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दिल की सेहत से जुड़ा है कोलेस्टेरॉल

डॉ.कृष्ण कुमार मिश्र

कोलेस्टेरॉल हमारे खानपान का जरूरी हिस्सा है। कोलेस्टेरॉल को दिल की सेहत से जोड़कर देखा जाता है। ये दिल की बीमारियों की एक बड़ी वजह होते हैं। चूंकि सवाल दिल से जुड़ा है इसलिए लोग कोलेस्टेरॉल को लेकर प्रायः बड़े संजीदे होते हैं। आम तौर पर ऐसी मान्यता है कि आहार में कोलेस्टेरॉल की मात्रा कम से कम होनी चाहिए। कोलेस्टेरॉल मोम जैसा एक चिपचिपा लिपिड होता है। यह मानव शरीर की लगभग समस्त कोशिकाओं में पाया जाता है। यह हॉर्मोन निर्माण, पाचन-क्रिया, तंत्रिका-तंत्र तथा विटामिन ‘डी’ के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शहरी शिक्षित वर्ग में तो कोलेस्टेरॉल को लेकर इतनी चिंता रहती है कि वे इससे एकदम से परहेज करना चाहते हैं। जब कि सच यह है कि हमारे खानपान में मौजूद कोलेस्टेरॉल हानिकारक नहीं होता है। हाँ, ट्रांस वसा सेहत के लिए जरूर नुकसानदेह होती है। तेल को बार-बार गरम करने, या फिर बहुत ज्यादा गरम करने से ये निर्मित हो जाती हैं। वनस्पति घी में ट्रांस वसा बहुतायत से पाए जाती हैं। व्यक्ति के शरीर में वसा की मात्रा जानने के लिए रक्त में उपस्थित कोलेस्टेरॉल तथा ट्राइग्लिसराइड का स्तर जाँच के जरिये पता किया जाता है। इनकी जाँच से यह अनुमान लगाया जाता है कि व्यक्ति की धमनियों में कोलेस्ट्राल जमा होने और रक्त प्रवाह अवरुद्ध होने की कितनी सम्भावना है। इससे हृदय संबन्धी बीमारियां होने के अंदेशे का पता चलता है।

क्या होता है कोलेस्टेरॉल?

कोलेस्टेरॉल एक कार्बनिक यौगिक है। यह स्टेरॉयड कुल का यौगिक है। कोलेस्टेरॉल शुद्ध अवस्था में सफेद, क्रिस्टलीय, गन्धहीन तथा स्वादहीन होता है। कोलेस्टेरॉल को ‘स्टेरॉल’ के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यह स्टेरॉयड तथा ऐल्कोहॉल से मिलकर बनता है। कोलेस्टेरॉल मानव जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक है। यह प्रारम्भिक पदार्थ अथवा मध्यवर्ती यौगिक है जिसके द्वारा स्टेरॉयड हार्मोन्स, विटामिन ‘डी’ तथा पित्त अम्लों का संश्लेषण होता है। कोलेस्टेरॉल का संश्लेषण यकृत तथा अन्य अंगों द्वारा होता है तथा इसका परिसंचरण रक्तप्रवाह के साथ लिपोप्रोटीन वाहकों द्वारा होता है।
    लिपोप्रोटीन संघटनात्मक तौर पर लिपिड तथा प्रोटीन से मिलकर बनता है। लिपोप्रोटीन का बाह्य आवरण प्रोटीन का तथा अन्तः भाग लिपिड का होता है। इसमें प्रयुक्त प्रोटीन को ‘ऐपोलिपोप्रोटीन’ कहते हैं। ऐपोलिपोप्रोटीनों का वितरण विभिन्न लिपोप्रोटीनों में अलग-अलग होता है। काइलोमाइक्रॉन सबसे बड़ा लिपोप्रोटीन होता है जिसका व्यास 75.600 नैनोमीटर तक होता है। इसमें प्रोटीन तथा लिपिड का अनुपात कम होता है इसीलिए इनका घनत्व भी न्यूनतम होता है। इनका संश्लेषण आँतों की अवशोषण कोशिकाओं में होता है तथा इन कोशिकाओं द्वारा ये लसीका-तंत्र में स्रावित होते हैं।
कोलेस्टेरॉल की श्रोणियाँ
कोलेस्टेरॉल को उनके गुणों के आधार पर मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में बांटा जाता है-

  • हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन अर्थात गुड कोलेस्टेरॉल
  • लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन अर्थात बैड कोलेस्टेरॉल
  • वेरी लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन अथवा वेरी बैड कोलेस्टेरॉल

    वेरी लो-डेंसिटी लिपोप्रोटीन (वेरी बैड कोलेस्टेरॉल) हमारे हृदय की धमनियों में जम जाते हैं तथा अवरोध उत्पन्न करते हैं। इससे रक्तसंचार बाधित होता है तथा अक्सर यह हार्ट अटैक का कारण बनता है। लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन (बैड कोलेस्टेरॉल) भी खतरनाक हो सकते हैं। बेशक ये धमनियों को अवरुद्ध भले न करें लेकिन दिल की सेहत के लिए बुरे माने जाते हैं। हॉँ, हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन दिल के लिए अच्छे माने जाते हैं। इनकी उचित मात्रा हृदय संबंधी बीमारियों की संभावना को कम करती है। इसलिए स्वस्थ हृदय के लिए उपरोक्त कोलेस्टेरॉल एक नियत अनुपात में हो तो अच्छा माना जाता है। व्यक्ति के शरीर में वसा की मात्रा जानने के लिए रक्त में उपस्थित कोलेस्टेरॉल तथा ट्राइग्लिसराइड का स्तर जाँच के जरिये पता किया जाता है।

हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन अथवा गुड कोलेस्टेरॉल

हाई डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एचडीएल) कोलेस्टेरॉल को स्वास्थ्य की दृष्टि से अच्छा माना जाता है। इसका घनत्व 1.063-1.210 तक होता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा 40% से 55% तक होती है। इसका निर्माण यकृत में होता है। यह ऊतकों तथा धमनियों में उपस्थित अतिरिक्त कोलेस्टेरॉल को वापस यकृत में ले जाता है जहाँ वह पित्त अम्लों के रूप में परिवर्तित होकर उत्सर्जित हो जाते हैं। एचडीएल कोलेस्टेरॉल की मात्रा का अधिक होना एक अच्छा संकेत है क्योंकि इसे हृदय के स्वास्थ्य का द्योतक माना जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, ‘रक्त में एचडीएल कोलेस्टेरॉल का स्तर 60 मिलीग्राम/डेसीलीटर या उससे अधिक होना चाहिए।’ एचडीएल कोलेस्टेरॉल का स्तर 40 मिलीग्राम/डेसीलीटर से कम होना स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह हो सकता है। मछली का तेल, सोयाबीन उत्पाद एवं हरी पत्तीदार सब्जि़यां, अलसी के बीज आदि को एचडीएल कोलेस्टेरॉल का प्रमुख स्रोत माना जाता है। सुबह की सैर, व्यायाम, योग आदि से भी शरीर में एचडीएल की मात्रा ठीक रखने में मदद मिलती है। धूम्रपान कम करके या पूर्णतः बंद करके भी एचडीएल को सुधारा जा सकता है। वज़न कम करना भी अच्छे कोलेस्टेरॉल को बढ़ाने का अच्छा तरीका है।

लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन अथवा बैड कोलेस्टेरॉल

लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एलडीएल) कोलेस्टेरॉल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इसका घनत्व 1.019-1.063 ग्राम प्रति लीटर होता है तथा इसमें प्रोटीन की मात्रा 20% होती है। इसका भी उत्पादन यकृत में होता है। यह लिपिड या वसा को विभिन्न ऊतकों, मांसपेशियों तथा हृदय तक रूधिर धमनियों के माध्यम से पहुँचाता है। विशेषज्ञों के अनुसार शरीर में एलडीएल की मात्रा 100 मिलीग्राम/डेसीलीटर से कम होनी चाहिए। इसकी मात्रा 160 मिलीग्राम/डेसीलीटर से अधिक होना स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक नुकसानदायक हो सकता है। एलडीएल की मात्रा बढ़ने पर यह धमनियों तथा शिराओं की दीवारों पर परतों के रूप में एकत्रित होने लगता है, जिसके कारण इनसे होने वाले रक्तप्रवाह में बाधा उत्पन्न होती है और हार्ट अटैक तथा स्ट्रोक का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। एलडीएल बढ़ने का प्रमुख कारण हमारी खराब जीवन-शैली है।

वेरी लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन (टस्क्स्) अथवा वेरी बैड कोलेस्टेरॉल

वेरी लो डेंसिटी लिपोप्रोटीन (वीएलडीएल) कोलेस्टेरॉल को स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक माना जाता है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, इसका घनत्व अत्यधिक निम्न लगभग 0.950-1.006 होता है। इसमें प्रोटीन की मात्रा लगभग 7 प्रतिशत तक होती है। इसका भी उत्पादन यकृत द्वारा होता है तथा यह काइलोमाइक्रॉन की तरह आँत की अवशोषण कोशिकाओं द्वारा स्रावित होता है। इसका भी उद्देश्य कोलेस्टेरॉल, कोलेस्टेरॉल एस्टर तथा ट्राई ग्लिसराइड को विभिन्न परिधीय ऊतकों तक पहुँचाना होता है। यह धमनियों तथा शिराओं में एकत्र होकर रक्त प्रवाह को बाधित करता है तथा प्रायः हृदय सम्बन्धी बीमारियों का कारण बनता है।
    रक्त में कोलेस्टेरॉल का स्तर अत्यधिक बढ़ने पर यह रुधिर-धमनियों में परतों के रूप में एकत्र होने लगता है। इससे धमनियां सँकरी पड़ने लगती हैं तथा सामान्य रक्त प्रवाह में बाधा पैदा होती है। हृदय संपूर्ण शरीर को रक्त संचार करता है। साथ ही साथ हृदय को काम करने के लिए काफी ऊर्जा की जरूरत होती है। खुद हृदय को रक्त की आपूर्ति करने वाली धमनियों को कोरोनरी धमनियां कहा जाता है। अक्सर कोलेस्टेरॉल का स्तर ज्यादा होने पर कोरोनरी धमनी में अवरोध उत्पन्न होता है। जिससे दिल को पर्याप्त रक्तसंचार नहीं हो पाता। इसके चलते हृदयाघात तथा हृदयावरोध (हार्ट अटैक तथा हार्ट स्ट्रोक) का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। ऐसा माना जाता है कि कोलेस्टेरॉल युक्त भोज्य पदार्थों (घी, पनीर, मक्खन, रेड मीट, क्रीम आदि) के सेवन से हृदय सम्बन्धित बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। इसलिए प्रतिदिन इसका 300 मिलीग्राम से अधिक सेवन नहीं करना चाहिए। पश्चिमी देशों तथा अमेरिकियों की तुलना में हिन्दुस्तानियों में हृदय की धमनी सँकरी होती है। इससे एक औसत भारतीय में हृदय रोग का खतरा ज्यादा होता है। एक औसत जापानी की तुलना में भी एक आम हिन्दुस्तानी में हृदय रोग होने की संभावना ज्यादा पायी गयी है। इन वजहों से भारतीयों को अपने खानपान तथा जीवनशैली के प्रति कहीं ज्यादा सजग रहने की सलाह दी जाती है।  
     अमेरिका में हाल ही में भोज्य पदार्थों के सेवन से सम्बन्धी दिए गये दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि भोज्य पदार्थों से मिलने वाले कोलेस्टेरॉल तथा रक्त में उपस्थित कोलेस्टेरॉल के बीच आम तौर पर कोई सम्बन्ध नहीं होता है। इसलिए जो कोलेस्टेरॉल हम भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं उससे स्वास्थ्य सम्बन्धी विशेष खतरा नहीं है। हाँ, हमें ट्रांस वसा युक्त भोज्य पदार्थों (फास्ट फूड, बेकरी उत्पाद, बर्गर, पिज्जा, समोसा, कचौरी आदि) के सेवन से बचना चाहिए क्योंकि ये स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक होते हैं। इस विषय की महत्ता का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि ‘कोलेस्टेरॉल उपापचय के नियमन’ से सम्बन्धित उत्कृष्ट अनुसंधान के लिए वैज्ञानिक जोसेफ लियोनार्ड गोल्डस्टीन तथा माइकल स्टुआर्ट ब्राउन को सन् 1985 में आयुर्विज्ञान/शरीरक्रिया विज्ञान के ‘नोबेल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
चिकित्सा विशेषज्ञों के एक बड़े वर्ग का मानना है कि विगत कुछ एक दशकों में अनेक कम्पनियों द्वारा अपने निहित स्वार्थ के लिए कोलेस्टेरॉल सम्बन्धित बहुत-सी भ्रान्तियाँ फैलाई गयी हैं। पश्चिम के डॉक्टरों, शोधकर्ताओं और दवा कंपनियों ने मिलकर, कोलेस्टेरॉल कम करने की दवाएं बेच कर करोडों अरबों डॉलर कमाए। यह कमाई प्रायः भारत जैसे विकासशील देशों से की गयी। पैथलैबों में भी कोलेस्टेरॉल जांच का धंधा काफी दिनों से फल-फूल रहा है। हाल ही में अमेरिकी सरकार द्वारा जारी स्वास्थ्य सम्बन्धी दिशा-निर्देशों के अनुसार कोलेस्टेरॉल स्वास्थ्य के लिए प्रायः नुकसानदेह नहीं है। निर्देशानुसार अच्छे स्वास्थ्य के लिए आहार में कोलेस्टेरॉल को उचित मात्रा में ग्रहण करना आवश्यक है। इससे वसायुक्त भोजन का पाचन सरलता से होता है। तंत्रिका-तंत्र की कार्यप्रणाली तथा स्टेरॉयड हार्मोन्स के निर्माण में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
सामान्य परिस्थितियों में यकृत शरीर में कोलेस्टेरॉल का संतुलन बनाए रखता है। लेकिन कभी-कभी यह संतुलन बिगड़ भी जाता है। इसके पीछे अनेक कारण हैं, जिनमें अधिक मात्रा में वसायुक्त भोजन का सेवन, शरीर के वजन में अत्यधिक वृद्धि, खानपान में लापरवाही तथा नियमित व्यायाम का अभाव प्रमुख है। अनेक लोगों में आनुवांशिक कारणों से भी कोलेस्टेरॉल वृद्धि की समस्या पायी जाती है। अकसर देखा गया है कि अगर किसी परिवार में कोलेस्टेरॉल ज्यादा होने की केस हिस्ट्री है तो इस बात की संभावना रहती है कि उनकी संततियों में कोलेस्टेरॉल ज्यादा हो। कुछ लोगों के शरीर में कोलेस्टेरॉल उम्र के साथ बढ़ जाता है। शरीर में कोलेस्टेरॉल की मात्रा का परीक्षण लिपिड प्रोफाइल परीक्षण के द्वारा किया जाता है। सामान्य लिपिड प्रोफाइल परीक्षण में कोलेस्टेरॉल, एचडीएल, एलडीएल तथा ट्राईग्लिसराइड की जांच की जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार, “स्वस्थ व्यक्ति में रक्त कोलेस्टेरॉल का स्तर 150 से 200 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर के बीच होना चाहिए।” रक्त कोलेस्टेरॉल के 200 से 239 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर तक के चिरस्थायी स्तर को अच्छा नहीं माना जाता है। रक्त कोलेस्टेरॉल का स्तर 240 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर से अधिक होने पर सेहत के लिए नुकसानदेह माना जाता है। लेकिन अगर रक्त कोलेस्टेरॉल का स्तर बढ़ा हुआ मिले तो घबराने तथा चिंतित होने की जरूरत नहीं है। बल्कि इसे नियंत्रित करने के उपाय करने चाहिए।

कोलेस्टेरॉल के स्तर को नियंत्रण में रखने के लिए निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए।    

  • संतुलित एवं पौष्टिक आहार का सेवन करना चाहिए जिनमें फलों तथा हरी पत्तेदार सब्जियों तथा अंकुरित अनाज का उपयोग प्रमुखता से करना चाहिए।
  • फास्ट फूड (जैसे पिज्जा, बर्गर, कुकीज, पेटीज आदि) तथा अत्यधिक ट्रांसवसायुक्त वनस्पति तेलों से निर्मित वस्तुओं (समोसे, पकौड़े, छोले, कचौरी आदि) से परहेज करना चाहिए।
  • शुद्ध दूध, दही, घी तथा पनीर आदि उत्पादों का खूब सेवन करना चाहिए, तथा मिलावटी दुग्धोत्पादों के सेवन से बचना चाहिए।
  • सोयाबीन, राइसब्रान, सरसों, जैतून, कुसुम तथा तिल के तेल से निर्मित भोज्य पदार्थों का सेवन करना चाहिए। वनस्पति तेलों का उपयोग एक से अधिक बार नहीं करना चाहिए क्योंकि इसे बार-बार गर्म करने से इसमें ट्रांसवसा का निर्माण होता है जो सेहत के लिए बहुत हानिकारक होते हैं।
  • दूध से निर्मित चाय की बजाय अगर हरी चाय अथवा काली चाय का प्रयोग करें तो बेहतर होगा। इससे शरीर में कोलेस्टेरॉल का स्तर नियंत्रित रखने में मदद मिलती है।
  • खानपान में दालों तथा अनाजों का उपयोग करना चाहिए। यह शरीर में कोलेस्टेरॉल के नियंत्रण में मददगार होता है।
  • रिफाइन्ड कार्बोहाइड्रेट जैसे- सफेद चीनी, सफेद मैदा तथा सफेद चावल का उपयोग कम से कम करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि ये वसा से कहीं ज्यादा नुकसानदायक होते हैं। इनकी जगह गुड़, खाँड़सारी, ब्राउन राइस तथा चोंकरयुक्त मैदे का प्रयोग ज्यादा उचित होगा।
  • धूम्रपान तथा शराब के सेवन से परहेज करना चाहिए।
  • व्यक्ति को नियमित रूप से व्यायाम तथा योगासन करना चाहिए।
  • शरीर का वजन नियंत्रण में रखना चाहिए।

भोजन में पाई जाने वाली वसा में अधिकांश रूप से ट्राइग्लिसराइड्स, कोलेस्ट्रॉल, और फॉस्फोलिपिड होते हैं। मनुष्य और दूसरे स्तनधारियों के आहार में कुछ वसा का समावेश होना आवश्यक है जैसे कि ऐल्फा लिनोलेनिक एसिड (ओमेगा-3 फैटी एसिड) और लिनोलेइक अम्ल (ओमेगा-6 फैटी एसिड)। चूंकि विटामिन (ए, डी, ई, और के) और कैरोटिनायड्स वसा में घुलनशील होते हैं। अतः इनके अवशोषण के लिए आहार में वसा का सेवन करना जरूरी है। ये दोनों वसीय अम्ल 18-कार्बन वाले बहुअसंतृप्त वसीय अम्ल हैं जिनमें कार्बन संख्या और द्विआंबध की रचना में भिन्नता है।
अकसर देखा जाता है कि कई लोग अकारण कोलेस्टेरॉल फोबिया से ग्रस्त जान पड़ते हैं। वे कोलेस्टेरॉल घटाने के लिए विभिन्न प्रकार की दवाइओं का सेवन करते हैं। इससे उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इन दवाओं का यकृत पर दुष्प्रभाव पड़ता है जिससे यकृत सम्बन्धी बीमारियों का खतरा उत्पन्न हो जाता है। कोलेस्टेरॉल का नाम सुनते ही लोगों के अन्दर हृदय सम्बन्धित बीमारियों का भय उत्पन्न हो जाता है। लेकिन हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कोलेस्टेरॉल वृद्धि से हृदय सम्बन्धित बीमारियों का जोखिम जरूर बढ़ जाता है। लेकिन हर प्रकार की हृदय सम्बन्धी बीमारियों के लिए कोलेस्टेरॉल ही जिम्मेदार हो, यह कतई जरूरी नहीं है। धमनियों की कोशिकाओं की क्रियाशीलता को बनाए रखने के लिए कोलेस्टेरॉल जरूरी होता है तथा विभिन्न प्रकार के हार्मोन्स निर्माण में भी इसकी बड़ी अहम भूमिका होती है। पाचन-क्रिया तथा विटामिन ‘डी’ के निर्माण में भी कोलेस्टेरॉल की अहम भूमिका होती है। अतः कोलेस्टेरॉलयुक्त भोज्य पदार्थों का उपयोग कभी भी पूर्णतया बन्द नहीं करना चाहिए। अगर संयमित जीवनशैली अपनायी जाए तथा खानपान पर ध्यान रखा जाए तो कोलेस्टेरॉल को सरलता से नियंत्रण में रखा जा सकता है। नियमित व्यायाम, योगसान एवं प्राणायाम से रक्त कोलेस्टेरॉल को नियंत्रित रखने में मदद मिलती है। अतः इस वैज्ञानिक विमर्श के निष्कर्ष के तौर पर कहा जा सकता है कि संयमित आहार-विहार तथा दिनचर्या अपनाकर कोलेस्टेरॉल को नियंत्रित रखा जा सकता है तथा दिल की सेहत को ठीक रखा जा सकता है।

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