुकाबला करने के लिए एक खुला मैदान प्रदान करती है। यही कारण है कि आज गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियां इतनी तेजी से इतनी  ऊँचाई तक पहुंची हैं। नेट न्यूट्रलिटी हमें ओपन इंटरनेट प्रदान करती है जिसकी जरूरत स्टार्टअप्स और एंटरप्रेन्योर्स को जॉब ग्रोथ, कांपिटीशन और इनोवेशन के लिए होती है और इसके द्वारा नए एंटरप्रेन्योर्स नए कस्टमर्स तक पहुंचते हैं तथा अपने प्रोडक्ट्स, एप्लीकेशन्स या सर्विसेज उन्हें दिखा सकते हैं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी नेट न्यूट्रलिटी पर काफी निर्भर होती है। टेलकोज और प्ैच्ै द्वारा कुछ वेबसाइट्स को अधिक वरीयता देकर ऊपर उठाना अपने आप में यह बताने के लिए काफी है कि अन्य में एक्सेस कम हो गया है। इसका लॉजिकल निष्कर्ष यह निकलता है कि अन्य वेबसाइट्स या तो पूर्ण रूप से ब्लॉक हो जाती है अथवा इनके ऐक्सेस में बाधा उत्पन्न होती है। इन सबसे इंटरनेट का समतावादी स्वभाव नष्ट होता है।
आज नेट न्यूट्रलिटी की सबसे अग्रणी और विवादस्पद रण भूमि यूएस है। लिटिगेशन्स द्वारा इसे रोकने के कई असफल प्रयासों के बावजूद यहां की रेगुलेटरी एजेंसी एफसीसी अर्था फेडेरल कम्यूनिकेशन्स कमीशन ने अंततः फरवरी 2015 में कुछ नियम निर्धारित किए, जिनके द्वारा वायर्ड और वायरलैस दोनों तरह की ब्रॉडबैंड कंपनियों को स्पीड बढ़ाने, स्पीड घटाने या किसी भी लीगल ऑनलाइन कंटेंट या सर्विस को ब्लॉक करने की अनुमति नहीं दी गई है।  लेकिन आज यूएस में भी नेट न्यूट्रलिटी से जुड़े ऐसे कई पक्ष बाकी रह गए हैं जिन्हें पूरी तरह से दूर करना अभी भी एक चुनौती है। अतः यूएस के साथ-साथ भारत में भी इसके लिए बहस छिड़ चुकी है। अतः देखते हैं कि परिणाम क्या आते हैं?


s17.chaturvedi@gmail.com