विज्ञान


इसरो के भविष्य के मिशन

शशांक द्विवेदी

मंगल यान और चंद्रयान -1 की सफलता के साथ-साथ अंतरिक्ष में प्रक्षेपण का शतक लगाने के बाद इसरो चार और महत्वपूर्ण मिशनों पर कार्य तेज करने जा रहा है। इनमें पहला कदम है अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजना। दूसरा मिशन चंद्रमा की सतह पर एक रोवर उतारना, तीसरा मिशन सूर्य के अध्ययन के लिए आदित्य उपग्रह का प्रक्षेपण करना और चौथा कदम रीयूजेबल लाँच वेहिकल का प्रक्षेपण है। इन सभी महत्वपूर्ण मिशनों को अगले चार सालों के भीतर अंजाम दिया जाएगा। मंगलयान के मंगल की कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंचने के बाद इसरो के वैज्ञानिक भविष्य के अभियानों की सफलता को लेकर काफी आश्वस्त हैं। 

इसरो का मानवयुक्त अंतरिक्ष कार्यक्रम

चंद्रयान-1 मंगल यान की कामयाबी के बाद भारत की निगाहें अब आउटर स्पेस पर हैं। इसरो ग्रहों की तलाश के लिए मिशन भेजने की योजना बना रहा है। खास बात यह है कि इसमें एक मानव मिशन भी शामिल है। मानव स्पेसफ्लाइट कार्यक्रम का उद्देश्य पृथ्वी की निचली कक्षा (स्मव) के लिए दो में से एक चालक दल को ले जाने और पृथ्वी पर एक पूर्वनिर्धारित गंतव्य के लिए सुरक्षित रूप से उन्हें वापस जाने के लिए एक मानव अंतरिक्ष मिशन शुरू करने की है। कार्यक्रम इसरो द्वारा तय चरणों में लागू करने का प्रस्ताव है। वर्तमान में, पूर्व परियोजना गतिविधियों क्रू मॉड्यूल, पर्यावरण नियंत्रण और लाइफ सपोर्ट सिस्टम, क्रू एस्केप सिस्टम, आदि महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के विकास पर इसरो ध्यान दे रहा है । 
पृथ्वी की निचली कक्षा के लिए मनुष्य को ले जाने और उनकी सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने के लिए मानव अंतरिक्ष उड़ान शुरू करने के लिए एक अध्ययन इसरो द्वारा किया गया है। देश की क्षमता का निर्माण और प्रदर्शन करने के उद्देश्य से साथ मानव मिशन उपक्रम से संबंधित तकनीकी और प्रबंधकीय मुद्दों का अध्ययन इसरो कर रहा है। कार्यक्रम के बारे में 300 किलोमीटर पृथ्वी की निचली कक्षा और उनकी सुरक्षित वापसी के लिए 2 या 3 चालक दल के सदस्यों को ले जाने के लिए एक पूरी तरह से स्वायत्त कक्षीय वाहन के विकास की परिकल्पना की गई है। इसरो ने 2015 में अंतरिक्ष में मानव मिशन भेजने के लिए आरंभिक तैयारियां पूरी कर दी हैं। इसके लिए वैज्ञानिक अध्ययन का कार्य करीब-करीब पूरा कर लिया गया है। कुछ आवश्यक मंजूरियां मिलने के बाद अंतरिक्ष यान के निर्माण की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। अंतरिक्ष में जाने वाली इसरो की पहली मानव फ्लाईट में दो यात्री होंगे। यह फ्लाईट अंतरिक्ष में सौ से नौ सौ किलोमीटर ऊपर तक जाएगी।

चंद्रयान-2 मिशन

चंद्रयान-2 भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन (इसरो) एक प्रस्तावित चन्द्र अन्वेषण अभियान है जिसकी लागत लगभग 425 करोड़ है। इस अभियान के लिए अब ऑर्बिटर, रोवर तथा लैंडर की तीनों ही इसरो बनाएगा जबकि पहले ये अभियान इसरो और रूस की अंतरिक्ष एजेंसी रोसकोसमोस (आरकेए) का संयुक्त अभियान था जिसमें लैंडर रूस द्वरा बनाया जाना था। लेकिन अब ये अभियान पूर्ण रूप से इसरो द्वारा संचालित होगा था और ऑर्बिटर, रोवर तथा लैंडर स्वदेशी होंगे।
जीएसएलवी प्रक्षेपण यान द्वारा प्रस्तावित इस अभियान में भारत में निर्मित एक लूनर ऑर्बिटर (चन्द्र यान) तथा एक रोवर एवं रूस द्वारा निर्मित एक लैंडर शामिल होंगे। इसरो के अनुसार यह अभियान विभिन्न नयी प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल तथा परीक्षण के साथ-साथ नए प्रयोगों को भी करेगा। पहिएदार रोवर चन्द्रमाकी सतह पर चलेगा तथा ऑन-साइट विश्लेषण के लिए मिट्टी या चट्टान के नमूनों को एकत्र करेगा। आंकड़ों को चंद्रयान-2 ऑर्बिटर के माध्यम से पृथ्वी पर भेजा जायेगा। मायलास्वामी अन्नादुराई के नेतृत्व में चंद्रयान-1 अभियान को सफलतापूर्वक अंजाम देने वाली टीम चंद्रयान-2 पर भी काम कर रही है। इस अभियान को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से जियोसिंक्रोनस सेटेलाइट लॉन्च वेहिकल एमके-प्प् द्वारा भेजे जाने की योजना है उड़ान के समय इसका वजन लगभग 2650 किलो होगा।
ऑर्बिटर को इसरो द्वारा डिजाइन किया जायेगा और यह 200 किलोमीटर की ऊंचाई पर चन्द्रमा की परिक्रमा करेगा। इस अभियान में ऑर्बिटर को पांच पेलोड के साथ भेजे जाने का निर्णय लिया गया है। तीन पेलोड नए हैं, जबकि दो अन्य चंद्रयान-1 ऑर्बिटर पर भेजे जाने वाले पेलोड के उन्नत संस्करण हैं। चन्द्रमा की सतह से टकराने वाले चंद्रयान-1 के लूनर प्रोब के विपरीत, लैंडर धीरे-धीरे नीचे उतरेगा। लैंडर तथा रोवर का वजन लगभग 1250 किलो होगा। रोवर सौर ऊर्जा द्वारा संचालित होगा। रोवर चन्द्रमा की सतह पर पहियों के सहारे चलेगा, मिट्टी और चट्टानों के नमूने एकत्र करेगा, उनका रासायनिक विश्लेषण करेगा और डाटा को ऊपर ऑर्बिटर के पास भेज देगा जहां से इसे पृथ्वी के स्टेशन पर भेज दिया जायेगा। ये अभियान 2015-16 में प्रस्तावित है।

इसरो का आदित्य: मार्स मिशन के बाद सन मिशन 

मंगल यान और चंद्रयान-1 की सफलता से उत्साहित इसरो के वैज्ञानिको ने ‘आदित्य’ नामक मिशन की योजना तैयार की है। अंतरिक्ष संबंधी वृहद योजना से जुड़े इस आदित्य मिशन को 2015-16 में प्रारम्भ किए जाने की योजना है। आदित्य एक उपग्रह है, जो सोलर ‘कोरोनाग्राफ’ यन्त्र की मदद से सूर्य के सबसे भारी भाग का अध्ययन करेगा। इससे कॉस्मिक किरणों, सौर आंधी, और विकिरण के अध्ययन में मदद मिलेगी। 
अभी तक वैज्ञानिक सूर्य के भारी भाग कोरोना का अध्ययन केवल सूर्यग्रहण के समय में ही कर पाते थे। इस मिशन की मदद से सौर मंडल और सौर हवाओं के अध्ययन में जानकारी मिलेगी कि ये किस तरह से धरती पर इलेक्ट्रिक प्रणालियों और संचार नेटवर्क पर असर डालती है। इससे सूर्य के कोरोना से धरती के भू चुम्बकीय क्षेत्र में होने वाले बदलावों के बारे में घटनाओं को समझा जा सकेगा। इस सोलर मिशन की मदद से तीव्र और मानव निर्मित उपग्रहों और अन्तरिक्षयानों को बचाने के उपायों के बारे में पता लगाया जा सकेगा। इस उपग्रह का वजन 100 कि.ग्रा. होगा। ये उपग्रह सूर्य कोरोना का अध्ययन त्रिम ग्रहण द्वारा करेगा। इसका अध्ययन काल 10 वर्ष रहेगा। ये नासा द्वारा सन 1995 में प्रक्षेपित सोहो के बाद सूर्य के अध्ययन में सबसे उन्नत उपग्रह होगा।
आदित्य सूर्य के कोरोना की गर्मी और उससे होने वाले उत्सर्जन के रहस्य को भी सुलझाने मंघ मदद करेगा। सूर्य कोरोना का टेंपरेचर लाखों डिग्री है। पृथ्वी से कोरोना सिर्फ पूर्ण सूर्यग्रहण के दौरान ही दिखाई देता है। यह भारतीय वैज्ञानिकों की इस तरह की पहली कोशिश होगी। कोरोना के अध्ययन से सोलर एक्टिविटी कंडीशंस के बारे में अहम जानकारियां मिल सकेंगी। अब तक सिर्फ अमेरिका, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और जापान ने सूरज के अध्ययन की लिए स्पेसक्राफ्ट भेजे हैं। ‘आदित्य’ के प्रक्षेपण के बाद निसंदेह अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत की दखल और बढ़ जाएगी। सूर्य मिशन बहुत महत्वपूर्ण है और वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अपनी तरह का एक विशिष्ट मिशन है इसलिए इसरो के वैज्ञानिकों को इस मिशन से भारी उम्मीदें हैं।

रीयूजेबल लाँच वेहिकल

पुन प्रयोज्य प्रक्षेपण प्रणाली, रीयूजेबल लाँच वेहिकल (या पुनः प्रयोज्य प्रक्षेपण यान) एक से अधिक बार अंतरिक्ष में एक प्रक्षेपण यान लांच करने में सक्षम है। यह एक प्रक्षेपण प्रणाली है। पुनः प्रयोज्य प्रक्षेपण वाहन-प्रौद्योगिकी प्रदर्शक (आरएलवी-टीडी) पूरी तरह से पुनः उपयोग के योग्य प्रक्षेपण वाहन को साकार करने की दिशा में पहला कदम है। इस उद्देश्य के लिए एक प्रौद्योगिकी प्रदर्शक आरएलवी-टीडी कॉन्फिगर किया गया है। आरएलवी-टीडी विभिन्न प्रौद्योगिकियों मसलन हाइपरसोनिक उड़ान, स्वायत्त लैंडिंग, संचालित क्रूज की उड़ान और हाइपरसोनिक उड़ान के लिए एक टेस्ट बेड की तरह काम करेगा जो हवा में प्रणोदन का उपयोग कर सकेगा। अंतरिक्ष के लिए उपयोग की लागत अंतरिक्ष अन्वेषण और अंतरिक्ष उपयोग में बड़ी बाधा है। एक पुनः उपयोग योग्य प्रक्षेपण यान कम लागत, विश्वसनीय और जरुरत के समय अंतरिक्ष तक पहुँच रखने के लिए एक अच्छा विकल्प है। यह मिशन 2015 में प्रस्तावित है । इसरो के इन सभी अभियानों से देश को बहुत उम्मीदें है। भविष्य में इसरों उन सभी ताकतों को और भी कडी टक्कर देगा जो साधनों की बहुलता के चलते प्रगति कर रहा है, भारत के पास प्रतिभाओं की बहुलता है। भारत ने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में जिस तरह कम संसाधनों और कम बजट में न सिर्फ अपने आप को जीवित रखा है बल्कि बेहतरीन प्रदर्शन भी किया है। प्रस्तावित अभियानों के पूरा होने पर भारत अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक बड़ी ताकत के रूप से स्थापित हो जाएगा ।


सेंट मार्ग्रेट इंजीनियरिंग कॉलेज, नीमराना जिला-अलवर  (दिल्ली-जयपुर हाईवे), राजस्थान, 
dwivedi.shashank15@gmail.com