विशेष


महिलाओं में सशक्तिकरण हेतु विज्ञान संचार सर्वाधिक उपयुक्त

संजय वर्मा

‘‘महिलाओं में सशक्तिकरण को बढ़ावा देने में विज्ञान एक महत्वपूर्ण संचार है। यह जीवन की प्रगति का प्रमुख विषय है एवं महिलाओं को विज्ञान संचार के माध्यम से सक्रिय हो आगे आना चाहिए।’’ यह कथन इंडियन साइंस कांग्रेस-2015 (मुम्बई) के उद्घाटन समारोह के दौरान मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. मंजु शर्मा (पूर्व सचिव-बायो टेक्नॉलॉजी, भारत सरकार) ने व्यक्त किये। मुख्य अतिथि एवं अन्य विशिष्ट अतिथियों का स्वागत डॉ. रंजन कुमार वेलुकर (कुलपति) ने किया। 4 जनवरी से शुरू हुए उक्त महिला विज्ञान कांग्रेस में अध्यक्ष प्रो.एस.बी.निमसे ने महिला विज्ञान विकास की भूमिकाओं पर प्रकाश डाला वहीं डॉ. नरेश चन्द्र (प्रति कुलपति) ने आगामी क्रिया-कलापों एवं आगामी रूप-रेखा पर विस्तार से चर्चा की। उद्घाटन समारोह में आभार ज्ञापन डॉ. माधुरी पेजावर संयोजिका महिला विज्ञान कांग्रेस ने किया।
4 से 6 जनवरी तक आयोजित इस महिला विज्ञान कांग्रेस का मुख्य विषय ‘महिलाओं के लिए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी’ पहले से निर्धारित था एवं उप-विषयों में मानव विकास में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, महिला एवं शिक्षा, पर्यावरण संरक्षण, आर्थिक महिला उद्यमिता, चिकित्सा-स्वास्थ्य में सामाजिक कारक, विज्ञान (लिंग विभेद) एवं महिला एवं पौधे व जीव-जन्तु विज्ञान पर सात तकनीकि सत्रों पर महिला प्रतिभागियों ने अपने-अपने शोधपत्रों के माध्यम से अपने विचार रखें। प्रत्येक तकनीकि सत्रों की विशिष्ट प्रतिभाओं द्वारा अध्यक्षता की गई एवं औसतन हर सत्र में 6-7 महिला प्रतिनिधियों ने अपने विचार पावर पाइंट प्रजेन्टेंशन या पोस्टर माध्यमों से किया।
प्रथम सत्र में ‘मानव विकास में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी’ विषय पर डॉ. रोहिणी गोडवोले, डॉ.अर्चना भाटिया, डॉ. शशि बाला के अतिरिक्त अन्य वक्ताओं ने अपनी बात रखी वहीं द्वितीय सत्र में ‘महिला एवं शिक्षा’ उप-विषय पर ज्योति शर्मा, डॉ. अमिता दास, डॉ.अमुजा, डॉ. नीरजा श्रीवास्तव, डॉ.अमित सक्सेना, तृतीय सत्र में पर्यावरण विषय पर डॉ. पूर्वा सालवेकर, डॉ.सीमा छावड़ा तथा चतुर्थ सत्र में ‘आर्थिक उद्यमिता एवं महिलाएं’ विषय पर डॉ. वैजयंती पण्डित, डॉ.सी.एस.पानसे, डॉ.टी.पी.घुले, सुनीता जयसवाल की प्रस्तुति प्रभावशाली रही वहीं इसी क्रम में पांचवे तकनीकी सत्र में ‘चिकित्सा-स्वास्थ्य के सामाजिक कारक’ विषय पर प्रो. शीला मिश्रा, अर्चना वर्मा, डॉ. वेला, दुर्गेश नन्दिनी वर्मा, डॉ.रेखा श्रीवास्तव, डॉ. अर्चना एवं डॉ.शशि प्रभू तो वहीं छठवें सत्र - ‘विज्ञान एवं लिंग विभेद’ विषय पर डॉ.श्रद्धा, वैशाली सोमानी, सविता वरूह व सातवे सत्र ‘महिला एवं वनस्पति/जीव-जन्तु विज्ञान’ विषय पर डॉ. मालविका, गायत्री, डॉ. एम.एस.मुलगेनकर एवं डॉ.अमिता सक्सेना की प्रस्तुति दमदार रही। कई प्रतिभागियों ने पोस्टर के माध्यम से अपनी प्रस्तुति का संचार किया।
समापन समारोह की मुख्य अतिथि प्रो.गीता वाली (पूर्व अध्यक्ष-महिला विज्ञान कांग्रेस) रही। उन्होंने महिलाओं को दकियानूसी जंजीरों से मुक्त करने की हिम्मत के साथ विज्ञान विकास की ओर ध्यान देने की बात कही। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. माधुरी (संयोजिका) ने किया।

बाल विज्ञान कांग्रेस

102वीं इंडियन साइंस कांग्रेस के दौरान बाल विज्ञान कांग्रेस का भी आयोजन किया गया। मुम्बई विद्यापीठ कैम्पस में आयोजित कालीना कैम्पस में चिल्ड्रेन साइंस कांग्रेस का उद्घाटन 4 जनवरी को किया गया। इसमें भारत को स्वच्छ रखने एवं गंदगी को दूर कर स्वस्थ्य भारत का निर्माण करने पर बल दिया गया। इस मौके पर देश-विदेश से आये गणमान्य लोगों ने स्वच्छता-अभियान की तारीफ की गई। इस दौरान श्री सुघेंदु कुलकर्णी ने रि-डियूज, रि-यूज एवं रि-साइक्लिंग जैसे तीन मूलमंत्र दिए। उन्होंने बताया कि यूरोपीय देशों में 50 प्रतिशत रि-साइक्लिंग का काम होता है। स्वीडन में 95 प्रतिशत रि-साइक्लिंग की सुविधा है। इस वजह से यहां सफाई के प्रति लोग जागरुक दिखते हैं और कचरे का निपटारा भी हो जाता है।
गुड गर्वनेंस के लिए स्वच्छ भारत का होना आवश्यक है, इसके लिए झाडू एवं सफाई यंत्रों का होना भी आवश्यक है ताकि समय रहते कचरा उठाया जा सके और इसका रि-साइक्लिंग भी हो जाए। इस पहल से जहां गांवों की सूरत बदलेगी वहीं भारत की सूरत भी बदल जायेगी। इस मौके पर मुख्य अतिथि पूर्व राष्ट्रपति श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कई प्रतिभाशाली बच्चों को भी पुरस्कृत किया। बाल विज्ञान कांग्रेस में नोबेल पुरस्कार विजेता श्री कैलाश सत्यार्थी ने बाल मजदूरी की सामाजिक समस्या, बाल मजदूरी एवं बच्चों की तस्करी रोकने के लिए समाज को भी आगे आने की बात कही।
राजीव खेर ने स्वच्छ भारत के निर्माण को आवश्यक बताया। उन्होंने बताया कि खुले शौच करने के बजाय बॉयो-टायलेट का उपयोग करना चाहिए। वर्तमान में 17 बॉयो टाइलेट्स ही महाराष्ट्र में है, जो काफी कम है। सरकार को इस दिशा में पहल करना चाहिए। स्कूलों के लिए कम्यूनिटी टॉयलेट होना चाहिए। सेनिटेशन एवं टॉयलेट्स को आवश्यक बताते हुए इसे ग्रामीण भागों में बच्चों के ड्राप आउट होने की परम्परा से देखा जाए। उन्होंने बताया कि टाइलेट्स की समस्या के बारे में करीब 7600 विद्यार्थियों ने उन्हें खत लिखा है। 
4 से 5 जनवरी तक आयोजित इस बाल विज्ञान कांग्रेस में उ.प्र. बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, दिल्ली सहित लगभग सभी प्रदेशों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों के अग्रणी लगभग 200 प्रतिभागियों ने अपने मॉडलों, प्रयोगों अन्य संचार माध्यमों की सराहनीय प्रस्तुति कर दर्शकों से रू-ब-रू किये। उक्त कांग्रेस में महिलाओं की सशक्तिकरण एवं बाल विकास योजनाओं पर आये सभी विशिष्ट अतिथियों ने बल दिया ओर लगभग 4 हजार लोगों ने इसमें शिरकत की। मगर दूसरी तरफ 102वे इंडियन साइंस कांग्रेस के मुम्बई विद्यापीठ परिसर के मुख्य पण्डाल एवं अन्य आकर्षक कार्यक्रमों से दूरी रहने एवं विश्वविद्यालय कैम्पस के बाहर होने के कारण चिल्ड्रेन साइंस कांग्रेस के बाल प्रतिभागियों को संचार करने कम दर्शक या श्रोता ही आ सके जिसके कारण उक्त कार्यक्रम एवं ‘प्राइड ऑफ इंडिया’ जैसे कार्यक्रम थोड़े फीके हो गये। बहरहाल, बाल प्रोत्साहन को दृष्टिगत करते हुए यह एक पुनः सराहनीय प्रयास कहा जा सकता है।


बाल मजदूरी एवं बच्चों की तस्करी रोकने के लिए समाज को भी सामने आना होगा। साथ ही यह भी सोचना होगा कि इस काम में विज्ञान एवं तकनीक की मदद कैसे ली जा सकती है और यह सुविधाएं किस तरह से काम कर सकती हैै। घर चलाने के लिए बच्चों द्वारा की जा रही मजदूरी के लिए भी समाज ही जिम्मेदार है। बाल मजदूरी एवं मानव तस्करी रोकने की जिम्मेदारी मात्र सरकार की नहीं है बल्कि हम सबकी है। हम लोग भी उतने ही जिम्मेदार है जितनी सरकार।
अगर लोग सतर्क हो जाए तो इस समस्या पर काफी हद तक लगाम लग सकती है। विज्ञान का सबसे बड़ा इस्तेमाल विनाश के लिए किया जाता रहा है और डिजिटल संपर्क की वजह से मानवीय सम्पर्क प्रभावित हो रहा है। ऐसे में बाल मजदूरी जैसी सामाजिक बुराई को जड़ से खत्म करने के लिए हम सबको मिलकर कार्य करना होगा। सतर्क रहना होगा।
बाल मजदूरी में आज 17 करोड़ बच्चे प्रभावित हैैं यानि इतने बच्चे बाल मजदूर हैं। वही वयस्क  बेरोजगार मजदूरी की संख्या 20 करोड़ है। ऐसे में इसमें सुधार के लिए अगर बच्चों की जगह बड़ों को रोजगार दिया जाए तो बाल मजदूरी को कम किया जा सकता है। हर घंटे 13 बच्चों की चोरी होती है, जिसमें से 40 प्रतिशत बच्चों का पता नहीं चल पाता। वहीं 6 करोड़ बच्चे कभी स्कूल नहीं गये, जो चिंतनीय है। सरकार को निवेश कर ऐसे प्रभावित बच्चों के विकास के लिए काम करना चाहिए, तभी देश तरक्की कर सकता है।

(कैलाश सत्यार्थी के साक्षात्कार का अंश)

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