तकनीकी


इसरो का आदित्य

शशांक द्विवेदी

मंगल अभियान और चंद्रयान 1 की सफ़लता के बाद इसरो के वैज्ञानिको अब सन मिशन की तैयारी कर रहें है। सूर्य कॅरोना का अध्ययन एवं धरती पर इलेक्ट्रॉनिक संचार में व्यवधान पैदा करने वाली सौर-लपटों की जानकारी हासिल करने के लिए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) आदित्य-1 उपग्रह छोड़ेगा। इसका प्रक्षेपण वर्ष 2012-13 में होना था मगर अब इसरो ने इसका नया प्रक्षेपण कार्यक्रम तैयार किया है। इसरो अध्यक्ष ए.एस. किरण कुमार ने कहा है कि अब आदित्य-1 का प्रक्षेपण वर्ष 2017 के बाद (2017-20 के दौरान) किया जाएगा।
आदित्य-1 उपग्रह सोलर ‘कॅरोनोग्राफ’ यन्त्र की मदद से सूर्य के सबसे भारी भाग का अध्ययन करेगा। इससे कॉस्मिक किरणों, सौर आंधी, और विकिरण के अध्ययन में मदद मिलेगी। अभी तक वैज्ञानिक सूर्य के कॅरोना का अध्यन केवल सूर्यग्रहण के समय में ही कर पाते थे। इस मिशन की मदद से सौर वालाओं और सौर हवाओं के अध्ययन में जानकारी मिलेगी कि ये किस तरह से धरती पर इलेक्ट्रिक प्रणालियों और संचार नेटवर्क पर असर डालती है। इससे सूर्य के कॅरोना से धरती के भू चुम्बकीय क्षेत्र में होने वाले बदलावों के बारे में घटनाओं को समझा जा सकेगा। इस सोलर मिशन की मदद से तीव्र और मानव निर्मित उपग्रहों और अन्तरिक्षयानों को बचाने के उपायों के बारे में पता लगाया जा सकेगा। इस उपग्रह का वजन 200 किग्रा होगा। ये उपग्रह सूर्य कॅरोना का अध्ययन कृत्रिम ग्रहण द्वारा करेगा। इसका अध्ययन काल 10 वर्ष रहेगा। ये नासा द्वारा सन 1995 में प्रक्षेपित ‘सोहो’ के बाद सूर्य के अध्ययन में सबसे उन्नत उपग्रह होगा
आदित्य-1 के नए प्रक्षेपण कार्यक्रम से वैज्ञानिकों को ‘सौर मैक्सिमा’ के अध्ययन का मौका मिल जाएगा। ‘सौर मैक्सिमा’ एक ऐसी खगोलीय घटना है जो 11 वर्ष बाद घटित होती है। पिछली बार सौर मैक्सिमा 2012 में हुई थी। इस दौरान सूर्य की सतह से असामान्य सौर लपटें उठती हैं और उनका धरती के मौसम पर व्यापक असर होता है। इसे देखते हुए इसरो ने न सिर्फ नया प्रक्षेपण कार्यक्रम तय किया बल्कि आदित्य-1 की प्रक्षेपण योजना में थोड़ा बदलाव भी किया है। इसरो अध्यक्ष के अनुसार अब आदित्य-1 को हेलो (सूर्य का प्रभामंडल) आर्बिट में एल-1 लग्रांज बिंदु के आसपास स्थापित किया जाएगा। इस कक्षा में आदित्य-1 सूर्य पर लगातार नजर रख सकेगा और सूर्य ग्रहण के समय भी वह उपग्रह से ओझल नहीं होगा।
सूर्य के केंद्र से पृथ्वी के केंद्र तक एक सरल रेखा खींचने पर जहां सूर्य और पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल बराबर होते हैं, वह लग्रांज बिंदु कहलाता है। सूर्य का गुरूत्वाकर्षण बल पृथ्वी की तुलना में काफी अधिक है इसलिए अगर कोई वस्तु इस रेखा के बीचोंबीच रखी जाए तो वह सूर्य के गुरूत्वाकर्षण से उसमें समा जाएगी। लग्रांज बिंदु पर सूर्य और पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण बल समान रूप से लगने से दोनों का प्रभाव बराबर हो जाता है। इस स्थिति में वस्तु को ना तो सूर्य अपनी ओर खींच पाएगा, ना पृथ्वी अपनी ओर खींच सकेगी और वस्तु अधर में लटकी रहेगी। लग्रांज बिंदु को एल-1, एल-2, एल-3, एल-4 और एल-5 से निरूपित किया जाता है। इसरो धरती से 800 किलोमीटर ऊपर एल-1 लग्रांज बिंदु के आसपास आदित्य-1 को स्थापित करना चाहता है। इसरो की नई योजना के मुताबिक 200 किलोग्राम वजनी आदित्य-1 को पीएसएलवी (एक्सएल) से प्रक्षेपित किया जाएगा।
आदित्य-1 देश का पहला सौर कॅरोनोग्राफ उपग्रह होगा। यह उपग्रह सौर कॅरोना के अत्यधिक गर्म होने, सौर हवाओं की गति बढ़ने तथा कॅरोनल मास इंजेक्शंस (सीएमईएस) से जुड़ी भौतिक प्रक्रियाओं को समझने में मदद करेगा। यह उपग्रह सौर लपटों के कारण धरती के मौसम पर पड़ने वाले प्रभावों और इलेक्ट्रॉनिक संचार में पड़ने वाली बाधाओं का भी अध्ययन करेगा। आदित्य-1 से प्राप्त आंकड़ों और अध्ययनों से इसरो भविष्य में सौर लपटों से अपने उपग्रहों की रक्षा कर सकेगा। इसरो ने इसके लिए कुछ उपकरणों का चयन भी किया है जो आदित्य-1 के पे-लोड होंगे। इनमें ‘विजिबल एमिशन लाइन कॅरोनोग्राफ (वीईएलसी)’ सोलर अल्ट्रवॉयलेट इमेजिंग टेलिस्कोप, प्लाजमा एनालाइजर पैकेज, आदित्य सोलर विंड एक्सपेरिमेंट, सोलर एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर और हाई एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर शामिल हैं।
भारत सरकार के वैज्ञानिक सलाहकार समिति के सदस्य एवं इसरो के पूर्व चेयरमैन प्रो. यूआर राव ने कहा कि सूर्य के बारे में अभी हमारी जानकारियां आधी अधूरी है।सूर्य के बारे में बहुत कुछ जानना बाकी है। अभी सोलर कोर्निया के बारे में वैज्ञानिक ज्यादा नहीं जानते है, ज्वालाएं कब आएंगी इसका हमें आइडिया भी नहीं है। इस मिशन से सुरन के बारें में काफी जानकारी मिल जायेगी।
आदित्य सूर्य के कोरोना की गर्मी और उससे होने वाले उत्सर्जन के रहस्य को भी सुलझाने मंे मदत करेगा। सूर्य कॅरोना का टेंपरेचर लाखों डिग्री है। पृथ्वी से कॅरोना सिर्फ पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान ही दिखाई देता है। यह भारतीय वैज्ञानिकों की इस तरह की पहली कोशिश होगी। कॅरोना के अध्ययन से सोलर एक्टिविटी कंडीशंस के बारे में अहम जानकारियां मिल सकेंगी। इसरो के इस सन मिशन से सूर्य की सतह और सूर्य के आसपास हो रही गतिविधियों और सौर विस्फोटकों के बारे में जान सकेंगे। अब तक सिर्फ अमेरिका, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और जापान ने सूरज के अध्ययन की लिए स्पेसक्रॉफ्ट भेजे हैं। ‘आदित्य’ के प्रक्षेपण के बाद निसंदेह अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की दखल और बढ़ जाएगी। सूर्य मिशन बहुत महत्वपूर्ण है और वैष्विक अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अपनी तरह का एक विशिष्ट मिशन है इसलिए इसरो के वैज्ञानिकों को इस मिशन से भारी उम्मीदें हैं। इस मिशन की सफ़लता इसरों के लिए संभावनाओं के नए दरवाजे खोल देगी। फिलहाल इसरो पूरी दुनियाँ में अपनी सफलता से सबको आश्चर्य चकित कर रहा है और इसरो के एक के बाद एक सफलता देखते हुए लगता है कि जल्द ही भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में सबसे ऊंचाई पर पहुँच जाएगा।

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