विज्ञान


इस माह के वैज्ञानिक

आइंस्टीन ने बदला भौतिकी का चेहरा

मानव मस्तिष्क अक्षय ऊर्जा का भंडार है। ऐसा माना जाता है कि एक आम आदमी अपने मस्तिष्क की एक प्रतिशत क्षमता भी अपने कामों में व्यय नहीं कर पाता और ऐसा भी कहा जाता है कि महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने अठारह प्रतिशत क्षमता (कुछ लोग तेरह प्रतिशत मानते हैं) अपने कामों में लगाई। इस अठारह प्रतिशत में उन्होंने विज्ञान के कई महत्वपूर्ण नियमों को प्रतिपादित किया जिन्हें आधुनिक भौतिकी की नींव कहा जाता है।
आइंस्टीन अगर इस प्रतिशत को बढ़ाते तो विश्व की प्रगति और भी अधिक अवश्यम्भावी थी। आइंस्टीन ने जो किया उससे विज्ञान में नए युग का सूत्रपात हुआय लेकिन आइंस्टीन अपने कामों का श्रेय लेने में संकोच करते थे। उन्हीं के शब्दों में, ‘‘मैंने अधिकांश कार्य अपनी प्रकृति के अनुसार ही किए हैं, पर उनके कारण मुझे जितना प्यार और सम्मान मिला है उससे मुझे उलझन होती है।’’
इस स्वीकारोक्ति के बाद भी आइंस्टीन के महत्व को कम करके देखा नहीं जा सकता। विश्व-विज्ञान में उनके चमकदार नियम और सूत्र हमेशा दैदीप्यमान रहे हैं। इन सूत्रों में -सापेक्षता का सिद्धांत और द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण म्त्रउब2, सैद्धांतिक भौतिकी, प्रकाश विद्युत उत्सर्जन की खोज, सापेक्षता ब्रह्मांड, कोशिकीय गति, कांतिक उपच्छाया, सांख्यिक मैकेनिक्स की समस्याएँ, अणुओं का ब्राउनियम गति, अणुओं की उत्परिवर्तन संभाव्यता, एक अणु वाले गैस का क्वांटम सिद्धांत, कम विकिरण वाले प्रकाश के ऊष्मीय गुण, विकिरण के सिद्धांत, एकीकृत क्षेत्र सिद्धांत और भौतिकी का ज्यामितीकरण आदि हैं। इन नियमों और शोध के जरिये उन्होंने भौतिकी का चेहरा बदल कर रख दिया। पुराने मूल्य ध्वस्त हुए और नए स्थापित। इस अवदान के कारण उन्हें आधुनिक भौतिकी का पिता कहा जाता है। उन्होंने पचास से अधिक शोध और पृथक पुस्तकें लिखीं। अलग-अलग सर्वेक्षण में उन्हें शताब्दी-पुरुष, सार्वकालिक महान वैज्ञानिक, शब्द बुद्धिमान का पर्याय आदि अलंकरणों से नवाजा गया है।
अलबर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च 1879 में जर्मनी के उल्म नामक कस्बे में हुआ। माँ पौलिन और पिता हर्मन आइंस्टीन यहूदी थे। वे साधारण परिवार से थे और नास्तिक थे। पेशे से इंजीनियर और सेल्समैन। एक तरह से वे यायावरी प्रवृत्ति के थे और कहीं टिककर नहीं रहते थे। आरंभिक क्रम में हर्मन और उसके छोटे भाई जैकब आइंस्टीन उल्म शहर छोड़कर म्यूनिख चले आए। यहीं पर अल्बर्ट आइंस्टीन की प्राथमिक शिक्षा हुई। उन्हें कैथोलिक प्राइमरी स्कूल में दाखिला मिला। पिता और चाचा ने म्समाजतवजमबीदपेबीम ंिइतपा रण्म्पदेजमपद - ब्पम नामक कंपनी खोली जो विद्युत संयंत्र और वर्कशाप के रूप में कार्य करती थी। इसी कंपनी ने म्यूनिख के अक्टोबरफेस्ट मेले में पहली बार रोशनी की व्यवस्था की थी। बावजूद इसके उन्हें व्यवसायिक रूप में अधिक सफलता कभी नहीं मिली। बाद में यह परिवार मिलान चला गया।
आरंभिक शिक्षा के दौरान ही अलबर्ट आइंस्टीन ने वायलिन-सारंगी बजाना सीखा। उन्हें संगीत में गहरी रुचि जागी। इस दौर को लेकर अलबर्ट आइंस्टीन के बारे में दो तरह की बातें प्रचलित हैं-एक तो यह कि वे खेल-कूद में रुचि नहीं लेते थे और पढ़ाई में कमजोर थे। दूसरी यह कि वे परीक्षा में अच्छी श्रेणी में उत्तीर्ण होते थे। ये दो परस्पर विरोधी धारणाएं थीं जो समय के साथ-साथ बदलती रहीं। अगर कहीं कुछ नहीं बदला तो अलबर्ट का अंतर्मुखी होना। उनके भौतिकी  प्राध्यापक एच.एफ.वेबर ने उन्हें आरंभिक दौर में कहा था, ‘‘तुम बहुत तेज हो आइंस्टीन, बहुत तेज, लेकिन तुम्हारे साथ एक दिक्कत है कि तुम स्वयं को कुछ नहीं कहने देते।’’ जाने कितने वर्ष यह वाक्य आइंस्टीन ने अपने भीतर गुना। उसके साथ रहे। फिर जब उन्होंने अपनी बात कही तो ऐसा कोई दूसरा सामने खड़ा न हुआ जो उनसे सहमत न हुआ हो।
आइंस्टीन 1888 में न्यूइटपोल्ड जिमनैजियम में दाखिल हुए तब वे किशोरवय थे। यहाँ यूनानी और लैटिन जैसी शास्त्रीय भाषाएँ पढ़ाने पर अधिक ज़ोर था। आइंस्टीन ने गणित तथा लैटिन भाषा की पढ़ाई में अच्छी सफलता अर्जित की किन्तु यहाँ एक विशेष तरह के अनुशासन के अनुकूल वे ढल नहीं पाए। अक्टूबर 1895 में वे एइड्जेनोसि के टेक्निस्के होचस्क्युले (द फेडेरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी) की प्रवेश परीक्षा में बैठे किन्तु सफल न हो सके। यह बात उन्हें काफी समय तक सालती रही। उन्होंने जमकर परिश्रम किया और शीघ्र ही नेशनल पॉलीटेक्नीक में प्रवेश पा लिया। पढ़ाई तथा वायलिन वादन साथ-साथ चलता रहा और 1900 में उन्होंने स्नातक उपाधि प्राप्त कर ली। 1905 में चार लेख प्रकाशित हुए जिससे भौतिकी के स्वरूप में आमूल-चूल परिवर्तन आया।
उनका पहला लेख तरल पदार्थ में स्थित छोटे कणों में ताप के कारण गति के संबंध में था। दूसरा लेख प्रकाश के उत्पादन और गति के संबंध में था। इस लेख में उन्होंने फोटोन थ्योरी पर कहा - न्यूटन ने सदियों पूर्व जो सिद्धांत पतिपादित किए थे वे बाद में हुए प्रयोगों के परिणामों से मेल नहीं खाते। आगे उन्होंने कहा कि प्रकाश का स्रोत चाहे जैसा भी हो, देखने वाला कहीं भी खड़ा हो या किसी भी दिशा में चल रहा हो, प्रकाश की गति सभी ओर एक जैसी ही होगी। तीसरा लेख स्टैटिस्टिकल मैकेनिक्स के बारे में था। और चौथे लेख में उन्होंने गणित की सहायता से पदार्थ और ऊर्जा में संबंध स्थापित किया। उन्होंने कहा कि पदार्थ दरअसल एक सोई हुई ऊर्जा है जिसे वापस ऊर्जा में भी परिवर्तित किया जा सकता है।
इन सूत्रों के आधार पर आइंस्टीन ने पहला, निश्चित आकार के अणुओं और परमाणुओं के अस्तित्व का पहला स्पष्ट प्रमाण पेश किया जिससे बरसों-बरस से चली आ रही उस बहस का अंत हो गया जो रासायनिक तत्वों की मूल प्रकृति से संबंधित थी। दूसरा, ऊर्जा कणों की धातुओं से इलेक्ट्रॉनों के उत्सर्जन की व्याख्या की। तीसरा, सापेक्षता सिद्धांत की आवधारणा प्रस्तुत हुई। चौथा, तारों को शक्ति देने वाली ताप नाभिकीय प्रक्रिया और नाभिकीय बम की विस्फोटक शक्ति की व्याख्या हुई।
अलबर्ट आइंस्टीन इन सूत्रों से जिन नतीजों पर पहुंचे उन्हें विश्वास जगा कि वे सत्य के करीब हैं। उन्हें यह भी विश्वनीय लगा कि कुछ अनुमानों को स्वीकार करके त्वरित गति को सापेक्षता सिद्धांत में समाहित करना चाहिए जिससे अन्य निष्कर्षों पर पहुँचा जा सके। गुरुत्व और जड़ता की एक ही परिघटना की व्याख्या, अंतरिक्ष में लंबाई, चौड़ाई, ऊँचाई और काल पर विचार, पिण्ड के द्रव्यमान से दिक् और काल का वक्रिल होना, सूर्य जैसे विशाल पिण्ड के करीब से गुजरने पर प्रकाश का वक्रिल होना इत्यादि तथ्यों को जोड़ा गया जिससे सापेक्षता सिद्धांत और भी दृढ़ हुआ। एक विद्यार्थी ने जब उनसे यह पूछा कि आपेक्षता सिद्धांत अगर उनके प्रयोगों से पुष्ट न होता तब क्या होता? आइंस्टीन ने इसके उत्तर में कहा कि मैं अपने प्यारे भगवान के सामने दुःख व्यक्त करता क्योंकि सिद्धांत तो सही है।
कहना होगा कि आइंस्टीन को अपने सिद्धांतों पर ईश्वर से ज्यादा विश्वास था। ईश्वर के बारे में उनका मत था कि किसी व्यक्तिगत भगवान का आइडिया एक एंथ्रोपोलॉजिकल कॉन्सेप्ट है। वे ऐसे किसी व्यक्तिगत भगवान की कल्पना नहीं कर पाते जो आदमी को रोजमर्रा की बातों पर मार्गदर्शित करें। स्वयं अपने हाथों से रचे प्राणियों के विषय में फैसला करें। उन्हें हिस्सों में सुख दे और सजाएँ सुनाए। वह निरंकुश राजा या तानाशाही शासक के मानिंद कोई ईश्वर है, ऐसा नहीं मानते थे। वे नैतिकता को मनुष्य के लिए आवश्यक मानते थे और यह भी मानते थे कि ईश्वर के लिए यह जरूरी नहीं है क्योंकि व्यक्तिपरक कोई भी ईश्वर है ही नहीं। वे डरावने धार्मिक विचार और आत्माओं के अस्तित्व जैसी आस्था के खिलाफ थे। वे मानते थे कि मानवीय चेतना, जीवन के चिरंतन रहस्य और सुंदर विश्व की विविधता को देखकर प्रसन्न रहना चाहिए। अपने जीवन को गंभीर सोच-विचार के वलय से बाहर लाकर वे बहुत ही हल्के-फुल्के ढंग से जीते थे। खाली समय में वे साइकिल चलाते या नौका विहार करते। 
एक बार वे अपनी पत्नी के साथ फिल्म देखने गए। चलती फिल्म अचानक बीच में रोक दी गई। उस फिल्म की प्रसिद्ध अभिनेत्री उनके पास आयी और बोली, ‘‘मेरा नाम मेरी पिकफोर्ड है। आपको तकलीफ हुई, इसके लिए क्षमा करें। मैं आपसे हाथ मिलाना चाहती थी।’’ आइंस्टीन ने विनम्रतापूर्वक उसका अभिवादन कर हाथ मिलाया। जब दोबारा फिल्म शुरू हुई तो आइंस्टीन ने अपनी पत्नी से पूछा, ‘‘यह मेरी पिकफोर्ड कौन है?’’
उनके बारे में एक किस्सा और है: अपने सापेक्षता के सिद्धांत को समझाने के लिए लोगों के बीच व्याख्यान हेतु वे आमंत्रित किये जाते थे। उनका शोफर (वाहन चालक)  इतनी बार उनका व्याख्यान सुन चुका था कि उसे शब्द-शब्द याद था। एक बार आइंस्टीन ने उसे मजाक में कहा कि अगली बार वह व्याख्यान दे। शोफर फौरन तैयार हो गया। चूंकि उन दिनों आइंस्टीन के चेहरे से कम लोग वाकिफ थे इसलिए अगले व्याख्यान में आइंस्टीन और शोफर ने अपनी भूमिकाएँ बदल ली। कार्यक्रम में पहुँचकर शोफर व्याख्यान देने लगा और आइंस्टीन सभाकक्ष में पिछली कतार में जा बैठे। शोफर का व्याख्यान सुनकर वे हतप्रभ रह गये क्योंकि शोफर ने उनके व्याख्यान का शब्दशः प्रस्तुत किया था साथ में उनका अंदाज भी। इतने में एक व्यक्ति ने विज्ञान से संबंधित एक सवाल किया। अब बेचारा शोफर विज्ञान के जटिल प्रश्नों का क्या उत्तर देताय लेकिन वह आइंस्टीन के साथ रहकर हाजिरजवाब हो ही गया था। उसने कहा, ‘‘अरे! इस प्रश्न का उत्तर तो मेरा शोफर भी दे सकता है,’’ और उसने सभा की अंतिम कतार में बैठे आइंस्टीन की ओर इशारा किया।
आइंस्टीन के बारे में ऐसे हजारों किस्से हैं जिन्हें सुनकर आल्हादित, उत्साहित होने के साथ ही अचंभित भी हुआ जा सकता है। वे घंटों पानी के टब में बैठकर स्नान के साथ ही चिंतन में डूब जाते थे। पहरों तक गिरती हुई बूंदों को देखते थे और झरने का आनंद उठाते थे। वे मानते थे कि खोजना और मजे करना ही विज्ञान है। अपने ‘निज’ के लिए वे अन्य बंधन में कभी नहीं बंधे। संभवतः यही बात थी कि इजराइल के राष्ट्रपति पद के आमंत्रण को उन्होंने अस्वीकार कर दिया था। पचहत्तरवे जन्मदिन पर जब संयुक्त राज्य अमेरिका की इमरजेंसी सिविल लिबरेशन कमेटी द्वारा उन्हें अभिनंदन हेतु फूल भेजे गए तो उन्हें यह कहते हुए ठुकरा दिया कि तुम मेरे दरवाजे पर तभी आ सकते हो जब अंतिम आतंकी को सजा हो जाए।
सन 1940 में आइंस्टीन अमेरिका के नागरिक बन गए थे लेकिन स्विट्जरलैण्ड की नागरिकता उन्होंने नहीं छोड़ी। सन 1944 में उन्होंने अपने 1905 के सापेक्षता सिद्धांत की हस्तलिखित टीका तैयार की जो युद्ध कोष में सहायता हेतु नीलाम की गई। यह पांडुलिपि धरोहर के तौर पर अमरीकी कांग्रेस की प्रयोगशाला में रखी गई है। अप्रैल 1955 में इस महान वैज्ञानिक का निधन हुआ।
अल्बर्ट आइंस्टीन एक विलक्षण व्यक्ति थे। वे अंतर्मुखी थे तथापि भौतिक और अभौतिक दोनों ही संसार में आवाजाही करते थे।  उनका जो रचना संसार बनता था उसमें एक ओर विश्व के समस्त वैज्ञानिक थे और दूसरी ओर रवीन्द्रनाथ टैगोर, रोमाँ रोला तथा चार्ली चैप्लिन जैसी प्रतिभाएँ। रवीन्द्रनाथ टैगोर और अल्बर्ट आइंस्टीन के बीच हुए पत्राचार का उल्लेख एक ऐतिहासिक धरोहर के रूप में होता है। इस दस्तावेज में धर्म और विज्ञान के अंतर्संबंधों तथा ‘सत्य’ जैसे विषयों पर महत्वपूर्ण चर्चा है। चार्ली चैप्लिन के साथ अल्बर्ट आइंस्टीन की लास एंजिल्स यात्रा का उल्लेख भी बहुत ही महत्वपूर्ण ढंग से किया जाता है जिसमें उन्हें पहचानकर जब भीड़ ने अभिवादन किया तो चार्ली चैप्लिन ने अपने स्वभाव के अनुकूल ही कहा था, ‘‘लोग हम दोनों का ही अभिवादन कर रहे हैं। आपको कोई समझ नहीं पाता इसलिए और मुझे हर कोई समझ लेता है इसलिए।’’
विश्व आज भी उनके सूत्रों की व्याख्या कर रहा है। उन्हें समझने और उनके बताए रास्तों पर चलने को प्रयत्नशील है।
अल्बर्ट आइंस्टीन के अतिरिक्त जार्ज साइमन ओम (16 मार्च 1788 . 6 जुलाई 1854) विल्हेम कॉनराड रॉन्टगन (27 मार्च 1845-10 फरवरी 1927), अलेक्जेंडर ग्राहम बेल (3 मार्च 1847 - 2 अगस्त 1922) और रूडोल्फ डीजल (1 मार्च 1858 - 29 सितम्बर 1913) का जिक्र भी इस माह के वैज्ञानिकों में शामिल होना है जिन पर अलग से चर्चा होनी चाहिए। इन वैज्ञानिकों ने क्रमशः विद्युत सिद्धांत और बिजली उत्पन्न करने वाली सर्किट गणितीय जांच सिद्धांतय विद्युत चुम्बकीय विकिरण तरंगदैर्ध्य रेंजएक्स-रे किरणोंय टेलीफोन तथा ऑप्टिकल फाइबर सिस्टम, फोटोफोन, बेल और डेसिबल यूनिट, मेटल डिटेक्टर आदि की खोजय डीजल इंजन की खोज की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।


(संपादकीय कक्ष से)