विज्ञान


जोड़ना ग्रामीण भारत को

एम.एस.स्वामीनाथन

हाल के महीनों में ध्य्ाान आकर्षण करने वाली तीन बातें हुई हैं। इनसे उम्मीद जगी है कि 15 अगस्त 2007 तक देश के 6ए00ए000 गाँवों तक इंटरनेट और अंतरिक्ष य्ाुग की ताकत को पहुँचाय्ाा जा सकेगा। गौर तलब है कि इसी दिन भारत की ‘निय्ाति से मुलाकात’ की 60 वीं सालगिरह भी है। सर्वप्रथम, नागरिक समाज के एक व्य्ाापक वर्ग, औद्योगिक और अकादमिक संगठनों के साथ एक राष्ट्रीय्ा गठबंधन बनाय्ाा गय्ाा है। इसका उद्देश्य्ा है मिशन 2007 के लक्ष्य्ा प्रत्य्ोक गाँव को ज्ञान का केन्द्र बनानाµको पाने के लिए सहभागिता की ताकत का उपय्ाोग करना। दूसरे, टाटा ट्रस्ट की मदद से ग्रामीण विकास के लिए एम.एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउण्डेशन में एक जमसेतजी टाटा नेशनल वच्यर््ाुअल अकादमी स्थापित की गई है। य्ाहाँ 10 लाख ग्रामीण महिलाओं और पुरूषों को अकादमी के फेलो के बतौर चुना जाएगा और उन्हें प्रशिक्षित किय्ाा जाएगा। य्ाही लोग ग्रामीण ज्ञान  क्रांति की मशाल संभालेंगे और तीसरा है, प्रधान मंत्र्ाी द्वारा हाल ही में शुरू किय्ाा गय्ाा भारतीय्ा अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन का एक कायर््ाक्रम एम.एस.एस.आर.एफ. ग्राम स्त्र्ाोत केन्द्र कायर््ाक्रम। इस कायर््ाक्रम के जरिए ग्रामीण महिलाओं, पुरुषों और बच्चों को शिक्षा, पोषण, स्वास्थ्य्ा, पीने और सिंचाई के लिए पानी, कृषि और बाजार जैसी बुनिय्ाादी सुविधाएँ प्राप्त करने में मदद की जाएगी।
मिशन 2007 की सफलता के लिए एक उपय्ाुक्त जन नीति बेहद जरूरी है। इस मुहिम को जिलाए रखने के लिए किस तरह की नीति की जरूरत है, उसकी चर्चा राष्ट्रीय्ा गठबंधन के सहभागिय्ाों के बीच की जा चुकी है। टेक्नॉलॉजी और जन नीति के बीच साझ्ोदारी पनपाने के लिए गठबंधन के सहभागिय्ाों की अनुशंसाओं को मैं य्ाहाँ संक्षेप में प्रस्तुत करना चाहूँगा।
आज भारत के गाँवों में आपस में बहुत कम कनेक्टिविटी है। लगभग सभी दूरभाष संचालक ग्रामीण कनेक्टिविटी को घाटे का सौदा मानते हैं। गाँवों में न्य्ाूनतम कनेक्टिविटी के लिए वे भारी सब्सिडी की माँग करते हैं। साथ ही भारत में पिछले बीस सालों में ऑप्टिकल फाइबर और टॉवर के रूप में भारी इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण हुआ है। इसका सारा श्रेय्ा दूरसंचार विभाग, भारत संचार निगम लिमिटेड और कुछ हद तक निजी ऑपरेटरों को जाता है। य्ो इंफ्रास्ट्रक्चर बड़े शहरों और बड़े कस्बों तक ही सीमित नहीं रहे हैं बल्कि छोटे कस्बों  (जिसमें लगभग सभी तालुका हेडक्वार्टर शामिल हैं) में भी य्ो पहुँच गए हैं। इसके अलावा इन फाइबर ऑप्टिक केबल से जुड़े कस्बों को लगभग सभी गाँवों से जोड़ने के लिए कम खर्चीली वाय्ारलेस टेक्नॉलॉजी भी हमारे पास है।
हालांकि इस काम को अगर शहरी क्षेत्र्ाों में केन्द्रित टेलीफोन ऑपरेटरों के सहारे छोड़ दिय्ाा जाए तो गांवों में कनेक्टिविटी लाने के काम में सालों साल लग जाएंगे। लेकिन ग्रामीण भारत इतना इंतजार नहीं कर सकता है। कई छोटी कम्पनिय्ााँ, गैर सरकारी संगठन और अन्य्ा संस्थाएं हैं जो मुख्य्ातः ग्रामीण क्षेत्र्ाों को सेवाएं पहुँचाने के लिए केन्द्रित हैं।  इन संगठनों को मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर (फाइबर लाइन और टॉवर) का इस्तेमाल करने की सुविधा मिलनी चाहिए ताकि गांँवों में टेलीकॉम और इंटरनेट की सुविधाएं पहुँचाई जा सकें। इंफ्रास्ट्रक्चर के मालिकों को कॉल चार्जेस का कुछ हिस्सा मिलना चाहिए।
फाइबर से 30ए000 से ज्य्ाादा एक्सचेंज जुड़े हुए हैं। पुनः डिजाइन किय्ाा गय्ाा एस.टी.डी./पी.सी.ओ. का मॉडल जिसमें इंटरनेट समेत एक एकीकृत आईटीसी पैकेज शामिल हो, आर्थिक रूप से ज्य्ाादा टिकाऊ होगा। ताजा टेक्नॉलॉजी और पहली पहुँच इन दोनों पर एक साथ ध्य्ाान दिए जाने की जरूरत है। पहले से उपलब्ध इंफ्रास्ट्रक्चर खास तौर पर बी.एस.एन.एल. के पास उपलब्ध इंफ्रास्ट्रक्चर के कारगर उपय्ाोग को वरीय्ाता दी जानी चाहिए। इसमें कुछ अतिरिक्त निवेश की जरूरत होगी। बी.एस.एन.एल. की सक्रिय्ा भागीदारी से आज उपलब्ध फाइबर इंफ्रास्ट्रक्चर का अधिकतम उपय्ाोग जननीति और निवेश का प्राथमिक लक्ष्य्ा होना चाहिए। सफल होने के लिए आईसीटी स्व सहाय्ाता समूह की क्षमता निर्माण और मानव संसाधन का विकास बहुत जरूरी हैं।
ग्रामीण समृद्धि के लिए एम.एस. स्वामीनाथन रिसर्च फाउण्डेशन में स्थापित जमसेतजी टाटा नेशनल वच्यर््ाुअल अकादमी इस क्षेत्र्ा में प्रमुख भूमिका निभा सकती है। य्ाह गठबंधन के अन्य्ा सहभागिय्ाों के साथ दूरस्थ-शिक्षा के लिए प्रशिक्षण कायर््ाक्रम आय्ाोजित कर सकती है। साथ ही प्रत्य्ोक गाँव से कम से कम एक महिला व पुरूष को अकादमी में फेलो के रूप में भर्ती कर सकता है। ग्रामीण जरूरतों के हिसाब से उपय्ाुक्त डेटाबेस तैय्ाार करने के लिए निवेश की जरूरत है। ग्रामीण ज्ञान क्रांति की व्य्ावहायर््ाता, टिकाऊपन और किस पैमाने पर फैलाय्ाा जाना है, य्ाह अंततः ग्रामीण परिवारों के जीवन में आईसीटी की प्रासंगिकता पर निर्भर करेगा। पंचाय्ाती राज संस्थाओं को प्रेरित किए जाने की जरूरत है। आईसीटी ज्ञान केन्द्र गाँव के स्कूल में य्ाा पंचाय्ात भवन य्ाा किसी अन्य्ा सार्वजनिक जगह पर होने चाहिए ताकि य्ो समाज के सभी लोगों की पहुँच में हो। ग्रामीण उत्पादों को बाजार से जोड़ने में निजी क्षेत्र्ा के उद्योग मुख्य्ा भूमिका निभा सकते हैं। इससे किसानों की परेशानिय्ााँ कम करने में मदद मिलेगी।
ग्रामीण क्षेत्र्ाों में उचित कनेक्टिविटी पाने में न तो सब्सिडी और न ही निय्ाम आदि ही सफल हो पाए हैं। केवल एसटीडीµपीसीओ जैसा एक व्य्ावसाय्ािक मॉडल टेलीकॉम और इंटरनेट कनेक्टिविटी को ग्रामीण क्षेत्र्ाों में आर्थिक रूप से व्य्ाावहारिक बना सकता है। ग्रामीण भारत में सुविधाएँ उपलब्ध कराने में इच्छुक छोटी कम्पनिय्ाों को इस के लिए प्रेरित करना चाहिए कि वे उन व्य्ावसाय्ािक मॉडलों और नवीनतम टेक्नॉलॉजी को अपने फाय्ादे के लिए इस्तेमाल करें जिन्हें  वे गांवों में कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए चुनती हैं। एक व्य्ावहारिक व्य्ावसाय्ािक मॉडल बनाने के लिए सस्ती कनेक्टिविटी और सस्ता स्पेक्ट्रम दोनों जरूरी है।
ट्राई ने एकल लाइसेंस के लिए ड्राफ्ट अनुशंसाएँ प्रस्तुत की हैं। इसमें खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्र्ाों के लिए उपय्ाुक्त ऑपरेटरों की अवधारणा प्रस्तुत की गई है। सबसे पिछड़े क्षेत्र्ाों में भी ऐसे प्रय्ाासों की उपय्ाोगिता को सुनिश्चित करने के लिए सरकार को चाहिए कि वह मौजूदा इंफ्रास्ट्रक्चर के इस्तेमाल को निय्ाामकों द्वारा तय्ा शर्तों के हिसाब से खोल दे।
इस मॉडल को प्रारम्भ में आकर्षक बनाने के लिए कुछ समय्ा के लिए आंकड़ों के प्रसारण के खर्च को आवाज के प्रसारण के खर्च से रखा जा सकता है। इसी तरह कुछ समय्ा के लिए उपय्ाुक्त ऑपरेटरों के लिए स्पेक्ट्रम की दर को कम किय्ाा जा सकता है। साथ ही कुछ समय्ा तक के लिए टैक्स आदि में य्ाा अग्रिम रूप से ली जाने वाली बड़ी रकमों को हटाकर भी ऑपरेटरों को प्रेरित किय्ाा जा सकता है।
हालांकि कनेक्टिविटी तो पहला कदम भर है। ग्रामीण जनता कनेक्टिीविटी और कम्प्य्ाूटर से क्य्ाा कर सकती है? जरूरत है गाँवों में शिक्षा का प्रसार करना और स्वास्थ्य्ा सेवाओं को पहुँचाना। लेकिन इसके बाद मुख्य्ा मकसद ग्रामीण अर्थव्य्ावस्था को सुदृढ़ करना होना चाहिए इसके लिए सूक्ष्मµऋण (माइक्रो-क्रेडिट) की मदद से टिकाऊ ग्रामीण लघु उद्यम खड़े करने के प्रय्ाास होने चाहिए। मिशन 2007 का लक्ष्य्ा होना चाहिए।

अगर आईसीटी को आजीविका के नए अवसर पैदा करने की सत्ता दे दी जाए तो ग्रामीण अर्थव्य्ावस्था समृद्ध हो सकती है। आजीविकाएँ इनमें से किसी भी क्षेत्र्ा में हो सकती हैं। कृषि, खाद्यµप्रोसेसिंग, पशुµपालन, मत्स्य्ा पालन, रेशम के कीड़े पालने का उद्योग, हस्तशिल्प और आईटी आधारित सेवाएँ (जिन्हें ग्रामीण क्षेत्र्ा शहरी क्षेत्र्ाों को उपलब्ध करा सकते हैं)। निजी क्षेत्र्ा और नागरिक समाज के संगठनों को आईसीटी आधारित सप्लाईµश्रंृखला प्रबंधन व्य्ावस्थाएँ बनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए ताकि ग्रामीण उत्पादों को बेचा जा सके।
जटिल टेक्नॉलॉजी के प्रबंधन के काम, शंृखला के आखरी सिरों, जैसे कस्बों और शहरों की संस्थाओं के लिए छोड़ देने चाहिए। शंृखला के अगले सिरों का प्रबंध गाँवों में ही आसानी से होना चाहिए। ग्रामीण जरूरतों के हिसाब से जानकारी का डेटाबेस बनाने के लिए निवेश की जरूरत है। विषय्ा वस्तु स्थानीय्ा चाहिए। गतिशील जानकारी उपलब्ध कराने का भी प्रावधान होना चाहिए। जैसे, मौसम और बाजार के बारे में जानकारी, सरकारी कायर््ाक्रमों की पात्र्ाता के बारे में सामान्य्ा जानकारी, जेण्डर, उम्र, वर्ग जाति के हिसाब से वर्गीकृत जानकारी आदि। शिक्षा और स्वास्थ्य्ा जैसी जरूरी सेवाएँ आईसीटी के जरिए ग्रामीण क्षेत्र्ाों तक पहुँचाई जा सकती हैं। सरकार को गाँव के स्कूलों में कुछ कम्प्य्ाूटर लगाने चाहिए। सरकारी अस्पतालों के डॉक्टर खास तौर पर महिलाओं को ’ऑन लाइनञ परामर्श दे सकते हैं। ग्रामीण लोगों को, खास तौर पर बेरोजगार लड़के-लड़किय्ाों को देश के विकास में महत्वपूर्ण संसाधनों के बतौर मानवता और उनका उपय्ाोग करना चाहिए। जमीन रिकॉर्डों की डिजिटाइजेशन आंकड़ों को कम्प्य्ाूटर में फीड करना स्थानीय्ा आंकड़ों का संय्ाोजन, स्थानीय्ा संसाधनों के मानचित्र्ाीकरण और इसे स्व-सहाय्ाता समूहों और समाज के अन्य्ा समान हितों वाले समूहों द्वारा चलाई जा रही सूचना गुमटिय्ाों तक पहुँचाने जैसे कामों की आउट सोर्सिंग को नीतिगत वरीय्ाता दिय्ो जाने के बारे में सरकार कोई निर्णय्ा ले सकती है। इस काम में नागरिक समाज के संगठनों की भी मदद ली जा सकती है। पंचाय्ाती राज संस्थाएँ इस कनेक्टिविटी के इस्तेमाल से उत्तरदाय्ाी और पारदर्शी स्थानीय्ा शासन उपलब्ध करा सकती हैं। विविध पकार के प्रासंगिक व उपय्ाोगी सरकारी आंकड़ों के इस्तेमाल को सुगम बनाने के लिए इन्हें ऑनलाइन किय्ाा जा सकता है। जैसे जन्म और मृत्य्ाु के प्रमाणपत्र्ा, पंजीय्ान, पेंशन के दस्तावेज आदि। शहरों से गाँवों को काम दिय्ाा जाना शहरों व गाँवों के बीच की डिजिटल दूरी पाटने का एक उम्दा तरीका है। अगर महिलाएँ गाँव के ज्ञान केन्द्रों का प्रबंधन करने में सक्षम हो जाती हैं तो य्ाह लिंग भेद को पाटने में भी सहाय्ाक होगा।
ग्रामीण क्षेत्र्ाों में ज्ञान केन्द्रों के जरिए स्वास्थ्य्ा, शिक्षा और शासन संबंधी उपय्ाुक्त सामाजिक संदेशों को कारगर तरीके से फैलाय्ाा जा सकता है। सरकार को चाहिए कि ई-गवर्नेंस की विषय्ावस्तु और सेवाओं को डिजाइन करने और तैय्ाार करने का काम व्य्ावसाय्ािक संस्थाओं को सौंप दे जिससे व्य्ाापक समुदाय्ाों तक इसका लाभ पहुंच सके। कृषि, पोषण, आजीविकाओं, पशु पालन, फसल कटाई पश्चात की टेक्नोलॉजी, स्वास्थ्य्ा, पयर््ाावरण संबंधी मुद्दों की कई विशेषज्ञ संस्थाओं की पहचान की जानी चाहिए। ई-गवर्नेंस की मॉनिटरिंग के लिए एक नागरिक समाज समूह का गठन किय्ाा जाना चाहिए। ऐसा एक समूह सरकारी कामों के स्वचालन (ऑटोमेशन) संबंधी उपय्ाुक्त तरीकों के बाबत सरकार को परामर्श दे सकता है। साथ ही ग्रामीण समुदाय्ाों के लिए आईसीटी समर्थित सेवाओं को भी वह आईसीटी प्रस्तावित कर सकता है।  ज्ञान केन्द्रों और सूचना केन्द्रों की स्थापना के लिए ग्रामीण उद्यमिय्ाों, स्व सहाय्ाता समूहों  और पंचाय्ाती राज संस्थाओं के नामांकितों को कम ब्य्ााज पर ऋण उपलब्ध कराने पर भी सोचा जाना चाहिए। ग्रामीण उद्यमिय्ाों को बढ़ावा देने के लिए इस तरह के ऋण नाबार्ड, एस.बी.आई. आदि जैसी बैंकिंग संस्थाओं के द्वारा दिए जा सकते हैं। एक ऐसा भी फण्ड स्थापित किय्ाा जा सकता है जहाँ से जोखिम के वक्त पैसा (वेंचर कैपीटल) लिय्ाा जा सके।
15 अगस्त 2007 तक इंटरनेट और अंतरिक्ष य्ाुग के फाय्ादों को 6 लाख गाँवों तक ले जाने का काम दूभर जरूर लग सकता है। लेकिन असम्भवµसा लगने वाला य्ाह काम सहभागिता द्वारा और टेक्नालॉजी और जन नीतिय्ाों के बीच जुड़ाव और साझ्ोदारी पैदा कर पूरा किय्ाा जा सकता है। वैसे ही जैसा हरित क्रांति के वक्त 1960 के दशक में हुआ था। प्रधानमंत्र्ाी द्वारा शुरू किय्ाा गय्ाा य्ाह नय्ाा कदम भारत की निय्ाति से मुलाकात में एक उज्ज्वल अध्य्ााय्ा की शुरूआत का द्योतक है।

(‘इलेक्ट्रॉनिकी आपके लिए’ दिसम्बर-जनवरी 2005)